Wednesday, 4 October 2017

तंत्र

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तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। तंत्र ग्रंथ भगवान शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। भारतीय साहित्य में 'तंत्र' की एक विशिष्ट स्थिति है, पर कुछ साधक इस शक्ति का दुरुपयोग करने लग गए, जिसके कारण यह विद्या बदनाम हो गई| गुरु गोरखनाथ के समय में तंत्र अपने आप में एक सर्वोत्कृष्ट विद्या और समाज का प्रत्येक वर्ग उसे अपना रहा था! जीवन की जटिल समस्याओं को सुलझाने में केवल तंत्र ही सहायक हो सकता हैं

मंत्र माध्यम ,यन्त्र माध्यम और तंत्र माध्यम से हम अपने जीवन को भी सुखी-संपन्न बना सकते हैं ,विघ्न बाध्हओं का निराकरण कर सकते हैं और साथ हो अंतिम लक्ष्य मोक्ष या मुक्ति भी प्राप्त कर सकते हैं |तीनो की पद्धतियाँ भिन्न होती हैं |तीनो का विकास भी क्रमशः भिन्न परिस्थितियों में हुआ ,यद्यपि परिकल्पना तीनो की लगभग एक ही समय की है |वैदिक काल से ही तीनो का विकास हुआ है पर अलग अलग स्थानों और परिस्थितियों में | हम मंत्र के माध्यम से देवता को अनुकूल बना सकते हैं, मंत्र का तात्पर्य हैं, देवता की प्रार्थना करना,साथ में अपनी भावना के साथ हाथ जोड़ना, निवेदन करना, भोग लगाना, आरती करना, धुप अगरबत्ती करना, पर यह आवश्यक नहीं कि लक्ष्मी प्रसन्ना हो ही और हमारा घर अक्षय धन से भर दे|यह आपकी भावना की प्रबलता ,मंत्र के विन्यास ,मंत्र के नाद के साथ आपकी आतंरिक स्थिति पर निर्भर करता है |यन्त्र माध्यम में यन्त्र को आधार मानकर देवता की एक ज्यामितीय संरचना में आराधना की जाती है ,साथ में मंत्र भी उपयोग होते हैं ,दोनों का साथ उपयोग किया जाना भी तंत्र कहा जाता है पर वस्तुतः तंत्र भिन्न है |यन्त्र और मंत्र के साथ साधना उपासना पर ,केवल मंत्र से अधिक जल्दी सफलता की सम्भावना होती है |यन्त्र पर मंत्र के साथ यौगिक-शरीर को सम्मिलित कर जब उपासना की जाती है तो वह तंत्र बन जाता है |आधुनिक युग में केवल तंत्र ही सफलतादायक है | तंत्र से से यदि आपमें हिम्मत हैं, साहस हैं, हौसला हैं, तो क्षमता के साथ लक्ष्मी की आँख में आँख डालकर आप खड़े हो जाते हैं और कहते हैं कि मैं यह तंत्र साधना कर रहा हूँ, मैं तुम्हें तंत्र में आबद्ध कर रहा हूँ और तुम्हें हर हालत में सम्पन्नता देनी हैं, और देनी ही पड़ेगी!

मानता अथवा यन्त्र प्रकार से स्तुति या प्रार्थना करने से देवता प्रसन्ना भी हो परन्तु तंत्र से तो देवता बाध्य होते ही हैं, उन्हें वरदान देना ही पड़ता हैं! मंत्र और तंत्र दोनों ही पद्धतियों में साधना विधि, पूजा का प्रकार, न्यास सभी कुछ लगभग एक जैसा ही होता हैं, बस अंतर होता हैं, तो दोनों के मंत्र विन्यास में, तंत्रोक्त मंत्र अधिक तीक्ष्ण होता हैं! जीवन की किसी भी विपरीत स्थिति में तंत्र अचूक और अनिवार्य विधा हैं.|

