Sunday, 12 November 2017

शाबर धूमावती साधना :

शाबर धूमावती साधना :
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दस महाविद्याओं में माँ धूमावती का स्थान सातवां है और माँ के इस स्वरुप को बहुत ही उग्र माना जाता है ! माँ का यह स्वरुप अलक्ष्मी स्वरूपा कहलाता है किन्तु माँ अलक्ष्मी होते हुए भी लक्ष्मी है ! एक मान्यता के अनुसार जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया तो उस यज्ञ में शिव जी को आमंत्रित नहीं किया ! माँ सती ने इसे शिव जी का अपमान समझा और अपने शरीर को अग्नि में जला कर स्वाहा कर लिया और उस अग्नि से जो धुआं उठा )उसने माँ धूमावती का रूप ले लिया ! इसी प्रकार माँ धूमावती की उत्पत्ति की अनेकों कथाएँ प्रचलित है जिनमे से कुछ पौराणिक है और कुछ लोक मान्यताओं पर आधारित है !
नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध योगी सिद्ध चर्पटनाथ जी माँ धूमावती के उपासक थे ! उन्होंने माँ धूमावती पर अनेकों ग्रन्थ रचे और अनेकों शाबर मन्त्रों की रचना भी की !
यहाँ मैं माँ धूमावती का एक प्रचलित शाबर मंत्र दे रहा हूँ जो बहुत ही शीघ्र प्रभाव देता है !
कोर्ट कचहरी आदि के पचड़े में फस जाने पर अथवा शत्रुओं से परेशान होने पर इस मंत्र का प्रयोग करे !
माँ धूमावती की उपासना से व्यक्ति अजय हो जाता है और उसके शत्रु उसे मूक होकर देखते रह जाते है !
|| मंत्र ||
पाताल निरंजन निराकार
आकाश मंडल धुन्धुकार
आकाश दिशा से कौन आई
कौन रथ कौन असवार
थरै धरत्री थरै आकाश
विधवा रूप लम्बे हाथ
लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव
डमरू बाजे भद्रकाली
क्लेश कलह कालरात्रि
डंका डंकिनी काल किट किटा हास्य करी
जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते
जाया जीया आकाश तेरा होये
धुमावंतीपुरी में वास
ना होती देवी ना देव
तहाँ ना होती पूजा ना पाती
तहाँ ना होती जात जाती
तब आये श्री शम्भु यती गुरु गोरक्षनाथ
आप भई अतीत
धूं: धूं: धूमावती फट स्वाहा !
|| विधि ||
41 दिन तक इस मंत्र की रोज रात को एक माला जाप करे ! तेल का दीपक जलाये और माँ को हलवा अर्पित करे ! इस मंत्र को भूल कर भी घर में ना जपे, जप केवल घर से बाहर करे ! मंत्र सिद्ध हो जायेगा !
|| प्रयोग विधि ||
जब कोई शत्रु परेशान करे तो इस मंत्र का उजाड़ स्थान में 11 दिन इसी विधि से जप करे और प्रतिदिन जप के अंत में माता से प्रार्थना करे
हे माँ ! मेरे (अमुक) शत्रु के घर में निवास करो ! “
ऐसा करने से शत्रु के घर में बात बात पर कलह होना शुरू हो जाएगी और वह शत्रु उस कलह से परेशान होकर घर छोड़कर बहुत दुर चला जायेगा !
|| प्रयोग विधि ||
शमशान में उगे हुए किसी आक के पेड़ के साबुत हरे पत्ते पर उसी आक के दूध से शत्रु का नाम लिखे और किसी दुसरे शमशान में बबूल का पेड़ ढूंढे और उसका एक कांटा तोड़ लायें ! फिर इस मंत्र को 108 बार बोल कर शत्रु के नाम पर चुभो दे !
ऐसा 5 दिन तक करे , आपका शत्रु तेज ज्वर से पीड़ित हो जायेगा और दो महीने तक इसी प्रकार दुखी रहेगा !

