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Friday, 8 September 2017

छठी इन्द्रिय [सिक्स्थ सेन्स ]या अतीन्द्रिय ज्ञान ::[भाग दो ]

छठी इन्द्रिय अर्थात अतीन्द्रिय ज्ञान से घटनाओं का पूर्वाभास
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क्या मनुष्य की छठी इंद्रिय होती है? कुछ लोग इसे हकीकत मानते हैं और कुछ कोरी कल्पना। अब वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में स्पष्ट किया है कि छठी इंद्रिय की बात सिर्फ कल्पना नहीं, वास्तविकता है, जो हमें किसी घटित होने वाली घटना का पूर्वाभास कराती है। 
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के रॉन रेसिक ने एक अध्ययन कर पाया कि छठी इंद्रिय के कारण ही हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास होता है। ऐसा माना जा रहा है कि अब लोगों की छठी इंद्रिय को और सक्रिय करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि वाहनों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं में कमी हो सके। रेसिक के अनुसार छठी इंद्रिय जैसी कोई भावना तो है और यह सिर्फ एक अहसास नहीं है। वास्तव में होशो-हवास में आया विचार या भावना है, जिसे हम देखने के साथ ही महसूस भी कर सकते हैं। और यह हमें घटित होने वाली बात से बचने के लिए प्रेरित करती है। करीब एक-तिहाई लोगों की छठी इंद्रिय काफी सक्रिय होती है। उन्हें घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है। इसे सही तरीके से परिभाषित करना तो मुश्किल है, लेकिन इसके होने से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। 
अल सुबह नींद से जागने के लिए अलार्म घड़ियाँ तो हर कोई इस्तेमाल करता है। लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते होंगे कि प्रकृति ने हमारे शरीर के भीतर भी एक अलार्म घड़ी की व्यवस्था कर रखी है। हाल ही में हुए वैज्ञानिक शोध से इस बात का पता चला है कि जब कभी हमें तड़के कहीं जाना होता है तो जागने के समय का अलार्म हमारे मस्तिष्क में स्वतः भर जाता है। हम भले ही सोते रहते हैं, लेकिन निर्धारित समय से 1 घंटे पूर्व हमारे रक्त में एक विशेष हार्मोन का स्राव होने लगता है और जब वह चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो हमारी नींद खुल जाती है। वैज्ञानिक इसे हार्मोन घड़ी कहते हैं। 
छठी इंद्री के जाग्रत होने से  व्यक्ति में भविष्य में झाँकने की क्षमता का विकास होता है। अतीत में जाकर घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुन सकते हैं। किसके मन में क्या विचार चल रहा है इसका शब्दश: पता लग जाता है। एक ही जगह बैठे हुए दुनिया की किसी भी जगह की जानकारी पल में ही हासिल की जा सकती है। छठी इंद्री प्राप्त व्यक्ति से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता और इसकी क्षमताओं के विकास की संभावनाएँ अनंत हैं।
आपने अगर स्टीवेन स्पिलबर्ग की चर्चित फिल्म मॉइनॉरिटी रिपोर्ट देखी हो तो आपको याद होगा कि कैसे उस फिल्म में एक विशेष सेल के सदस्य भविष्य में होने वाले अपराध को पता करके उसे घटित होने से पहले ही रोक देते थे। यह मजह एक फिल्मी कहानी नहीं है।