आज के युग में हमारे पास इतना समय नहीं हैं, कि हम बार-बार हाथ जोड़े, बार-बार घी के दिए जलाएं, बार-बार भोग लगायें, लक्ष्मी की आरती उतारते रहे और बीसों साल दरिद्री बने रहे,| इसलिए तंत्र ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, कि लक्ष्मी बाध्य हो ही जायें और कम से कम समय में सफलता मिले |बड़े ही व्यवस्थित तरीके से मंत्र और साधना करने की क्रिया तंत्र हैं! किस ढंग से मंत्र का प्रयोग किया जायें, साधना को पूर्णता दी जायें, उस क्रिया का नाम तंत्र हैं | तंत्र के माध्यम से कोई भी गृहस्थ वह सब कुछ हस्तगत कर सकता हैं, जो उसके जीवन का लक्ष्य हैं! तंत्र तो अपने आप में अत्यंत सौम्य साधना का प्रकार हैं, पंचमकार तो उसमें आवश्यक हैं ही नहीं! बल्कि इससे परे हटकर जो पूर्ण पवित्रमय सात्विक तरीके, हर प्रकार के व्यसनों से दूर रहता हुआ साधना करता हैं तो वह तंत्र साधना हैं!

जनसाधारण में इसका व्यापक प्रचार होने का एक कारण यह भी था कि तंत्रों के कुछ अंश समझने में इतने कठिन हैं कि गुरु के बिना समझे नहीं जा सकते अतः ज्ञान का अभाव ही शंकाओं का कारण बना। तंत्र शास्त्र वेदों के समय से हमारे धर्म का अभिन्न अंग रहा है। वैसे तो सभी साधनाओं में मंत्र, तंत्र एक-दूसरे से इतने मिले हुए हैं कि उनको अलग-अलग नहीं किया जा सकता, पर जिन साधनों में तंत्र की प्रधानता होती है, उन्हें हम 'तंत्र साधना' मान लेते हैं। 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' की उक्ति के अनुसार हमारे शरीर की रचना भी उसी आधार पर हुई है जिस पर पूर्ण ब्रह्माण्ड की।
तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अन्तर्मुखी होकर साधनाएँ की जाती हैं। तांत्रिक साधना को साधारणतया तीन मार्ग : वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग मध्यम मार्ग कहा गया है। श्मशान में साधना करने वाले का निडर होना आवश्यक है। जो निडर नहीं हैं, वे दुस्साहस करें। तांत्रिकों का यह अटूट विश्वास है, जब रात के समय सारा संसार सोता है तब केवल योगी जागते हैं। तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है

परस्पर आश्रित या आपस में संक्रिया करने वाली चीजों का समूह, जो मिलकर सम्पूर्ण बनती हैं, निकाय, तंत्र, प्रणाली या सिस्टम कहलातीं हैं। कार है और चलाने का मन्त्र भी आता है, यानी शुद्ध आधुनिक भाषा मे ड्राइविन्ग भी आती है, रास्ते मे जाकर कार किसी आन्तरिक खराबी के कारण खराब होकर खडी हो जाती है, अब उसके अन्दर का तन्त्र नही आता है, यानी कि किस कारण से वह खराब हुई है और क्या खराब हुआ है, तो यन्त्र यानी कार और मन्त्र यानी ड्राइविन्ग दोनो ही बेकार हो गये,| किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, और समय का अन्दरूनी ज्ञान रखने वाले को तान्त्रिक कहा जाता है,| तो तन्त्र का पूरा अर्थ इन्जीनियर या मैकेनिक से लिया जा सकता है जो कि भौतिक वस्तुओं का और उनके अन्दर की जानकारी रखता है,| शरीर और शरीर के अन्दर की जानकारी रखने वाले को डाक्टर कहा जाता है, और जो पराशक्तियों की अन्दर की और बाहर की जानकारी रखता है, वह ज्योतिषी या ब्रह्मज्ञानी कहलाता है,| जिस प्रकार से बिजली का जानकार लाख कोशिश करने पर भी तार के अन्दर की बिजली को नही दिखा सकता, केवल अपने विषेष यन्त्रों की सहायता से उसकी नाप या प्रयोग की विधि दे सकता है,| उसी तरह से ब्रह्मज्ञान की जानकारी केवल महसूस करवाकर ही दी जा सकती है,| जो वस्तु जितने कम समय के प्रति अपनी जीवन क्रिया को रखती है वह उतनी ही अच्छी तरह से दिखाई देती है और अपना प्रभाव जरूर कम समय के लिये देती है मगर लोग कहने लगते है, कि वे उसे जानते है,| जैसे कम वोल्टेज पर वल्व धीमी रोशनी देगा, मगर अधिक समय तक चलेगा, और जो वल्व अधिक रोशनी अधिक वोल्टेज की वजह से देगा तो उसका चलने का समय भी कम होगा,| उसी तरह से जो क्रिया दिन और रात के गुजरने के बाद चौबीस घंटे में मिलती है वह साक्षात समझ मे आती है कि कल ठंड थी और आज गर्मी है,| मगर मनुष्य की औसत उम्र अगर साठ साल की है तो जो जीवन का दिन और रात होगी वह उसी अनुपात में लम्बी होगी, और उसी क्रिया से समझ में आयेगा.जितना लम्बा समय होगा उतना लम्बा ही कारण होगा,| अधिकतर जीवन के खेल बहुत लोग समझ नही पाते, मगर जो रोजाना विभिन्न कारणों के प्रति अपनी जानकारी रखते है वे तुरत फ़ुरत में अपनी सटीक राय दे देते है.यही तन्त्र और और तान्त्रिक का रूप कहलाता है.|...........................................................हर-हर महादेव 