नोट इस मंत्र के और भी घातक प्रयोग है जिनसे शत्रु के परिवार का नाश तक हो जाये ! किसी भी प्रकार के दुरूपयोग के डर से मैं यहाँ नहीं लिखना चाहता ! इस मंत्र का दुरूपयोग करने वाला स्वयं ही पाप का भागी होगा !कोई भी जप-अनुष्ठान करने से पूर्व मंत्र की शुद्धि जांचा लें ,विधि की जानकारी प्राप्त कर लें तभी प्रयास करें |गुरु की अनुमति बिना और सुरक्षा कवच बिना तो कदापि कोई साधना न करें |उग्र महाशक्तियां गलतियों को क्षमा नहीं करती कितना भी आप सोचें की यह तो माँ है |उलट परिणाम तुरत प्राप्त हो सकते हैं |अतः बिना सोचे समझे कोई कार्य न करें |पोस्ट का उद्देश्य मात्र जानकारी उपलब्ध करना है ,अनुष्ठान या प्रयोग करना नहीं |अतः कोई समस्या होने पर हम जिम्मेदार नहीं होंगे |...................................................................हर-हर महादेव 

विशेष - उपरोक्त यन्त्र हेतु अथवा किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच . 

हनुमान शाबर मंत्र साधना

हनुमान शाबर मंत्र साधना
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मनुष्य शारीरिक, मानसिक और बाहरी (भू‍त-प्रेत) नजर इत्यादि बीमारियों से परेशान रहता है। शारीरिक बीमारी के लिए डॉक्टर या वैद्य के पास जाकर मनुष्य ठ‍ीक हो जाता है। मानसिक बीमारी का सरलत‍म उपाय हो जाता है। परंतु मनुष्य जब भूत-प्रेत अथवा नजर, हाय या किसी दुष्ट आत्मा के जाल में फंस जाता है तब वह परेशान हो जाता है।
इसकेइलाज के लिए स्वयं एवं परिवार वाले हर जगह जाते हैं- जैसे तांत्रिक, मांत्रिक, जानकार के पास। परंतु मरीज ठीक नहीं होता है। मरीज की हालत बिगड़ने लगती है। ऐस प्रतीत होता है कि मरीज शारीरिक एवं मानसिक दोनों ब‍ीमारी से ग्रस्त है।
ऐसे में पवन पुत्र हनुमान जी की आराधना करें। मरीज अवश्‍य ही ठीक हो जाएगा। यहां हम आपको श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा) दे रहे हैं। जो इक्कीस दिन में सिद्ध हो जाता है। इसे सिद्ध करके दूसरों की सहायता करें और उनकी प्रेत-डाकिनी, नजर आदि सब ठीक करें।
श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा
हनुमान पहलवान पहलवान, बरस बारह का जबान
हाथ में लड्‍डू मुख में पान, खेल खेल गढ़ लंका के चौगान
अंजनी‍ का पूत, राम का दूत, छिन में कीलौ 
नौ खंड का भू‍त, जाग जाग हड़मान (हनुमान
हुंकाला, ताती लोहा लंकाला, शीश जटा 
डग डेरू उमर गाजे, वज्र की कोठड़ी ब्रज का ताला 
आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चंपे 
ने सींण, अजरा झरे भरया भरे, घट 
पिंड की रक्षा राजा रामचंद्र जी लक्ष्मण कुंवर हड़मान (हनुमान) करें।
इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। हनुमान मंदिर में जाकर साधक अगरबत्ती जलाएं। इक्कीसवें दिन उसी मंदिर में एक नारियल लाल कपड़े की एक ध्वजा चढ़ाएं। जप के बीच होने वाले अलौकिक चमत्कारों का अनुभव करके घबराना नहीं चाहिए। यह मंत्र भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी, नजर, टपकार शरीर की रक्षा के लिए अत्यंत सफल है।
चेतावनी : हनुमान जी की कोई भी साधना अत्यंत सावधानी और सतर्कता से करना चाहिए। यह साधना अगर पलट कर जाए तो साधक पर ही भारी पड़ सकती है। अत: शुद्धता, पवित्रता और एकाग्रता का विशेष ध्यान रखा जाए।...............................................................हर-हर महादेव