अतीन्द्रिय ज्ञान को वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित करने वाले विद्वानों का मानना है कि यदि कोई तत्व प्रकाश की गति से भी तीव्र गति करे तो उसके लिए समय रुक जाता है। दूसरे शब्दों में, वहां बीते कल, आज और आने वाले कल में कोई अंतर न रहेगा। अपने चित्त में यह गति साध ली जाए तो अतीत और भविष्य की घटनाएं चलचित्र की तरह देखी जा सकती हैं। अधिकतर दार्शनिकों का मत है कि घटनाओं के पूर्वाभास जीवन बचाने के लिए होते हैं और यह बात भी सच है कि यदि हम कमजोर मन इंसान से इस तरह के पूर्वाभासों का जिक्र करते है, तो वे किसी की मौत का कारण भी बन सकते हैं। अनेक बार पूर्वाभास स्पष्ट नहीं होते और न उनकी व्याख्या की जा सकती है।
प्रिमोनीशन एक्स्टां सॅन्सरी परसॅप्शन्स का वह रूप है, जिसे हम इन्स्टिंक्ट या भावी घटना का एक तीव्र आभास कह सकते हैं। ये एक तरह की 'इन्ट्यूटिव वॉर्निंग होती है, जो अवचेतन मन पर अंकित हो जाती है और कभी-कभी व्यक्ति को नियोजित कार्योँ को करने से मनोवैज्ञानिक तरह से रोकती हैं।
इसे बहुत से चिन्तक विशिष्ट घटनाओं की 'भविष्यवाणी भी कहते हैं। साइंस इसके स्टेट्स को अस्वीकार करता है। लेकिन दार्शनिकों का मानना है कि प्रिमोनीशन और प्रौफॅसी को व्यर्थ की चीज मानकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि घटनाओं के पूर्वाभास की जानकारी और उनका सही घटना प्रमाणित करता है कि 'प्रिमोनीशन में तथ्य है, इसकी अर्थवत्ता है।इस तरह से यह साइंस के लिए एक चेतावनी है, क्योंकि यह सृष्टि की गतिविधियों के साथ मानव मन के सघन संबंध का संकेत देती है। यह आन्तरिक शक्तियों और सृष्टि में स्पन्दित अलौकिक शक्तियों व उसके चक्र के अन्तर्संबंध का विज्ञान है। कहा जाता है कि नॉस्टेंडम ने अपनी मृत्यु की 'पूर्व घोषणा कर दी थी।
जुलाई 1, 1566 जब एक पुरोहित उनसे मिलने आया और जाने लगा तो नॉस्टेंडम ने उससे अपने बारे में कहा कि 'वह कल सूर्योदय होने तक मर चुका होगा। इसी तरह अब्राहम लिंकन ने अपनी मौत का सपना देखा और अपनी पत्नी व अंगरक्षक को अपने कत्ल से कुछ घंटे पहले इस बारे में बताया। ...............................................हर-हर महादेव 

विशेष - किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच . 

छठी इन्द्रिय [सिक्स्थ सेन्स ] या अतीन्द्रिय ज्ञान ::::[भाग एक ]

:::::::::::::::::::::::छठी इन्द्रिय [सिक्स्थ सेन्स ] या अतीन्द्रिय ज्ञान ::::[भाग एक ]:::::::::::::::::::::
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हम सभी की चाहत रहती है कि जीवन में आने वाली घटनाओं को जान सकें। इसके लिए ज्योतिषी एवं भविष्यवक्ता से संपर्क करते हैं। लेकिन विज्ञान कहता है कि हम सभी भविष्य और भूत की घटनाओं को दर्पण की तरह देख सकते हैं। मानव के अंदर एक ऐसा जीन छुपा रहता है, जिससे उसे भावी घटनाओं का पता चल सकता है। लेकिन व्यावहारिक रूप से वह पता नहीं कर पाता। अब वैज्ञानिकों ने यह रहस्य खोल लिया है। मानव अपने मस्तिष्क के जरिये भविष्य की घटनाओं का पता आसानी से लगा सकता है। आम तौर पर हमें आज और अभी या अपने आसपास की घटनाओं की ही जानकारी होती है। आने वाले या बीत गए समय की अथवा दूरदराज की घटनाओं का पता नहीं चलता, लेकिन कोई विलक्षण शक्ति है, जो व्यक्ति को समय और दूरी की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए उपयोगी सूचनाएं देती है, जो भूत, भविष्य अथवा वर्तमान में झाँकने की क्षमता रखती है। भविष्य में होने वाली घटना का पहले से संकेत मिलना ही पूर्वाभास है।यह छठी इंद्री या सेन्स का काम होता है | कुछ लोगों में यह अतीन्द्रिय ज्ञान काफी विकसित होता है तो कहा जाता है की उनका छठी इन्द्रिय या सिक्स्थ सेन्स विकसित है |पूर्ण जाग्रत अवस्था में यह तीसरा नेत्र है | छठी इन्द्रिय या सिक्स्थ सेन्स द्वारा अतीन्द्रिय ज्ञान होता है अर्थात वह ज्ञान जो सामान्य इन्द्रियों की समझ और पकड़ से परे हो |सामान्यतः हम पाँच ज्ञानेन्द्रियों के जरिए वस्तु या दृश्यों का विवेचन कर पाते हैं, परंतु कभी-कभी या किसी में बहुधा छठी इन्द्रिय जागृत हो जाती है। इस कपोल-कल्पित इन्द्रिय को विज्ञान ने अतीन्द्रिय ज्ञान (एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन) का नाम देते हुए अपनी बिरादरी में शामिल कर लिया है।
इंद्रिय के द्वारा हमें बाहरी विषयों - रूप, रस, गंध, स्पर्श एवं शब्द - का तथा आभ्यंतर विषयों - सु: दु: आदि-का ज्ञान प्राप्त होता है। इद्रियों के अभाव में हम विषयों का ज्ञान किसी प्रकार प्राप्त नहीं कर सकते। इसलिए तर्कभाषा के अनुसार इंद्रिय वह प्रमेय है जो शरीर से संयुक्त, अतींद्रिय (इंद्रियों से ग्रहीत होनेवाला) तथा ज्ञान का करण हो (शरीरसंयुक्तं ज्ञानं करणमतींद्रियम्)बाह्य इंद्रियाँ क्रमश: गंध, रस, रूप स्पर्श तथा शब्द की उपलब्धि मन के द्वारा होती हैं | सुख दु:ख आदि भीतरी विषय हैं। इनकी उपलब्धि मन के द्वारा होती है |मन हृदय के भीतर रहनेवाला तथा अणु परमाणु से युक्त माना जाता है | इंद्रियों की सत्ता का बोध प्रमाण, अनुमान और अनुभव से होता है, प्रत्यक्ष से नहीं | सांख्य के अनुसार इंद्रियाँ संख्या में एकादश मानी जाती हैं जिनमें ज्ञानेंद्रियाँ तथा कर्मेंद्रियाँ पाँच पाँच मानी जाती हैं | ज्ञानेंद्रियाँ पूर्वोक्त पाँच हैं |कर्मेंद्रियाँ मुख, हाथ, पैर, मलद्वार तथा जननेंद्रिय हैं जो क्रमश: बोलने, ग्रहण करने, चलने, मल त्यागने तथा संतानोत्पादन का कार्य करती है | संकल्पविकल्पात्मक मन ग्यारहवीं इंद्रिय माना जाता है |
पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अतीन्द्रिय क्षमताओं को चार वर्गों में बाँटा है :
परोक्ष दर्शन- अर्थात वस्तुओं और घटनाओं की वह जानकारी, जो ज्ञान प्राप्ति के बिना ही उपलब्ध हो जाती है।
भविष्य ज्ञान- यानी बिना किसी मान्य आधार के भविष्य के गर्भ में झाँककर घटनाओं को घटित होने से पूर्व जान लेना।      
भूतकालिक ज्ञानबिना किसी साधन के अतीत की घटनाओं की जानकारी। 
टेलीपैथी- अर्थात बिना किसी आधार या यंत्र के अपने विचारों को दूसरे के पास पहुँचाना तथा दूसरों के विचार ग्रहण करना। इसके अलावा साइकोकाइनेसिस, सम्मोहन, साइकिक फोटोग्राफी आदि को भी परामनोविज्ञानियों ने अतीन्द्रिय शक्ति में शुमार किया है। 
विल्हेम वॉन लिवनीज नामक वैज्ञानिक का कहना है हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह कभी-कभार चमक उठने वाली इस क्षमता को विकसित कर पूर्वाभास को सामान्य बुद्धि की तरह अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लेता है। इस तरह की क्षमता अर्जित कर सकता है, जब चाहे दर्पण की तरह अतीत या भविष्य को देख सके। हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह अपनी अन्तर्प्रज्ञा को जगाकर भविष्य काल को वर्तमान की तरह दर्पण में देख ले।
अतीन्द्रिय ज्ञान को वैज्ञानिक आधार देते हुए केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक भौतिकी विद्वान एड्रियन डॉन्स ने फरमाया था, 'भविष्य में घटने वाली हलचलें वर्तमान में मानव मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंगें पैदा करती हैं, जिन्हें साइट्रॉनिक वेवफ्रंट कहा जा सकता है। इन तरंगों की स्फुरणाओं को मानव मस्तिष्क के स्नायुकोष (न्यूरान्स) पकड़ लेते हैं। इस प्रकार व्यक्ति भविष्य-कथन में सफल होता है। उनके मुताबिक मस्तिष्क की अल्फा तरंगों तथा साइट्रॉनिक तरंगों की आवृत्ति एक-सी होने के कारण सचेतन स्तर पर जागृत मस्तिष्क द्वारा ये तरंगें सहज ही ग्रहण की जा सकती हैं।
डरहम विश्वविद्यालय इंग्लैंड के गणितज्ञ एवं भौतिकीविद् डॉ. गेरहार्ट डीटरीख वांसरमैन का कथन है, 'मनुष्य को भविष्य का आभास इसलिए होता रहता है कि विभिन्न घटनाक्रम टाइमलेस (समय-सीमा से परे) मेंटल पैटर्न (चिंतन क्षेत्र) के निर्धारणों के रूप में विद्यमान रहते हैं। ब्रह्मांड का हर घटक इन घटनाक्रमों से जुड़ा होता है, चाहे वह जड़ हो अथवा चेतन।' 
एक्सप्लोरिंग साइकिक फिनॉमिना बियांड मैटर' नामक अपनी चर्चित पुस्तक में डी स्कॉट रोगो लिखते हैं, 'विचारणाएँ तथा भावनाएँ प्राणशक्ति का उत्सर्जन (डिस्चार्ज ऑफ वाइटल फोर्स) हैं। यही उत्सर्जन अंतःकरण में यदा-कदा स्फुरणा बनकर प्रकट होते हैं। जब यह दो व्यक्तियों के बीच होता है तो टेलीपैथी कहा जाता है और यदि यह समय-सीमा से परे सुदूर भविष्य की सूचना देता है तो पूर्वाभास | इसका आधारभूत कारण कॉस्मिक अवेयरनेस यानी ब्राह्मी चेतना होता है।' इस चेतना का जिक्र आइंस्टीन के सापेक्षवाद के सिद्धांत में मिलता है। उन्होंने लिखा है, 'यदि प्रकाश की गति से भी तीव्र गति वाला कोई तत्व हो तो वहाँ समय रुक जाएगा। दूसरे शब्दों में, वहाँ बीते कल, आज और आने वाले कल में कोई अंतर न रहेगा।'......[[क्रमशः -शेष अगले भाग में ]]...........................................हर-हर महादेव 

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अतीन्द्रिय ज्ञान रहस्य [[ भाग-९ ]]

ध्यान साधना से संभव है टेलीपैथी
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परामनोविज्ञान के वैज्ञानिकों ने मानव मस्तिष्क में छुपे हुए रहस्यमयी शक्तियों पर शोध करते हुये पता लगाया कि मनुष्य के अवचेतन मन मे अलौकिक, अविश्वसनीय और अकल्पनीय शक्तियां विद्यमान है। यदि अवचेतन मन की उन शक्तियों को योग आदि क्रियाओं के द्वारा जागृत कर लिया जाय तो अनेकानेक कौतुकमयी चमत्कार खुद खुद होने लगते हैं जैसे- किसी व्यक्ति के जीवन के गुप्त रहस्यों का पता लगना, मन की बात जान लेना, किसी भी व्यक्ति से मिलते ही उस व्यक्ति के भुत, भविष्य तथा वर्तमान की जानकारी प्राप्त कर लेना या उसके साथ घटने वाली घटनाओं को स्पष्ट देख लेना इत्यादि क्रियायें साधक के जीवन में आकस्मीक होने लगती हैं। ऐसी चमत्कारिक घटनाओं को अतिंद्रिय शक्ति का चमत्कार कहा जाता है।

अमेरिकी मनोवैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में उठ रही तरंगों पर काफी शोध किया फलस्वरूप वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मन के अन्दर की अवचेतन मन को यदि क्रियाशील बनाया जाय तो बीना किसी आधुनिक उपकरणों तथा बीना किसी संचार 
माध्यमों के भी मन के तरंगों को पढ़ कर किसी भी व्यक्ति के मन के रहस्यों को जाना जा सकता है, तथा एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति के मन पर अपना प्रभाव डाल सकता है और उसे अपने मनोकुल कार्य करने को बाध्य कर सकता है। 
इसी आधार पर मनो वैज्ञानिकों ने अतिंद्रिय शक्तियों से सम्पन्न व्यक्तियों पर परिक्षण कर पता लगाया कि मनुष्य के मस्तिष्क में विचार उत्पन्न होते ही सारे आकाश मंडल में अल्फा तरंगों के रूप मे फैल जातीे है जीसे कोई भी व्यक्ति अपने अंर्तमन को जाग्रत कर उन अल्फा तरंगो को पकड़ कर किस्ी भी व्यक्ति के मन मे उठ रहे विचारों को पढ़ सकता है अथवा हजारों किलोमिटर दुर घट रही घटनाओं को स्पस्ट रूप से देख सकता है तथा भुत भविष्य तथा वर्तमान काल मे भी प्रवेश कर भुतकाल की जानकारी तथा भविष्य में घटने वाली घटनाओं को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 
प्राचीन योग शास्त्रों के अनुसार ध्यान साधना के द्वारा अतिंद्रय शक्तियों को जगाकर मानसिक शक्तियों के माध्यम से दुर दृष्टि, दुरबोध, विचार संप्रेषण एवं भुत भविष्य तथा वर्तमान दर्शन इत्यादि कार्य संपन्न किये जा सकते हैं।...........................................................हर-हर महादेव

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अतीन्द्रिय ज्ञान रहस्य [[ भाग-८ ]]

आपके भीतर ही छिपी है सारी क्षमताएं
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वर्तमान युग वैज्ञानिक युग है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह मान लिया गया है कि मनुष्य के प्रत्येक व्यवहार के पीछे एक रसायन होता है। कहीं-कहीं न्यूरोट्रांसमीटर होता है, कहीं-कहीं केमिकल होता है और वह हमारे व्यवहार को नियंत्रित करता है। जब तक हम रासायनिक परिवर्तन की प्रक्रिया को नहीं समझ लेते हैं, यौगिक रासायनिक परिवर्तन को प्रयोग में नहीं लाते हैं तो हमारे व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। जीवन में तीन बातें बहुत जरूरी होती है। जीवन जीने के लिए पहली बात है नियंत्रण की क्षमता। दूसरी बात है- ज्ञान की क्षमता। ज्ञान में उसके सारे पक्ष आ जाते हैं- समझ, अवधारणा आदि-आदि। तीसरी बात है- आनंद की अनुभूति। ये तीन बातें अगर हमारे बौध्दिक विकास के साथ नहीं होती है तो जीवन खतरनाक बन सकता है।
नियंत्रण की क्षमता
बौध्दिक विकास बहुत आवश्यक है- इसे कभी कम मूल्य नहीं दिया जा सकता, किन्तु किसी भी वस्तु को सब कुछ मान लेने से एक भ्रांत धारणा बन जाती है। आज कुछ ऐसा ही हो गया है। चिंतन का एक विपर्याय-सा दृष्टिगत हो रहा है या एक बौध्दिक भ्रांति पैदा हो गई है। मनुष्य को अध्ययन के बाद परिवार में, समाज में, समुदाय में जीना है और उसमें बौध्दिक विकास जितना काम देता है, व्यवहार की अपेक्षा भी कम हो जाती है। हमारे जीवन से दो महत्वपूर्ण शब्द जुड़े हुए हैं- दृष्टिकोण और व्यवहार। आदमी को व्यवहार से पहचाना जाता है। मानसिक संतोष और असंतोष, मानसिक तनाव और मानसिक तनाव से मुक्ति- ये जितने बुध्दि से जुड़े हुए नहीं हैं, उतने हमारे व्यवाहर से जुड़े हुए हैं।
एक स्वस्थ, शान्त और संतुलित जीवन जीने के लिए पहली शर्त है- नियंत्रण का क्षमता को विकसित करें। अपनी नियंत्रण क्षमता को बढ़ाएं। इसे कहीं बाहर से लाने की जरूरत नहीं है। हर व्यक्ति के पास नियंत्रण की क्षमता है। आज के मस्तिष्क-वैज्ञानिक इस बात को प्रतिपादित कर चुके हैं कि क्रोध की प्रणाली हमारे मस्तिष्क में है, तो क्रोध को नियंत्रण करने की प्रणाली भी हमारे मस्तिष्क मे ही हैं। दोनों प्रणालियां साथ-साथ काम कर रही हैं। इस बात को हम स्वयं कभी-कभी अनुभव करते हैं। जब क्रोध करते हैं तो भीतर में ही कहीं आवाज आती है- नहीं! अभी ठहरो। अभी इतना गुस्सा मत करो, इतना क्रोध मत करो। यह आवाज भीतर में कहां से आती है? यह उस प्रणाली से आती है जो नियंत्रण प्रणाली है, जो साथ-साथ नियंत्रण करती चली जाती है। हमारी जितनी वृत्तियां हैं, जितने आवेग हैं, उनके साथ उन सबकी नियंत्रण की प्रणालियां भी काम कर रही हैं।
मस्तिष्क के कुछ विशिष्ट भाग हमारे व्यवहार के नियामक हैं। उन्हें सक्रिय किया जाए तो हमारी नियंत्रण क्षमता बढ़ सकती है। ललाट के मध्य का भाग, जिसे प्रेक्षाध्यान में ज्योति केन्द्र कहा जाता है, हमारे संवेग क्षेत्र का महत्वपूर्ण भाग है। मनोविज्ञान की भाषा में यह कषाय-जागरण का क्षेत्र है। लिंबिक सिस्टम और हाईपोथेलेमस का यह क्षेत्र, जहां हमारी सारी भाव-धाराएं पैदा होती हैं और बढ़ती हैं, अगर इस क्षेत्र पर हमारा नियंत्रण होता है तो हम संवेगों की दृष्टि से, आवेगों की दृष्टि से बहुत आश्वस्त हो सकते हैं। जो व्यक्ति इन पीनियल ग्लैंड के क्षेत्र पर ध्यान करता है, उसकी नियंत्रण की क्षमता बढ़ जाती है। पीनियल ग्लैंड बहुत सारी वृत्तियों पर नियंत्रण करता है।
आयुर्विज्ञान में पिच्यूटरी ग्लैंड को मास्टर ग्लैंड माना गया है। विज्ञान के क्षेत्र में पीनियल ग्लैंड पर अभी काम हो रहा है। हमारा यह स्पष्ट अनुभव है कि पीनियल, पिच्यूटरी की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली है। भारतीय योगविद्या में इस स्थान को बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है। पिच्यूटरी की अपेक्षा भी पीनियल को अधिक महत्व दिया गया है। जितना नियंत्रण और जितनी शक्ति पीनियल के साथ है उतनी पिच्यूटरी के साथ नहीं है। अगर यह स्थान नियंत्रित होता है, तो वृत्तियों पर सहज नियंत्रण हो जाता है।
दस-बारह वर्ष के बच्चे में नियंत्रण की क्षमता ज्यादा होती है और सत्तर वर्ष के बूढ़े में नियंत्रण की शक्ति कम हो जाती है। बूढ़ा जितना चिड़चिड़ा होता है, बच्चा उतना चिड़चिड़ा नहीं होता। नाड़ी-तंत्र और ग्रंथि-तंत्र कमजोर होता है तो गुस्सा ज्यादा आने लगता है, व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है। वह नियंत्रण कम कर पाता है। इसका कारण बतलाया गया- दस बारह वर्षों तक पीनियल ग्लैंड बहुत सक्रिय रहती है और वह सारे हारमोन्सके स्रवण पर नियंत्रण भी रखती है। इसके बाद वह निष्क्रिय होना शुरू हो जाती है। उसकी निष्क्रियता कुछ समस्याएं पैदा करती हैं। यदि हम नियंत्रण की क्षमता को बढ़ा सकें तो हमारे जीवन का एक पक्ष बहुत अच्छा बन जाता है।
बौध्दिक विकास
जीवन का दूसरा पक्ष है ज्ञान। ज्ञान केवल बौध्दिक विकास पर ही आधारित नहीं है। हमारे मस्तिष्क में दो भाग हैं- दायां पटल और बांया पटल। बायां पटल, जिसे उपनिषद् मे अपराविद्या कहा गया- भाषा, गणित, तर्क आदि के लिए जिम्मेवार है और मस्तिष्क का दूसरा हिस्सा जिसे परविद्या कहा गया- अंतर्दृष्टि, चरित्र आदि के लिए जिम्मेवार है। आज के शिक्षा संस्थानों में बायां भाग तो बहुत सक्रिय हो जाता है, किन्तु दायां भाग सोया का सोया रह जाता है। इस असंतुलन ने अनेक समस्याएं पैदा कर दीं। आज सबकी शिकायत है कि हिंसा बहुत बढ़ रही है। अपराध बहुत बढ़ रहे हैं, आक्रमक वृत्ति बहुत बढ़ रही है। एक छोटा बच्चा भी आक्रामक हो रहा है। आक्रामकता सीधी झलक रही है, बढ़ रही है, हिन्दुस्तान में ही नहीं, पूरे विश्व में बढ़ रही है।
यह इसलिए हो रहा है कि दूसरे पक्ष की तरफ हमारा ध्यान नहीं है। नियंत्रण की तरफ हमारा ध्यान नहीं है। ज्ञान को जो दूसरा पक्ष है- अन्तर्दृष्टि को जगाना, अपनी अतीन्द्रिय चेतना को जगाना, उस ओर हमारी गति ही नहीं है। हमारे पास बहुत अतीन्द्रिय चेतना है। उसे जगाना आवश्यक है।
तीसरी बात है- आनंद। आज महाविद्यालयों के परिसर में मादक पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति बहुत ज्यादा बढ़ रही है। समाज में भी इसका प्रचलन बढ़ रहा है। यह प्रवृत्ति क्यों बढ़ रही है? इसके पीछे एक आकर्षण है। बिना आकर्षण कोई भी चीज नहीं बढ़ सकती। मनुष्य का इसमें आकर्षण नहीं है, जितना सिगरेट पीने में आकर्षण है। आज सगरेट और शराब जैसी चीजें तो गौण हो गई हैं, बहुत छोड़ी पड़ गई हैं। उसके स्थान पर बहुत से ड्रग्सऔर हेरोइन जैसे पदार्थ आ गए हैं। सिगरेट उनके सामने कुछ भी नहीं है। यह नशे की प्रवृत्ति इतनी क्यों चल रही है? इसका कारण है- आनंद की खोज। आदमी आनन्द चाहता है, मस्ती चाहता है। मनुष्य अपने जीवन में मस्ती के क्षण चाहता है। वे उसे नहीं मिलते हैं तो वह नशा करता है, जिससे कुछ समय तक वह मस्ती में डूब जाता है। यह बहुत बड़ा आकर्षण है, जिसमें खिंचा वह नशे की चीजों का प्रयोग करता है।
विकल्प हमारे भीतर है
प्रश्न है- क्या इसका विकल्प नहीं है? विकल्प हमारे भीतर है। आनन्द का विशुध्द विकल्प हमारे भीतर है अगर हम भीतर के आनन्द को नहीं जगाएंगे तो नशे में जाना पड़ेगा। कोई उपाय नहीं है। इसे कभी रोका नहीं जा सकता। अगर भीतर के आनन्द को जगा लें, तो फिर नशे में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतीत और भविष्य से मुक्त होकर वर्तमान में जीना आनन्द के स्रोत को प्रकट करने का साधन है। भूत और भविष्य- इन दोनों से हटकर आदि वर्तमान की धारा में चल सकें तो इतना आनन्द उद्भूत होगा कि फिर नशा करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
आप बहुत तेज श्वास लो। सिगरेट का कश खींचते हो, वैसे ही जोर से श्वास लो और बहुत तेजी से श्वास निकालो जैसे धुएं का गुबार निकालते हो। कुछ समय बाद ही आनन्द की अनुभूति होने लगेगी और सिगरेट के प्रति वितृष्णा जाग जाएगा।
आनन्द का स्रोत
श्वास के साथ हमारी चेतना जुड़ जाती है तो हम वर्तमान में जीना सीख जाते हैं। आदमी वर्तमान में जीना सीख लेता है तो आनन्द का भीतरी स्रोत खुल जाता है। जब बाहर से आनन्द लेने की जरूरत बहुत कम हो जाती है तब न सिगरेट की जरूरत होती है और न नियम का अतिक्रमण कर मनोरंजन के साधनों को अपनाने की जरूरत होती है। अपेक्षाएं बहुत कम हो जाती हैं। हम इन मादक पदार्थों के सेवन की बात को कानूनी नियंत्रण या ऊपर के आश्वासन को थोपकर कभी नहीं मिटा सकते, जब तक हम भीतर के आनन्द को नहीं जगा लेते। भीतर का आनन्द जाग सकता है, वर्तमान में जीने के अभ्यास से। जिस व्यक्ति ने वर्तमान के क्षण को देखना शुरू कर दिया, वर्तमान की धारा के साथ अपने आपको प्रवाहित करना सुरू कर दिया, उसे भीतर से इतना आनन्द आएगा कि जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
हमारी नियंत्रण की क्षमता के स्रोत, हमारे अंतज्र्ञानका, अंतर्दृष्टि का स्रोत और हमारे आनन्द का स्रोत-ये तीन स्रोत हमारे भीतर हैं। इन पर आवरण या कूड़ा-करकट जमा हुआ है। अगर हम प्रयोग के द्वारा उस आवरण और कूड़े-करकट के ढेर को हटा सकें और उन स्रोतों को प्रकट कर सकें, तो एक नए जीवन का प्रारंभ हो सकता है, नए व्यापार का निर्माण हो सकता है, नई पीढ़ी का निर्माण संभव हो सकता है। उस पीढ़ी में, उस व्यक्ति में, जीवन की सारी सफलताओं का विकास ही नहीं होगा- सामाजिक स्वास्थ्य और राष्ट्रीय चरित्र का विकास भी होगा। वह व्यक्ति ऐसा बन जाएगा कि बाहर से गर्मी आ रही है, किन्तु कोई प्रभाव नहीं- सर्वथा अप्रभावित अवस्था। हम प्रयोग द्वारा मस्तिष्क को बाह्य वातावरण से अप्रभावित बना सकते हैं।
वर्तमान वैज्ञानिक बताते हैं- एक सामान्य व्यक्ति अपनी मस्तिष्कीय क्षमताओं का सात-आठ प्रतिशत भाग काम में लेता है। शेष सारी मस्तिष्क की क्षमताएं सोई रहती है। थोड़ा बड़ा आदमी होता है तो वह नौ-दस प्रतिशत काम में लेता है, ज्यादा से ज्यादा दस-बारह प्रतिशत काम में ले लेता है। दस-बारह प्रतिशत मस्तिष्कीय क्षमताओं का प्रयोग करने वाला आदमी दुनिया का असाधारण व्यक्ति माना जाता है। हमारी अस्सी-नब्बे प्रतिशत क्षमताएं सोई की सोई पड़ी हैं। अगर हम उन्हें जगा सकें तो दुनिया का नक्शा बदल जाए। उन्हें जगाने का उपाय बाहर नहीं है। उन्हें जगाने के सारे उपाय हमारी भीतर हैं। यह बात जिस दिन समझ में आएगी, हमारे व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास सहज संभव बन जाएगा।............................................................हर-हर महादेव 

विशेष - किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच .