Tuesday 3 October 2017

काम भाव और सिद्धि के सूत्र

काम भाव और सिद्धि के सूत्र [[तंत्र में काम भाव का प्रयोग ]].
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..........................तंत्र में कामभाव के उपयोग का एक प्रमुख स्थान है ,काम भाव से सिद्धिया भी की जाती है ,सम्भोग से समाधि का यह एक मूल रहस्य है ,,ऐसा होताहै और इसके वैज्ञानिक कारण है जो प्रकृति की संरचना ,उसके उर्जा सूत्र ,मानवीय ऊर्जा संरचना ,शरीर क्रिया पर आधारित है ,यह धनात्मक उर्जा और ऋणात्मक ऊर्जा के संयोग से तीब्र उर्जा उत्पत्ति का माध्यम है ,,प्रकृति में सर्वत्र रति चल रही है ,बिना रति के सृष्टि ,प्रकृति ,जीवो में विस्तार और विकास संभव नहीं ,इसी रति से मुक्ति भी मिलती है ,यही तंत्र का सूत्र है

...................................जब जीव में काम भाव उत्पन्न होता है तो मूलाधार की ऊर्जा का उत्पादन बढ़ जाता है ,यह शरीर का नेगेटिव प्वाइंट है अब शरीर को संतुलन बनाए रखने के लिए इस प्वाइंट को अधिक ऊर्जा की आपूर्ति करनी पड़ती है ,इसे धनात्मक ऊर्जा की आवश्यकता होती है,जो नाभिक से उत्पन्न उर्जा से प्राप्त होता है ,इसकी आवश्यकता की पूर्ति के लिए नाभिक को अधिक उर्जा का उत्पादन करना होता है ,उसे अधिक आक्सीजन की आवश्यकता होती है अतः श्वास गति बढ़ जाती है ,नाभिक की तीब्रता अन्य सभी बिन्दुओ [चक्रों]की क्रिया तेज कर देती है ,इससे शरीर में तीब्र उर्जा उत्पन्न होने लगती है [शरीर गर्म हो जाता है ],मष्तिष्क एक लक्ष्य पर केंद्रित होने लगता है ,,इसी लक्ष्य और ऊर्जा को तंत्र में अलग दिशा देकर सिद्धि और मुक्ति का माध्यम बनाया जाता है ,इस लक्ष्य और उर्जा को यदि अलग दिशा दे दी जाए ,रुक-रुक कर रति करके शरीर के अधिक उर्जा उत्पादन को बरकरार रखा जाए ,ऊर्जा बार-बार उत्पादित की जाए [उसे स्खलित होने दिया जाए ]ईष्ट मन्त्र का जप किया जाए तो यह ऊर्जा उस ईष्ट की उर्जा को बढा देता है ,शरीर का नाभिक और चक्र स्थायी रूप से अधिक उर्जा उत्पादन करने लगते है ,उस ईष्ट के लिए जिन-जिन बिन्दुओ [चक्रों]की उर्जा की आवश्यकता होती है ,वे सभी चक्र अधिक क्रियाशील हो गति में जाते है ,,इस प्रक्रिया से शरीर अधिक उर्जावान हो जाता है ,कुछ समय में शरीर का तापमान और श्वास प्रणाली तो सामान्य हो जाती है किन्रू ऊर्जा उत्पादन और शक्ति बढ़ी रह जाती है जो ,उत्तरोत्तर बढती जाती है ,इस प्रक्रिया से असाधारण शक्तिया और सिद्धिया प्राप्त होने लगती है ,इस भाव में स्थायी रहने से सभी चक्र क्रियाशील हो जाते है और कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है ,कुंडलिनी ऊपर उठने लगती है ,,यह सब एक तकनिकी पर आधारित होता है जो गुरु धीरे-धीरे अपने शिष्य को सिखाता है ,पूर्ण वैज्ञानिक [तांत्रिक ज्ञान ]प्रक्रिया के आधार पर ,,इस प्रक्रिया में भोग में रहकर भी मोक्ष की प्राप्ति और सम्भोग से समाधि संभव हो सकती है ,,,प्राप्त शक्ति और सिद्धि मोक्ष में सहायक होती है ,बढ़ी ऊर्जा और शरीर के चक्रों की अधिक क्रियाशीलता वर्षों की कठोर साधनाओ का फल सप्ताहों ,महीनो में दिला देता है ,क्योकि प्रकृति में सब उर्जा का खेल है ,ईष्ट,ईश्वर सब ऊर्जा है ,,प्रकृति की ऊर्जा को शरीर की उर्जा और शक्ति बढाकर तंत्र में नियंत्रित किया जाता है ,जो शीघ्र शक्तिया ,सिद्धिया प्राप्त होने का माध्यम -कारण बनता है ,,ईष्ट और परमात्मा इसी प्रकृति में सर्वत्र व्याप्त है अतः यह प्राप्त हो जाते है ,,काम भाव का प्रयोग इस नश्वर शरीर का शुद्ध परम लक्ष्य की प्राप्ति में प्रयोग है ,,पतन की कारक ऊर्जा का मोक्ष प्राप्ति में प्रयोग है ,सर्वाधिक परेशान और कष्ट देने वाली ऊर्जा का सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य की और सदुपयोग है ..................................................................हर-हर महादेव

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