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अगिया बेताल साधना -3

अगिया बेताल साधना
==============[ तृतीय पद्धति ]
अगिया बेताल वस्तुतः उग्र मानसिक शक्ति और काली की संहारक या आक्रामक शक्ति का एक संयोग है जो काली की शक्ति के अंतर्गत आता है |वामतंत्र के अनुसार इसे रुद्रकाली कहा जाता है ||इस भाव की सिद्धि होने पर आक्रामक भाव की शक्ति अत्यंत प्रबल हो जाती है |अगिया बेताल सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण करता है |साधक के लिए साधना के समय वह प्रहरी का काम करता है और किसी भी अन्य आसुरी शक्तियों के विघ्न को या किसी दुष्ट साधक द्वारा प्रतिस्पर्धा में किये गए तांत्रिक अभिचार की शक्तियों को नष्ट कर देता है |अगिया बेताल दूसरों को दिखाई नहीं देता ,पर साधक उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति करता है और वह अनुभूत करता है की वह क्रिया कर रहा है |अगिया बेताल अदृश्य होकर सदा साधक की सहायता करता है ,पर वह शिव ,सरस्वती ,गणेश आदि सात्विक देवों के मंदिर में साधक के साथ होता है |अगिया बेताल में मधुरता का भाव नहीं है |
अगिया बेताल की साधना की कई पद्धतिया विक्सित हैं किन्तु हैं सभी उग्र ही |इसकी साधना घर में नहीं हो सकती |इसके लिए श्मशान या निर्जन स्थान ही होना चाहिए |इसकी सात्विक और तामसिक दोनों प्रकार से साधना हो सकती है किन्तु भाव उग्र ही होना चाहिए |सिद्ध और नाथ परम्परा में इनकी और भी साधना पद्धतियाँ है |,सात्विक साधना में भाव के साथ उग्र सामग्रियां और योगों का भी बहुत महत्व होता है |निर्भीकता एक आवश्यक तत्व होती है |
अगिया बेताल की साधना से प्रकृति में हलचल मच जाती है |इस कारण वातावरण भयानक हो जाता है |इससे घबराकर श्मशान की प्रेतात्माएं साधक को डराती हैं |साधना के समय अग्नि के झमाके भी पैदा होकर साधक की और झपट सकते हैं |साधक को इनके भयभीत नहीं होना चाहिए और अपना काम करना चाहिए अन्यथा गंभीर हानि हो सकती है |भावुक और कोमल ह्रदय या दुर्बल आत्मबल वाले व्यक्ति को अगिया बेताल की साधना नहीं करनी चाहिए |सिद्धि तो मिलेगी नहीं हानि भी हो सकती है |यही स्थिति कामुक व्यक्तियों के लिए है |इस साधना में काम भाव पर पूर्ण नियंत्रण रखा जाता है |अगिया बेताल के सिद्ध होने पर इसका प्रयोग बहुत सोच समझकर किया जाना चाहिए |
अगिया बेताल की यह साधना पद्धति वाम मार्ग से प्रेरित है |और यह साधना निर्जन स्थान अथवा श्मशान में ही होती है |साधना दक्षिण दिशा की ओर मुख करके की जाती है |यह अत्यंत उग्र साधना है जो बिन गुरु की उपस्थिति अथवा योग्य तांत्रिक की उपस्थिति के नहीं करनी चाहिए |अकेले किसी नए साधक के लिए यह साधना नहीं है |इसकी साधना करने वाले को पहले कुछ तांत्रिक साधनाएं संपन्न की होनी चाहिए |
सामग्री - पूजन सामग्री ,गुड ,गुड की खीर ,बताशा ,पान ,सुपारी ,सिन्दूर ताम्बे का दीपक ,सरसों काटेल ,पीली सरसों ,राई ,कुमकुम ,कपूर ,विम्ब्फल ,बंदर के बाल या चर्बी ,मदिरा ,बकरे का मांस ,चावल ,तिल आदि |
मन्त्र -ॐ रुद्ररूप कालिका तनय भ्रौं भ्रौं क्रीं क्रीं फट स्वाहा |
मंत्र का चुनाव गुरु के अनुसार करें ,यहाँ से उठाकर भूलकर भी मन्त्र जप न करें |यहाँ मात्र जानकारी दी जा रही है |न तो सिद्धि को प्रेरित किया जा रहा और न ही पूरी पद्धति लिखी जा रही |मंत्र आदि में त्रुटी हो सकती है जिससे हित की बजाय अहित हो सकता है |
यह साधना श्मशान में अर्धरात्रि में की जाती है |श्मशान में चिता की भष्म का बड़ा घेरा बनाकर उसपर सिन्दूर पूरित करके इसके मध्य ही साधना की जाती है |दक्षिण दिशा की ओर आसन लगा पहले शिव पूजा की जाती है |इसके बाद शिवलिंग के सामने ताम्बे के दीपक में सरसों तेल डाल दीपक जलाकर रखा जाता है |इसके बाद पूजन सामग्री और पान ,सुपारी आदि से शिव के रूद्र रूप की भावना करते हुए शिवलिंग की पूजा की जाती है |
पूजन बाद पहले से बनाए हवन कुण्ड में खैर की लकड़ी जलाकर हव्य पदार्थों को मिश्रित कर मंत्र के साथ १०८ आहुति दी जाती है |इसके बाद मंत्र जप करते हुए अगियाबेताल पर ध्यान केन्द्रित कर उसका आह्वान किया जाता है |जप संख्या पहले दिन से निश्चित रख साधना को १०८ दिन तक किया जाता है |पद्धति और पूजा हवन रोज ऐसा ही रहता है |बीच में अगिया बेताल के प्रकट होने ,अनुभूति होने ,सिद्ध होने पर साधना समाप्त कर दी जाती है |यदि १०८ दिन में सिद्धि नहीं होती तो पुनः १०८ दिन की साधना की जाती है |यह क्रम तब तक चलता है जब तक सिद्धि न मिले |वैसे १०८ दिन में सिद्धि मिल जाती है यदि व्यक्ति सक्षम है तो |
चेतावनी -
------------ साधनाकाल में भयावह स्थितिया बन सकती हैं क्योकि इस साधना से प्रकृति की शक्तियों में हलचल मच जाती है |साधक को बिन विचलित हुए साधना जारी रखनी चाहिए |साधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है और साधना के बाद सिद्धि मिलने पर भी संयमी रहना पड़ता है |चरित्रहीनता ,अनैतिक जीवन बेताल सिद्ध के लिए उपयुक्त नहीं होता |भावुक ,कोमल ह्रदय ,कमजोर आत्मबल ,डरपोक ,कामुक व्यक्ति के लिए यह साधना नहीं है ,उन्हें लाभ की बजाय नुक्सान हो सकता है |बिन गुरु अनुमति और बिन सुरक्षा कवच कभी भी साधना नहीं करनी चाहिए |केवल यहाँ देखकर ,मंत्र उठाकर कभी साधना नहीं करनी चाहिए ,क्योकि जो गोपनीय तकनीक है वह तंत्र के गोपनीयता सिद्धांत के कारण हम भी नहीं दे सकते अतः वह केवल गुरु देता है और उसके अनुसार ही साधना करनी चाहिए |हमारा उद्देश्य मात्र सामान्य जानकारी देना है | किस तरह के हानि ,नुक्सान के लिए इसलिए हम जिम्मेदार नहीं होते |.......................................................................हर-हर महादेव 

विशेष - उपरोक्त यन्त्र हेतु अथवा किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच . 



अगिया बेताल साधना -2

अगिया बेताल साधना
==============[ द्वितीय पद्धति ]
बेताल के बारे में हम सबने बहुत कुछ सुना है |विक्रम-बेताल की कहानियां बच्चे बच्चे तक ने सुने हैं |इन्ही बेताल में एक सबसे उग्र शक्ति अगिया बेताल की होती है |यह पुरुषात्मक शक्ति है जो खुद कहीं हस्तक्षेप नहीं करती |इसके सिद्ध होने पर यह बहुत उच्च स्तर के साधक को भी पराजित कर सकता है और चूंकि यह उच्च शक्ति होती है अतः मंदिर आदि तक में साधक के साथ आती-जाती है |यह प्रकृति की स्थायी शक्तियों में से एक है और इसे नष्ट नहीं किया जा सकता |या तो यह साधक के वशीभूत हो उसके मनोरथ पूर्ण करता है या निर्लिप्त रहता है प्रकृति में |इससे उच्च साधक या शक्ति के इसके विरुद्ध क्रिया करने पर यह हट जाता है या अदृश्य हो जाता है किन्तु यह नष्ट नहीं होता ,स्थान बदल देता है और अपने मूल ऊर्जा रूप [तरंगों] में आ जाता है |
पूर्व के अगिया बेताल साधना की तरह नीचे दिए जा रहे मंत्र की साधना अकेले नहीं की जा सकती ,क्योंकि यह एक उग्र मंत्र है |यह अत्यंत विस्फोटक मंत्र है अतः इसकी साधना किसी तांत्रिक की देखरेख में ही की जानी चाहिए |इस मंत्र की साधना में एक तिकोना हवन कुण्ड बनाना होता है और मंत्र जप के साथ हवन करना होता है |
मंत्र - ॐ अगिया बेताल वीरवर बेताल ,महाबेताल इहागच्छ इहतिष्ठ
      अग्निमुख अग्निभक्षी अग्निवासी महाविकराल फट स्वाहा   ||
इस मंत्र की साधना पूर्ण एकांत स्थान ,पुराना शिव मंदिर ,खुले मैदान ,श्मशान आदि में की जाती है |साधना काल रात्री का होता है और साधना योग्य तांत्रिक की देख रेख में की जाती है |बिन गुरु अनुमति और गुरु द्वारा प्रदत्त सुरक्षा कवच के साधना नहीं की जा सकती |गुरु भी इतना सक्षम होना चाहिए की किसी स्थिति में बेताल के विपरीत होने पर उसके प्रभाव को रोक सके |उसे कम से कम बेताल सिद्ध होना चाहिए |बेहतर हो वह महाविद्या सिद्ध हो |इंटरनेट की दुनिया से बनाए हुए गुरु संकट के समय में सहायता कर पायेंगे संदेह होता है ,इसलिए वास्तविक साधक गुरु ही बनाना चाहिए |
बेताल साधना में दिनों की संख्या का कोई महत्त्व नहीं कि इतने दिन में मंत्र जप और हवन पर बेताल सिद्ध हो जाएगा या आएगा इसलिए निश्चित संख्या की माला और हवन संख्या करना अच्छा है की इतने  जप और हवन करूँगा |माला रुद्राक्ष की होनी चाहिये |पूजन सामग्री साथ में हो जिससे पहले शिव जी की पूजा करें |एक माला और कुछ खाद्य पदार्थ हमेशा पास में होनी चाहिए जितने दिनों तक साधना चले |बेताल के उपस्थित होने पर माला पहनाने को और नैवेद्य खिलाने या अर्पित करने को चाहिए होती है |
एकांत स्थान या शिव मंदिर का चुनाव कर गुरु अनुमति के बाद रक्षाकवच के साथ पहले कुछ दिन शिव मंदिर में मंत्र का जप करना चाहिए |इसके बाद एक तिकोना हवन कुण्ड बना उस पर हवन सामग्री से उतनी ही संख्या में रोज हवन करना चाहिए जितना जप किया जा रहा था |हवन सामग्री में उग्र पदार्थ होने चाहिए |
साधना क्रम में एक दिन एक समय ऐसा आता है जब मंत्र पढ़ते हुए हवन करते अग्नि की विकरालता बढने लगती है अथवा अदृश्य आवाज आने लगती है या बेताल अपनी उपस्थिति आवाज के माध्यम से देता है |इस प्रकार अग्नि वृद्धि अथवा ध्वनि होने का अर्थ है की बेताल प्रकट हो रहा है |इस प्रकार निश्चित होने पर की बेताल ही उपस्थित हुआ है अपने दाहिने हाथ से मेवे का प्रसाद रख दिया जाना चाहिए |यदि बेताल साकार रूप में प्रकट हो तो उसे देखकर भयभीत न हों |उसे श्रद्धापूर्वक नमस्कार कर माला पहना दें तथा साष्टांग दंडवत करें |निश्चित रूप से बेताल वर मांगने का आग्रह करेगा |तब श्रद्धा पूर्वक हाथ जोडकर निवेदन करें की मेरी जीभ पर निवास करने की कृपा करें |
बेताल के निवास के तीन स्थान हैं |दाहिने हाथ का अंगूठा ,आँख और जीभ |बेताल के जीभ पर निवास करने पर इसकी पूर्ण शक्ति प्राप्त होती है |जीभ पर निवास करने पर यह स्मरण करते ही मनवांछित कार्य को पूरा कर देता है ,किन्तु इस प्रकार के साधक को अति संयमी और संतुलित मष्तिष्क का होना चाहिए ,क्योकि उग्र भावना पर यह अहित भी उसी अनुसार शुरू कर देता है |बेताल की साधना दिन में वर्जित है |इसकी साधना हमेशा रात्री में ही होती है |

सिद्धि प्रारम्भ एकाएक नहीं करनी चाहिए |गुरु अनुमति के बाद ,पहले कुछ दिन शिव मन्दिर में शिव की आराधना कर पूर्ण ब्रह्मचर्य और पूर्ण शुद्धता तथा संकल्प पूर्वक शिव जी से बेताल साधना की आज्ञा मांगनी चाहिए |फिर बेताल की सिद्धि के लिए चाहे तो उसी मंदिर में अथवा अन्य कहीं जाकर साधना करे |.........[अगला अंक -अगिया बेताल साधना [तृतीय पद्धति ]..................................................हर -हर महादेव 

विशेष - उपरोक्त यन्त्र हेतु अथवा किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच .