Tuesday, 3 October 2017

शाबर मंत्र

:::::::::::::::::::::शाबर मंत्र और उनकी विशेषता :::::::::::::::::::::
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              शाबर तंत्र तंत्र की ग्राम्य शाखा है | शाबर का प्रतीक अर्थ होता है ग्राम्य अथवा अपरिष्कृत | अत्यंत सरल भाषा में पाए जाने वाले सभी मंत्र शाबर की श्रेणी में आते हैं |ये मंत्र होते तो अत्यंत सरल भाषा में है परन्तु इनका कोई अर्थ नहीं होता |यह सभी बोली जाने वाली भाषाओं में पाए जाते हैं यहा तक की गाँव गाँव की गूढ़ शब्दावली में भी मंत्र पाए जाते हैं |कुछ में विभिन्न भाषाओं का भी प्रयोग देखने में आता है |शाबर मंत्र अर्थ युक्त और अर्थ हीन दोनों प्रकार के पाए जाते हैं |गोसामी तुलसीदास के अनुसार --अनमिल आखर अरथ न जापू |प्रगट प्रभाव महेश प्रतापू || शाबर मन्त्रों का जन्म प्रायः सिद्ध साधकों द्वारा ही हुआ है ,,संभवतः यही कारण है की मंत्र के समापन के समय देवता को विकत आन दी जाती है |इन्हें देखकर बालक के हठ का स्मरण हो आता है |ठीक उसी प्रकार स्वयं सिद्ध साधकों ने शास्त्रीय मन्त्रों का सहारा न लेकर अपनी समस्या को अपनी ही भाषा में कहा और उस समस्या की पूर्ति न होने की स्थिति में एक हठी बालक की भाँती अनर्गल सी आन कहकर अपनी समस्या पूर्ति कर ली |वास्तव में यह साधक का अपने ईष्ट के प्रति अपनत्व है जो उन्हें कसम देता है |कभी कभी शास्त्रीय मन्त्रों की कमी को ये शाबर मंत्र बड़ी ही सफलता से पूर्ण करते हैं|
 इसके प्रथम प्रवर्तक भगवान शंकर हैं ,और जिन सिद्धों ने इसको आगे बढाया वे परम शिव भक्त ही थे  |मानवीय गुरुओं में गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछंदर नाथ "शाबर मन्त्र "के जनक माने जाते हैं |अपने तप प्रभाव से वे भगवान शंकर के समान पूज्य माने जाते हैं |अपनी साधना और शक्ति के कारण वे मन्त्र प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास और श्रद्धा के पात्र हैं |सिद्ध और नाथ सम्प्रदायों ने परम्परागत मन्त्रों के मूल सिद्धांतों को लेकर बोलचाल की भाषा में मन्त्रों को जन्म दिया |
                    शाबर’-मन्त्रों में आन’ और शाप’, ‘श्रद्धा’ और धमकी’ - दोनों का प्रयोग किया जाता है साधक याचक’ होता हुआ भी देवता को सब कुछ कहता है, उसी से सब कुछ कराना चाहता है आश्चर्य यह है कि उसकी यह आन’ भी काम करती है शास्त्रीय प्रयोगों में उक्त प्रकार की आन’ नहीं रहती बाल-सुलभ सरलता का विश्वास शाबर मन्त्रों का साधक मन्त्र के देवता के प्रति रखता है जिस प्रकार अबोध बालक की अभद्रता पर उसके माता-पिता अपने वात्सल्य-प्रेम के कारण कोई ध्यान नहीं देते, वैसे ही बाल-सुलभ सरलता’ और विश्वास’ के आधार पर शाबर’ मन्त्रों की साधना करने  वाला सिद्धि प्राप्त कर लेता है
शाबर’-मन्त्रों में संस्कृत, प्राकृत और क्षेत्रीय सभी भाषाओं का उपयोग मिलता है किन्हीं-किन्हीं मन्त्रों में संस्कृत और मलयालय, कन्नड़, गुजराती, बंगला या तमिल भाषाओं का मिश्रित रुप मिलेगा, तो किन्हीं में शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य-शैली और कल्पना भी मिल जायेगी
भारत के एक बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली भाषा हिन्दी’ है अतः अधिकांश शाबर’मन्त्र हिन्दी में ही मिलते हैं इस मन्त्रों में शास्त्रीय मन्त्रों के समान षडङ्ग’ - ऋषि, छन्द, वीज, शक्ति, कीलक और देवता - की योजना अलग से नहीं रहती, अपितु इन अंगों का वर्णन मन्त्र में ही निहित रहता है इसलिए प्रत्येक शाबर’ मन्त्र अपने आप में पूर्ण होता है उपदेष्टा ऋषि’ के रुप में गोरखनाथ जैसे सिद्ध-पुरुष हैं कई मन्त्रों में इनके नाम लिए जाते हैं और कइयों में केवल गुरु के नाम से ही काम चल जाता है
पल्लव’ (मन्त्र के अन्त में लगाए जाने वाले शब्द) के स्थान में शब्द साँचा पिण्ड काचा, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा’वाक्य ही सामान्यतः रहता है इस वाक्य का अर्थ है शब्द ही सत्य है, नष्ट नहीं होता यह देह अनित्य है, बहुत कच्चा है हे मन्त्र ! तुम ईश्वरी वाणी हो (ईश्वर के वचन से प्रकट हो)” इसी प्रकार के या इससे मिलते-जुलते दूसरे शब्द इस मन्त्रों के पल्लव’ होते हैं|

शाबर मन्त्र स्वयं सिद्ध होते हैं |शाबर मन्त्र शीघ्र प्रभावी होते हैं और सरल भाषा में होते हैं |इनके प्रयोग भी अत्यंत सुगम होते हैं |शाबर मन्त्र में कोई भी सुधार करने या अर्थ निकालने की आवश्यकता नहीं होती क्योकि यह मन्त्र प्रायः ग्रामीण भाषाओं में पाए जाते हैं |शाबर मन्त्र से प्रत्येक समस्या का निराकरण सहज ही हो जाता है |शाबर मन्त्र सभी के लिए हैं ,यह किसी वर्ग विशेष का प्रतिनिशित्व नहीं करते ,जो भी चाहे विधि के अनुसार प्रयोग करके लाभ उठा सकता है |..............................................................हर - हर महादेव  

विशेष - किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच . 

काम भाव और सिद्धि के सूत्र

काम भाव और सिद्धि के सूत्र [[तंत्र में काम भाव का प्रयोग ]].
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..........................तंत्र में कामभाव के उपयोग का एक प्रमुख स्थान है ,काम भाव से सिद्धिया भी की जाती है ,सम्भोग से समाधि का यह एक मूल रहस्य है ,,ऐसा होताहै और इसके वैज्ञानिक कारण है जो प्रकृति की संरचना ,उसके उर्जा सूत्र ,मानवीय ऊर्जा संरचना ,शरीर क्रिया पर आधारित है ,यह धनात्मक उर्जा और ऋणात्मक ऊर्जा के संयोग से तीब्र उर्जा उत्पत्ति का माध्यम है ,,प्रकृति में सर्वत्र रति चल रही है ,बिना रति के सृष्टि ,प्रकृति ,जीवो में विस्तार और विकास संभव नहीं ,इसी रति से मुक्ति भी मिलती है ,यही तंत्र का सूत्र है

...................................जब जीव में काम भाव उत्पन्न होता है तो मूलाधार की ऊर्जा का उत्पादन बढ़ जाता है ,यह शरीर का नेगेटिव प्वाइंट है अब शरीर को संतुलन बनाए रखने के लिए इस प्वाइंट को अधिक ऊर्जा की आपूर्ति करनी पड़ती है ,इसे धनात्मक ऊर्जा की आवश्यकता होती है,जो नाभिक से उत्पन्न उर्जा से प्राप्त होता है ,इसकी आवश्यकता की पूर्ति के लिए नाभिक को अधिक उर्जा का उत्पादन करना होता है ,उसे अधिक आक्सीजन की आवश्यकता होती है अतः श्वास गति बढ़ जाती है ,नाभिक की तीब्रता अन्य सभी बिन्दुओ [चक्रों]की क्रिया तेज कर देती है ,इससे शरीर में तीब्र उर्जा उत्पन्न होने लगती है [शरीर गर्म हो जाता है ],मष्तिष्क एक लक्ष्य पर केंद्रित होने लगता है ,,इसी लक्ष्य और ऊर्जा को तंत्र में अलग दिशा देकर सिद्धि और मुक्ति का माध्यम बनाया जाता है ,इस लक्ष्य और उर्जा को यदि अलग दिशा दे दी जाए ,रुक-रुक कर रति करके शरीर के अधिक उर्जा उत्पादन को बरकरार रखा जाए ,ऊर्जा बार-बार उत्पादित की जाए [उसे स्खलित होने दिया जाए ]ईष्ट मन्त्र का जप किया जाए तो यह ऊर्जा उस ईष्ट की उर्जा को बढा देता है ,शरीर का नाभिक और चक्र स्थायी रूप से अधिक उर्जा उत्पादन करने लगते है ,उस ईष्ट के लिए जिन-जिन बिन्दुओ [चक्रों]की उर्जा की आवश्यकता होती है ,वे सभी चक्र अधिक क्रियाशील हो गति में जाते है ,,इस प्रक्रिया से शरीर अधिक उर्जावान हो जाता है ,कुछ समय में शरीर का तापमान और श्वास प्रणाली तो सामान्य हो जाती है किन्रू ऊर्जा उत्पादन और शक्ति बढ़ी रह जाती है जो ,उत्तरोत्तर बढती जाती है ,इस प्रक्रिया से असाधारण शक्तिया और सिद्धिया प्राप्त होने लगती है ,इस भाव में स्थायी रहने से सभी चक्र क्रियाशील हो जाते है और कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है ,कुंडलिनी ऊपर उठने लगती है ,,यह सब एक तकनिकी पर आधारित होता है जो गुरु धीरे-धीरे अपने शिष्य को सिखाता है ,पूर्ण वैज्ञानिक [तांत्रिक ज्ञान ]प्रक्रिया के आधार पर ,,इस प्रक्रिया में भोग में रहकर भी मोक्ष की प्राप्ति और सम्भोग से समाधि संभव हो सकती है ,,,प्राप्त शक्ति और सिद्धि मोक्ष में सहायक होती है ,बढ़ी ऊर्जा और शरीर के चक्रों की अधिक क्रियाशीलता वर्षों की कठोर साधनाओ का फल सप्ताहों ,महीनो में दिला देता है ,क्योकि प्रकृति में सब उर्जा का खेल है ,ईष्ट,ईश्वर सब ऊर्जा है ,,प्रकृति की ऊर्जा को शरीर की उर्जा और शक्ति बढाकर तंत्र में नियंत्रित किया जाता है ,जो शीघ्र शक्तिया ,सिद्धिया प्राप्त होने का माध्यम -कारण बनता है ,,ईष्ट और परमात्मा इसी प्रकृति में सर्वत्र व्याप्त है अतः यह प्राप्त हो जाते है ,,काम भाव का प्रयोग इस नश्वर शरीर का शुद्ध परम लक्ष्य की प्राप्ति में प्रयोग है ,,पतन की कारक ऊर्जा का मोक्ष प्राप्ति में प्रयोग है ,सर्वाधिक परेशान और कष्ट देने वाली ऊर्जा का सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य की और सदुपयोग है ..................................................................हर-हर महादेव

विशेष - किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच .