Sunday 26 November 2017

तांत्रिक और तंत्र से भय क्यों

तांत्रिक और तंत्र से भय क्यों
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क्यों डरते हैं लोग तंत्र के नाम से
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समाज में तांत्रिक या तंत्र का नाम सुनते ही लोगों के मन में एक डरावना ,वीभत्स विचार उठता है |उनके मन में एक दाढ़ी -मूछें बढाए ,काले अथवा लाल कपडे पहने ,डरावने क्रिया कलाप करता ,लाल लाल आंखे ,नशे आदि में लिप्त ,झूमता ,बड़बडाता ,उद्दंड ,क्रोधी व्यक्ति की आकृति उभरती है |कभी उनके मन में खोपड़ी रखने ,हड्डियों का प्रयोग करने ,श्मशान पूजने वाले ,गंदे क्रियाकर्म करने वाले ,अहित करने वाले , गाली गलौच करने वाले व्यक्ति का काल्पनिक चित्र उभरता है जो डरावना है |तंत्र का नाम सुनकर भय उत्पन्न होता है की यह मात्र अहित या नुक्सान करने का जरिया है और इसको जानने वाले बुरे होते हैं |पर क्या यह सच है ? क्या वास्तव में तंत्र ऐसा ही है ? क्या तंत्र को जानने वाला जिसे तांत्रिक कहा जाता है ऐसा ही होता है ? ,नहीं यह सच नहीं है यद्यपि लोगों की उपरोक्त कल्पना भी गलत नहीं है ,क्योंकि उनके साने कुछ ऐसे उदाहरण और अनुभव पूर्व में रहे हैं जो उन्होंने लोगों से सुने हैं |किस्से कहानियों में भी काल्पनिक भय दिखाया गया है और अतिशयोक्ति से भी उन्हें भरा गया है |
किस्से कहानियों में जादू ,टोने ,तंत्र -मंत्र ,तांत्रिक -मान्त्रिक को विशेष पहनावे वाला ,विशेष क्रिया करने वाला ,सामाज से अलग ,चमत्कारी शक्तियों का स्वामी और अक्सर डरावने काम करने वाला ,भूतों -प्रेतों से जुड़ा रहने वाला दिखाया गया होता है |समाज में पूर्व के छोटे अनुभव भी कल्पनाओं के मिलते जाने पर विस्तार ले बड़े हो जाते हैं |मूल शास्त्रों को छोड़ दें तो अधिकतर किताबें भी तंत्र और तांत्रिकों के बारे में केवल वही लिखती रहीं हैं जो उनकी रोजमर्रा की दिनचर्या से जुडी हों |तंत्र के मात्र एक भाग पर ही अधिकतर किताबों का जोर रहा है जिसमे वशीकरण ,मारण ,मोहन जैसे षट्कर्म रहते हैं |टोटकों ,टोनों ,उपायों पर ही अधिकतर किताबें लिखी जाती हैं |मूल तंत्र पर ,मूल ज्ञान पर कम लोग लिखते हैं ,क्योकि यह गंभीर विषय है और इन्हें कम लोग पढ़ते हैं ,जिससे कम व्यवसाय होता है |अधिकतर लेखक खुद तो साधक होते नहीं |वह यहाँ वहां से टुकड़े जोड़कर ,कुछ अपनी कल्पना जोड़कर ,कुछ किस्से कहानियों की काल्पनिक बाते जोडकर एक किताब लिख देते हैं .जो बिके और उन्हें आय हो |साधक के पास न इतना समय होता है ,न उसे रूचि होती है की वह किताबें लिखे और उससे आय करे |तंत्र की गोपनीयता का सिद्धांत भी वास्तविक साधक को यह नहीं करने देता |अनुभव को गुरु के अतिरिक्त किसी से व्यक्त नहीं किया जा सकता इसलिए भी वह किताबें नहीं लिख पाते |जो अधिकतर अनुभव लिखते हैं वह या तो काल्पनिक होते हैं या खुद को बड़ा दिखाने का प्रयास |इन सबसे भी समाज और लोगों में भय का माहौल बना है |
वास्तव में तंत्र मात्र एक पद्धति है ,जिसमे मंत्र -यन्त्र -पदार्थ और शरीर को संयुक्त कर दिया गया है |मंत्र और मान्त्रिक एक अलग पद्धति है ,यन्त्र और यांत्रिक अलग पद्धति है ,पदार्थ का तांत्रिक उपयोग आयुर्वेद और यज्ञ पद्धति से लिया गया ,शरीर का उपयोग ,योग में सदैव से रहा जिसे लेकर एक विशेष पद्धति तंत्र का आविष्कार किया गया |तंत्र का उपयोग वैदिक काल से ही रहा है किन्तु यह मात्र ऋषियों के व्यक्तिगत साधना तक सीमित रहा |मोक्ष ,मुक्ति के इच्छुक ऋषि -महर्षि और जंगलों ,पहाड़ों में रहने वाले साधक इसका प्रयोग अपनी साधना में करते रहे हैं |मूल साधना मोक्ष की साधना है जिसका उस समय समाज से कोई लेना देना नहीं था |बाद के क्रम में इनमे से कुछ उपयोगी अंश समाज के लिए दिए गए |समय क्रम में यह समाज में बढ़ता गया |कलयुग में सामाजिक विक्षोभ और अंतर्द्वंद में शक्तियों की सहायता लेने के उद्देश्य से इनका अधिक उपयोग भौतिक जरूरतों के लिए होने लगा |इसी समय पुराणों आदि की रचनाएं हुई |अलग अलग अनेक शास्त्र लिखे गए |मूल शास्त्रों में तोड़ मरोड़ भी हुए और भौतिक लिप्सा में शक्तियों के दुरुपयोग भी हुए |तंत्र कृष्ण के समय में भी था ,तंत्र राम के भी समय में था ,तंत्र बौद्ध धर्म में भी है ,तंत्र जैन धर्म में भी है और वास्तव में तंत्र ही मूल शक्ति साधना है |तंत्र का उद्देश्य जीवन को सरल -सुखद रखते हुए मुक्ति अथवा मोक्ष प्राप्त करना है ,न की मारण -मोहन -वशीकरण करना |यह सब षट्कर्म तो तंत्र का मात्र एक प्रतिशत हिस्सा है ,जिसका मूल तंत्र से कोई लेना देना ही नहीं है |टोटके तो सामाजिक लोगों द्वारा बनाए गए सुविधा उपाय हैं |वास्तव में टोटका करने वाले ,षट्कर्म करने वाले तो तांत्रिक हैं ही नहीं |यह तो मात्र भौतिक लोग हैं ,क्योंकि इन सभी क्रियाओं का मोक्ष अथवा मुक्ति से कोई लेना देना ही नहीं है |इसी प्रकार ,भूत -प्रेत ,बेताल ,पिशाच ,कर्ण पिशाचिनी ,जिन्न ,भैरव ,भैरवी ,श्मशान ,यक्षिणी ,अप्सरा ,यक्ष ,योगिनी आदि का भी मोक्ष अथवा मुक्ति से कोई लेना देना नहीं होता |अप्सरा ,यक्षिणी ,बेताल की साधना कुछ साधना निर्विघ्न साधना संपन्न करने और साधना में आवश्यक सुविधा प्राप्त करने के लिए करते हैं किन्तु अन्य शक्तियों का उपयोग मात्र भौतिक लिप्सा और दूसरों के कार्य के लिए ही किया जाता है जिसका मुक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं |अर्थात यह लोग भी वास्तविक तंत्र साधक नहीं जो जीवन भर मात्र इनकी ही साधना करते रहें |
तंत्र से डरना एक भ्रम है ,जबकि हर व्यक्ति खुद एक तंत्र पूजक होता है |हर घर में तंत्र पूजा होती है किन्तु फिर भी लोग तंत्र के नाम पर डरते हैं ,तांत्रिक को बुरा कहते हैं ,तंत्र को भय योग्य मानते हैं |तंत्र शक्ति पूजा है |शक्ति प्राप्त करना है |सभी शक्ति साधना तंत्र के अंतर्गत ही आती हैं |आज के समय में हर घर में पूजे जा रहे देवी -देवता तंत्र की ही शक्तियाँ हैं |मूल वैदिक शक्तियाँ तो विष्णु ,इंद्र ,अग्नि ,वरुण ,गायत्री ,सूर्य ,रूद्र आदि हैं |आज इनकी पूजा कितने घरों में हो रही है ?? |आज तो हर घर में दुर्गा ,काली ,शिव ,रूद्र ,हनुमान ,महाविद्या ,गणेश आदि की पूजा हो रही है ,जो सभी तंत्र की शक्तियाँ हैं |दस महाविद्यायें ,दुर्गा के भिन्न रूप आदि यद्यपि अलग अलग क्षेत्रों में पहले से पूजित रहे हैं किन्तु इनका एक साथ लेखन क्रमशः मार्कंडेय पुराण और ब्रह्म  पुराण में हुआ है जो लगभग हजार वर्ष पूर्व की कृतियाँ हैं |हनुमान त्रेता के अवतार हैं |इसी तरह उन शक्तियों की आज अधिकतर पूजा हो रही जो किसी न किसी रूप में शिव और शिव परिवार से जुड़ा है |शिव तंत्र के अधिष्ठाता हैं ,आदि गुरु हैं ,मूल वक्ता हैं ,मूल उत्पत्तिकर्ता हैं |इनसे अथवा इनके परिवार से जुड़े किसी शक्ति की आराधना -उपासना तंत्र के ही अंतर्गत आती है |दुर्गा एक शक्ति हैं और इनकी सम्पूर्ण पूजा पद्धति तंत्र पर आधारित है |हनुमान तक शिव के अंश हैं ,भैरव शिव के ही अंश हैं |सभी पूजाओं में इनके अंश होते हैं |किसी भी तरह की बलि दिया जाना तंत्र है |शिव को विल्व पत्र चढ़ाना तंत्र है ,देवी की विशेष फूल ,विल्व पत्र से पूजा करना तंत्र है |विशेष वनस्पतियों का चढ़ाया जाना तंत्र है |विशेष वनस्पति अथवा लकड़ी से हवन तंत्र है |शिवलिंग ,देवी ,देवता पर विशेष पदार्थ चढ़ाना ,जलाना ,अभिशेक तंत्र है |विशेष पदार्थ की मूर्ती बनाना तंत्र है |पूजन में यन्त्र का प्रयोग तंत्र है |पूजन में मुद्रा का प्रयोग तंत्र है |मंत्र के साथ इनका प्रयोग तंत्र है |हर घर में ऐसा होता है तो फिर तंत्र डरावना कैसे |सभी लोग तंत्र पूजक हुए ,फिर तंत्र से भय क्यों |
वास्तव में जो भय का वातावरण बना वह किस्सों ,कहानियों ,कल्पनाओं का ही अधिक मिश्रण है |पूर्व के समय में अधिक लोग तंत्र के विषय में ,शक्ति साधना के विषय में कम जानते थे |कुछ सामान्य लोगों का अहित किन्ही तंत्र के जानकारों द्वारा शक्तियों के माध्यम से हुआ जिससे यह बातें उत्पन्न हुई |आज भी कुछ तंत्र जानकार छुद्र अथवा शक्तियों द्वारा लोगों का हित अहित कर देते हैं ,इसका मतलब यह नहीं की तंत्र डरावना हो गया ,बुरा हो गया |यह व्यक्ति विशेष की कमी है जो उसका वह दुरुपयोग करता है |व्यक्ति पर निर्भर करता है की शक्ति का सदुपयोग करे या दुरुपयोग |दुरुपयोग करने वालों का मन शुद्ध नहीं होता जबकि मूल साधक राग -द्वेष से दूर रहता है |तंत्र मूलतः उच्च शक्तियों की साधना कर उनका उपयोग करते हुए मुक्ति का मार्ग पाना है |अंतिम उद्देश्य वह आराध्य शक्ति भी नहीं जिसकी वह अधिकतर समय आराधना करता है ,अपितु मोक्ष पाना अंतिम उद्देश्य होता है |उच्च शक्ति की आराधना से मुक्ति तो हो सकती है और उसके लोक तक व्यक्ति पहुँच सकता है किन्तु मोक्ष उससे आगे की चीज है |यह उस शक्ति के सहयोग से कुंडलिनी जागरण पर ही संभव होती है |तंत्र का मूल उद्देश्य यही होता है |टोटके करने वाले ,भूत -प्रेत -पिशाच साधने वाले ,जीवन भर इनमे ही लगे रहने वाले वास्तव में तंत्र साधक हैं ही नहीं |वह तो अपनी जरूरतों के लिए इन छुद्र शक्तियों की पूजा करते हैं |न इनकी खुद कभी मुक्ति होती है ,न ये किसी का वास्तविक भला ही कर सकते हैं |
कोई भी व्यक्ति यदि किसी उच्च शक्ति या महाविद्या की पूजा ,आराधना ,उपासना अच्छे से करता है ,अपने कुलदेवता -कुलदेवी की यथासमय पूजा करता है तो उसे किसी भी तरह के तंत्र /टोटकों से डरने की कोई आवश्यकता नहीं |यह उसका कुछ नहीं कर सकते |हर घर में शक्ति आराधना आज हो रही |यदि वह ठीक ढंग से होती रहे तो कोई तंत्र मंत्र सामान्य अवस्था में काम नहीं करेगा |सारा खेल शक्ति संतुलन का होता है |तांत्रिक भी इन्ही शक्तियों को पूजता है ,अधिकतर तो इनसे भी छोटी शक्तियों को पूजते हैं |महाविद्या तो बहुत ही कम पूजते हैं जबकि हर घर में उच्च शक्तियों की ही पूजा होती है |तो फिर तंत्र जानकार कैसे अहित कर लेगा |या तो आपकी पूजा आराधना में शक्ति नहीं है या आपके कुलदेवता सुरक्षा नहीं कर रहे तभी ऐसा कुछ होता है की कोई छोटी शक्ति पूजने वाला किसी का अहित कर दे |अधिकतर तो कारण कुछ और ही होते हैं |ग्रह -गोचर खराब होने से ,अपनी कमियों से उत्पन्न समस्याओं को भी लोग तंत्र अभिचार समझ डर जाते हैं |ठीक है टोटके होते हैं ,इनमे शक्ति बी होती है ,किन्तु हमेशा ,हर जगह यह ही नहीं प्रभावी होते |आपके ईष्ट में शक्ति है तो कोई टोना -टोटका आपका कोई अहित नहीं कर सकता |भय का वातावरण ,आपके मन में बैठा हुआ डर ही मनोबल ,आत्मविश्वास कमजोर करता है जिससे कोई क्रिया अधिक प्रभाव दिखा जाती है |यदि कोई व्यक्ति डरे नहीं तो सामने खडा प्रेत भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता |भय ही व्यक्ति की शक्ति कम कर देता है जिससे कोई शक्ति या क्रिया प्रभावी हो जाती है |

तंत्र में डरने जैसा कुछ है ही नहीं और आज हर व्यक्ति कह सकता है की वह तांत्रिक है |वास्तव में हर व्यक्ति तांत्रिक है ,क्योंकि वह तंत्र की शक्तियों को पूजा रहा है |दुर्गा ,गणेश ,शिव ,रूद्र ,भैरव ,काली ,बगलामुखी ,कमला आदि को जो भी पूजा रहा वह सभी तांत्रिक हैं ,क्योंकि इनकी पूजा वह जान रहा ,इनका तंत्र वह जान रहा |तंत्र को जानने वाला ही तो तांत्रिक कहलाता है ,तो हर व्यक्ति जो शक्ति पूज रहा तांत्रिक है |फिर तंत्र से डर कैसा |क्या खुद की पूजा से ही आप डर रहे |तांत्रिक को बुरा भला समझ रहे अर्थात खुद को भी बुरा -भला समझ रहे |सोचिये !!!अंतर मात्र इतना ही है एक विशेष तांत्रिक और आपमें की आपकी पूजा में शक्ति कम है ,उसकी पूजा में शक्ति अधिक है |दोनों की देविया सामान हो सकती हैं ,अंतर मात्र पूर्ण जानकारी और एकाग्रता के साथ साधना से उत्पन्न शक्ति का होता है |आप खुद को शक्तिशाली कीजिये और भय को बाहर निकालिए |आप खुद तांत्रिक हैं और यह आप खुद पूज रहे इसका मतलब है की यह बुरा नहीं है |बुरे वह लोग हैं जो छोटी शक्तियों को पूज कर उसका दुरुपयोग करते हैं |वास्तविक तांत्रिक वह नहीं आप हैं |आप उच्च शक्ति को पूज रहे और वह तो छोटी शक्तियों को पूज रहे |आपको मुक्ति मिल सकती है आपकी शक्ति पूजा से ,उनकी मुक्ति हो ही जाय जरुरी नहीं ,क्योंकि उनकी शक्ति अपने ही लोक में उन्हें ले जाने का प्रयास करेगी |जाहिर है आप श्रेष्ठ हैं और डरने की कोई बात नहीं |न तंत्र डरावना है न तांत्रिक |व्यक्ति बुरा हो सकता है |माध्यम तो उच्च है ,सर्वोच्च है |...........................................हर -हर महादेव 

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Thursday 23 November 2017

कुंजिका स्तोत्र’ और ‘बीसा यन्त्र’ का अनुष्ठान

कुंजिका स्तोत्र’ और बीसा यन्त्र’ का अनुष्ठान
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प्राण-प्रतिष्ठा करने के पर्व
------------------------------ चन्द्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण, दीपावली के तीन दिन (धन तेरस, चर्तुदशी, अमावस्या), रवि-पुष्य योग, रवि-मूल योग तथा महानवमी के दिन रजत-यन्त्र’ की प्राण प्रतिष्ठा, पूजादि विधान करें। इनमे से जो समय आपको मिले, साधना प्रारम्भ करें। 41 दिन तक विधि-पूर्वक पूजादि करने से सिद्धि होती है। 42 वें दिन नहा-धोकर अष्टगन्ध (चन्दन, अगर, केशर, कुंकुम, गोरोचन, शिलारस, जटामांसी तथा कपूर) से स्वच्छ 41 यन्त्र बनाएँ। पहला यन्त्र अपने गले में धारण करें। बाकी आवश्यकतानुसार बाँट दें।
प्राण-प्रतिष्ठा विधि
---------------------- सर्व-प्रथम किसी स्वर्णकार से 15 ग्राम का तीन इंच का चौकोर चाँदी का पत्र (यन्त्र) बनवाएँ। अनुष्ठान प्रारम्भ करने के दिन ब्राह्म-मुहूर्त्त में उठकर, स्नान करके सफेद धोती-कुरता पहनें। कुशा का आसन बिछाकर उसके ऊपर मृग-छाला बिछाएँ। यदि मृग छाला मिले, तो कम्बल बिछाएँ, उसके ऊपर पूर्व को मुख कर बैठ जाएँ।
अपने सामने लकड़ी का पाटा रखें। पाटे पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक थाली (स्टील की नहीं) रखें। थाली में पहले से बनवाए हुए चौकोर रजत-पत्र को रखें। रजत-पत्र पर अष्ट-गन्ध की स्याही से अनार या बिल्व-वृक्ष की टहनी की लेखनी के द्वारा यन्त्र लिखें।
पहले यन्त्र की रेखाएँ बनाएँ। रेखाएँ बनाकर बीच में लिखें। फिर मध्य में क्रमानुसार 7, 2, 3 8 लिखें। इसके बाद पहले खाने में 1, दूसरे में 9, तीसरे में 10, चैथे में 14, छठे में 6, सावें में 5, आठवें में 11 नवें में 4 लिखें। फिर यन्त्र के ऊपरी भाग पर ऐं ॐ’ लिखें। तब यन्त्र की निचली तरफ क्लीं ॐ’ लिखें। यन्त्र के उत्तर तरफ श्रीं ॐ’ तथा दक्षिण की तरफ क्लीं ॐ’ लिखें।
प्राण-प्रतिष्ठा
--------------- अब यन्त्र’ की प्राण-प्रतिष्ठा करें। यथा- बाँयाँ हाथ हृदय पर रखें और दाएँ हाथ में पुष्प लेकर उससे यन्त्र’ को छुएँ और निम्न प्राण-प्रतिष्ठा मन्त्र को पढ़े -
आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं हंसः सोऽहं मम प्राणाः इह प्राणाः, आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं हंसः सोऽहं मम सर्व इन्द्रियाणि इह सर्व इन्द्रयाणि, आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं हंसः सोऽहं मम वाङ्-मनश्चक्षु-श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राण इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।”
यन्त्र’ पूजन
--------------- इसके बाद रजत-यन्त्र’ के नीचे थाली पर एक पुष्प आसन के रूप में रखकर यन्त्र’ को साक्षात् भगवती चण्डी स्वरूप मानकर पाद्यादि उपचारों से उनकी पूजा करें। प्रत्येक उपचार के साथ समर्पयामि चन्डी यन्त्रे नमः’ वाक्य का उच्चारण करें। यथा-
1. पाद्यं (जल) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 2. अध्र्यं (जल) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 3. आचमनं (जल) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 4. गंगाजलं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 5. दुग्धं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 6. घृतं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 7. तरू-पुष्पं (शहद) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 8. इक्षु-क्षारं (चीनी) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 9. पंचामृतं (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 10. गन्धम् (चन्दन) समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 11. अक्षतान् समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 12 पुष्प-माला समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 13. मिष्ठान्न-द्रव्यं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 14. धूपं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 15. दीपं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 16. पूगी फलं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 17 फलं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 18. दक्षिणा समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः। 19. आरतीं समर्पयामि चण्डी-यन्त्रे नमो नमः।
तदन्तर यन्त्र पर पुष्प चढ़ाकर निम्न मन्त्र बोलें-
पुष्पे देवा प्रसीदन्ति, पुष्पे देवाश्च संस्थिताः।।
अब सिद्ध कुंजिका स्तोत्र’ का पाठ कर यन्त्र को जागृत करें। यथा-
।।शिव उवाच।।
श्रृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि, कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्र प्रभावेण, चण्डी जापः शुभो भवेत।।
कवचं नार्गला-स्तोत्रं, कीलकं रहस्यकम्।
सूक्तं नापि ध्यानं , न्यासो वार्चनम्।।
कुंजिका पाठ मात्रेण, दुर्गा पाठ फलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि ! देवानामपि दुलर्भम्।।
मारणं मोहनं वष्यं स्तम्भनोव्च्चाटनादिकम्।
पाठ मात्रेण संसिद्धयेत् कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम्।।
मन्त्र ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।
नमस्ते रूद्र रूपायै, नमस्ते मधु-मर्दिनि।
नमः कैटभ हारिण्यै, नमस्ते महिषार्दिनि।।1
नमस्ते शुम्भ हन्त्र्यै , निशुम्भासुर घातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जप ! सिद्धिं कुरूष्व मे।।2
ऐं-कारी सृष्टि-रूपायै, ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी काल-रूपिण्यै, बीजरूपे नमोऽस्तु ते।।3
चामुण्डा चण्डघाती , यैकारी वरदायिनी।
विच्चे नोऽभयदा नित्यं, नमस्ते मन्त्ररूपिणि।।4
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नीः, वां वीं वागेश्वरी तथा।
क्रां क्रीं श्रीं में शुभं कुरू, ऐं ऐं रक्ष सर्वदा।।5
ॐॐॐ कार-रूपायै, ज्रां ज्रां ज्रम्भाल-नादिनी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिकादेवि ! शां शीं शूं में शुभं कुरू।।6
ह्रूं ह्रूं ह्रूंकार रूपिण्यै, ज्रं ज्रं ज्रम्भाल नादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे ! भवानि ते नमो नमः।।7
अं कं चं टं तं पं यं शं बिन्दुराविर्भव।
आविर्भव हं सं लं क्षं मयि जाग्रय जाग्रय
त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरू कुरू स्वाहा।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा।।8
म्लां म्लीं म्लूं दीव्यती पूर्णा, कुंजिकायै नमो नमः।
सां सीं सप्तशती सिद्धिं, कुरूश्व जप-मात्रतः।।9
।।फल श्रुति।।
इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मन्त्र-जागर्ति हेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं, गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देवि ! हीनां सप्तशती पठेत्।
तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
फिर यन्त्र की तीन बार प्रदक्षिणा करते हुए यह मन्त्र बोलें-
यानि कानि पापानि, जन्मान्तर-कृतानि च।
तानि तानि प्रणश्यन्ति, प्रदक्षिणं पदे पदे।।
प्रदक्षिणा करने के बाद यन्त्र को पुनः नमस्कार करते हुए यह मन्त्र पढ़े-
एतस्यास्त्वं प्रसादन, सर्व मान्यो भविष्यसि।
सर्व रूप मयी देवी, सर्वदेवीमयं जगत्।।
अतोऽहं विश्वरूपां तां, नमामि परमेश्वरीम्।।

अन्त में हाथ जोड़कर क्षमा-प्रार्थना करें। यथा-
अपराध सहस्त्राणि, क्रियन्तेऽहर्निषं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा, क्षमस्व परमेश्वरि।।
आवाहनं जानामि, जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव जानामि, क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वरि !
यत् पूजितम् मया देवि ! परिपूर्णं तदस्तु मे।।
अपराध शतं कृत्वा, जगदम्बेति चोच्चरेत्।
या गतिः समवाप्नोति, तां ब्रह्मादयः सुराः।।
सापराधोऽस्मि शरणं, प्राप्यस्त्वां जगदम्बिके !
इदानीमनुकम्प्योऽहं, यथेच्छसि तथा कुरू।।
अज्ञानाद् विस्मृतेर्भ्रान्त्या, यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तत् सर्वं क्षम्यतां देवि ! प्रसीद परमेश्वरि !
कामेश्वरि जगन्मातः, सच्चिदानन्द-विग्रहे !
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या, प्रसीद परमेश्वरि !
गुह्याति-गुह्य-गोप्त्री त्वं, गुहाणास्मत् कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि ! त्वत् प्रसादात् सुरेश्वरि।।............................................................................हर-हर महादेव

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