विशेष - किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच . 


पंचान्गुली साधना

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.............................................................भविष्य ज्ञान के लिए यह एक सात्विक साधना है ,यद्यपि इसके वाममार्गी रूप भी है ,,यहाँ यह ज्ञातव्य है भविष्य ज्ञान हेतु कर्णपिशाचिनी साधना और इस साधना में उद्देश्य ही सामान है ,शक्तिया समान नहीं है ,यह सिद्धि प्राप्त हो जाने पर साधक किसी के भी चेहरे को देख भूत -भविष्य बताने में सम्पूर्णता ,सफलता हासिल कर लेता है ,,,पंचान्गुली साधना कई प्रकार से कई मंत्रो से होती है ,यहाँ हम एकक मंत्र और एक विधि का प्रयोग कर रहे है .............................

....................................पंचान्गुली साधना किसी भी शुभ तिथि से प्रारम्भ हो सकती है ,,साधक को नित्यादी कर्म ,प्राणायाम ,पवित्रीकरण ,शान्ति पाठ ,संकल्प ,कलश स्थापन आदि कर पंचान्गुली यन्त्र की स्थापना करनी चाहिए ,और षोडशोपचार पूजन ,प्राण प्रतिष्ठा आदि कर्म करने चाहिए [इन सबके लिए योग्य व्यक्ति की मदद ली जा सकती है ]पूजन के बाद एक पान के पत्ते पर कपूर ,कपूर पर बताशा और दो लौंग रखकर आग लगाकर भगवती को समर्पित करना चाहिए ,,,पूजनोपरांत मंत्र का [चित्रानुसार ]जप करना चाहिए ,यह साधना १०८ दिन की होती है ,और प्रतिदिन मंत्र की एक माला होनी चाहिए ,मंत्र जप तभी करे जब आप अधिकतम एकाग्र हो सके और वातावरण भी शांत हो ,रात्री में जप किया जा सेएकता है अथवा सूर्योदय पूर्व,, ,बेहतर ब्रह्म मुहूर्त ही होता है ,जप के लिए स्फटिक की माला का उपयोग करे ,आसान ,वस्त्र पीले और जप -पूजन में मुख पूर्व की और हो ,....................................................................हर-हर महादेव  

विशेष - किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच . 

तंत्र वैदिक काल में भी था

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वेदों की रचना मानव मष्तिष्क की उन्नतता का प्रमाण है |वेद केवल धार्मिक ग्रन्थ नहीं अपितु इनमे ब्रह्माण्ड का सनातन सूत्र संगृहीत है |ब्रह्मांडीय ऊर्जा विज्ञान का मूल सूत्र और प्रकृति वेदों में है |वेदों की रचना के पूर्व भी इनकी जानकारी प्राचीन ऋषियों को इन सूत्रों इन विज्ञानों की जानकारी थी |वेद इनका समग्र संकलन हैं |वैदिक काल और और उसके पूर्व से भी समान्तर रूप से तंत्र का भी ज्ञान था |वेदों में इनका उल्लेख इसका प्रमाण है |इसका प्रमाण यह भी है की यही समातन सूत्र तंत्र का भी सूत्र है |कुछ अति ज्ञानी तंत्र को बाद का और वंचितों -जंगलियों की विद्या भी साबित करने का प्रयास करते हैं |भ्रम फैलाने और विरोध की भावना के कारण अनेक उदाहरण और अज्ञानतापूर्ण बातें फैलाते हैं |किन्तु हकीकत यही है की वैदिक और तांत्रिक धारा एक साथ बहती रही है |
प्राचीन काल से ही दो प्रकार की पद्धतियों का प्रचालन रहा है जैसा की आज भी है |सामान्य गृहस्थ जिस पद्धति पर चलता है साधू-सन्यासी-विरक्त उस पद्धति पर नहीं चलते |उनकी आवश्यकताएं भी भिन्न होती हैं और सरोकार भी |शुरू से ऐसा रहा है |पुर्व काल में वर्ण व्यवस्था थी और वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम की अवधारणा थी |जिनमे व्यक्ति की आवश्यकताएं बदल जाती थी |ऐसे में क्या वाही साधना-आराधना पद्धति उपयोगी रही होगी जो एक गृहस्थ के लिए होती है |गृहस्थ की आवश्यकताएं भौतिक जगत से जुडी होती हैं जबकि सन्यासी मुक्ति चाहता है |वेदों का उद्देश्य लौकिक जगत में रहने वालों को सनातन सूत्रों का ज्ञान कराना रहा होगा ,क्योकि उनके पास जिम्मेदारियां अधिक थी और समय का अभाव ,ऐसे में उनके लिए सूत्रों -ज्ञानों का संकलन उपयुक्त था जबकि सन्यासी और आश्रम में रहने वालों को तो स्वयमेव यह ज्ञान गुरुओं से मिल जाता था गुरु परम्परा से |ध्यान देने योग्य है की वेद भौतिक जगत की बहुत सी विधाओं से जुड़े हुए हैं ,इनमे विज्ञान ,अध्यात्म ,धर्म ,चिकित्सा ,ज्योतिष ,कर्मकांड ,राजनीति ,सामाजिकता सब कुछ हैं और सबके नियम-सूत्र हैं |इनमे से अधिकतर की आवश्यकता विरक्त और सन्यासी को नहीं होती |उसे तो ऊर्जा और मुक्ति से ही मतलब होता है |ऐसे में उसके लिए जिस पद्धति का प्राचीन वैदिक ऋषियों ने विकास किया था वह तंत्र था |इसका ज्ञान समाज को बहुत कम था क्योकि यह शक्ति का मार्ग था जिसका दुरुपयोग भी संभव था और उस समय बहुत मतलब इसका समाज से नहीं था ,क्योकि यह ऊर्जा को मुक्ति में उपयोग करने का माध्यम था और गृहस्थ को एक निश्चित समय बाद ही इसकी अनुमति थी |अतः तंत्र बेहद गोपनीय और केवल गुरु परम्परा से संचालित होता था |इसके यत्र तत्र प्रमाण इसी का संकेत करते हैं |यह अवश्य है की उस समय तंत्र केवल एक परम शक्ति की साधना और ऊर्जा प्राप्ति से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने का माध्यम था |शक्ति स्वरूपों का विकास वेद और उपनिषदों में और उसके बाद के काल में बढ़ता गया |अगर पहले से न भी माने तो भी तंत्र का मूल स्रोत वेद है |ऋग्वेद के वागाम्भ्रिणी सूक्त [१०/१२५] में जिस शक्ति का प्रतिपादन किया गया है ,तंत्र उसी शक्ति की एकमात्र साधना है |भारत में अत्यंत प्राचीन काल से साधना की दो धाराएं प्रवाहित होती चली आ रही हैं |पहलों है वैदिक धारा और दूसरी है तांत्रिक धारा |
वैदिक धारा सर्वसाधारण के लिए साधना के सिद्धांतों का प्रतिपादन करती है ,जबकि तांत्रिक धारा चुने हुए अधिकारियों के लिए गुप्त साधना का उपदेश देती है |एक वाह्य है दूसरी आभ्यंतरिक |परन्तु दोनों धाराएँ प्रत्येक काल में और प्रत्येक अवस्था में साथ साथ विद्यमान रही हैं |इसीलिए जिस काल में वैदिक यज्ञ याग अपनी चरम सीमा पर थे उस समय भी तांत्रिक साधना उपासना का वर्चास्वा कम नहीं था |इसी प्रकार कालान्तर में जब तंत्र का प्रचार-प्रसार प्रबल हुआ उस समय भी वैदिक कर्मकांड विस्मृति के गर्भ में विलीन नहीं हुआ |वैदिक और तांत्रिक साधना उपासना की समकालीनता का पूर्ण परिचय हमें उपनिषदों में प्राप्त होता है ,यद्यपि तंत्र के विवरण वेदों में भी मिलते हैं |शक्ति साधना -उपासना के अनेक प्रमाण प्रागैतिहासिक सिंधुघाटी सभ्यता काल में प्राप्त होते हैं |इनके प्रमाण मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई से प्राप्त सामग्री में भी मिलते हैं |सर्व प्राचीन वेद ऋग्वेद है और ऋग्वेद में शक्ति का सर्वप्रथम वर्णन वेदवाणी सरस्वती के रूप में किया गया है |तदनंतर नदी और देवता के रूप में |सरस्वती के बाद बहुवर्णीत शक्ति उषा और अदिति हैं |अदिति का माता के रूप में वर्णन है |वह सम्पूर्ण भूतों की जननी हैं |इसके प्रकाशवान पुत्र आदित्य यानी सूर्य हैं |वैदिक वांग्मय की गरिमामयी और साथ ही महिमामयी शक्ति रात्री है ,जो तंत्र भूमि की पराशक्ति अथवा प्रभुशक्ति काली है |वेदों के बाद ब्राह्मण ,आरण्यक और उपनिषदों का क्रम आता है जिनमे शक्ति को गायत्री ,सावित्री ,दुर्गा ,राधा ,सुभगा ,सुंदरी ,अम्बा ,अम्बिका आदि रूपों में चित्रित किया गया है |

इस प्रकार तंत्र का प्रादुर्भाव वैदिक काल में ही हो गया था किन्तु इसका उपयोग करने वाले विरक्त-सन्यासी-बैरागी-साधक आदि थे जो समाज से निर्लिप्त रहते थे अतः समाज को इसकी जानकारी नहीं थी या बहुत कम थी |क्योकि यह ऊर्जा प्राप्ति का शशक्त माध्यम था और इसके बहुयायामी उपयोग हो सकते थे अतः इसमें गंभीर गोपनीयता का भी समावेश था |जो जानते भी थे वह इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहते थे इसके अपने कारण थे और आवश्यक भी थे |समाज को तो लौकिक महत्व की वस्तुओं से मतलब था ,जबकि उस समय तंत्र मुक्ति का मार्ग था |आज भी मूलतः तंत्र मुक्ति का ही मार्ग है ,किन्तु इसके शक्तियों को आज समाज और व्यक्ति हेतु भी उपयोग किया जाने लगा है ,जो की इसका मूल उद्देश्य है ही नहीं |यह सब बाद में समाज में विकृति और राजाओं के अत्याचार अथवा असरदार के अत्याचार -वंचना के कारण तंत्र की शरण में जाने और उसका भौतिक जरूरतों हेतु उपयोग का परिणाम है |यह सब पौराणिक काल में अधिक हुआ और इसीकारण बहुत सारी शक्तियों की परिकल्पना और जोड़-तोड़ हुए |विभिन्न पद्धतियों का विकास हुआ |.............................................................................हर-हर महादेव 

विशेष - किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच .