Friday, 8 September 2017

कैसे जगाएं छठी इन्द्रिय को

 :::::::::::::::::::कैसे जगाएं छठी इन्द्रिय को :::::::::::::::::::::
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छठी इंद्री को अंग्रेजी में सिक्स्थ सेंस कहते हैं। सिक्स्थ सेंस को जाग्रत करने के लिए योग में अनेक उपाय बताए गए हैं। इसे परामनोविज्ञान का विषय भी माना जाता है। असल में यह संवेदी बोध का मामला है। गहरे ध्यान प्रयोग से यह स्वत: ही जाग्रत हो जाती है।
 मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं, वहीं से सुषुन्मा रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है। सुषुन्मा नाड़ी जुड़ी है सहस्त्रार से। इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब हमारे दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी सक्रिय है। इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है। इड़ा, पिंगला और सुषुन्मा के अलावा पूरे शरीर में हजारों नाड़ियाँ होती हैं। उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ प्राणायाम और आसनों से ही होता है। शुद्धि और सशक्तिकरण के बाद ही उक्त नाड़ियों की शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है |
 यह छठी इंद्री सभी में सुप्तावस्था में होती है। भृकुटी के मध्य निरंतर और नियमित ध्यान करते रहने से आज्ञाचक्र जाग्रत होने लगता है जो हमारे सिक्स्थ सेंस को बढ़ाता है। योग में त्राटक और ध्यान की कई विधियाँ बताई गई हैं। उनमें से किसी भी एक को चुनकर आप इसका अभ्यास कर सकते हैं।
...... वैज्ञानिक कहते हैं कि दिमाग का सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत हिस्सा ही काम करता है। हम ऐसे पोषक तत्व ग्रहण नहीं करते जो मस्तिष्क को लाभ पहुँचा सकें, तब प्राणायाम ही एकमात्र उपाय बच जाता है। इसके लिए सर्वप्रथम जाग्रत करना चाहिए समस्त वायुकोषों को। फेफड़ों और हृदय के करोड़ों वायुकोषों तक श्वास द्वारा हवा नहीं पहुँच पाने के कारण वे निढाल से ही पड़े रहते हैं। उनका कोई उपयोग नहीं हो पाता। उक्त वायुकोषों तक प्राणायाम द्वारा प्राणवायु मिलने से कोशिकाओं की रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ जाती है, नए रक्त का निर्माण होता है और सभी नाड़ियाँ हरकत में आने लगती हैं। छोटे-छोटे नए टिश्यू बनने लगते हैं। उनकी वजह से चमड़ी और त्वचा में निखार और तरोताजापन आने लगता है।प्राणायाम से नादियों को शक्ति मिलती है जिससे छठी इंद्री के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां निर्मित होने लगती हैं |
.....  भृकुटी पर ध्यान लगाकर निरंतर मध्य स्थित अँधेरे को देखते रहें और यह भी जानते रहें कि श्वास अंदर और बाहर हो रही है। मौन ध्यान और साधना मन और शरीर को मजबूत तो करती ही है, मध्य स्थित जो अँधेरा है वही काले से नीला और नीले से सफेद में बदलता जाता है। सभी के साथ अलग-अलग परिस्थितियाँ निर्मित हो सकती हैं।मौन से मन की क्षमता का विकास होता जाता है जिससे काल्पनिक शक्ति और आभास करने की क्षमता बढ़ती है। इसी के माध्यम से पूर्वाभास और साथ ही इससे भविष्य के गर्भ में झाँकने की क्षमता भी बढ़ती है। यही सिक्स्थ सेंस के विकास की शुरुआत है। अंतत: हमारे पीछे कोई चल रहा है या दरवाजे पर कोई खड़ा है, इस बात का हमें आभास होता है। यही आभास होने की क्षमता हमारी छठी इंद्री के होने की सूचना है। जब यह आभास होने की क्षमता बढ़ती है तो पूर्वाभास में बदल जाती है। मन की स्थिरता और उसकी शक्ति ही छठी इंद्री के विकास में सहायक सिद्ध होती है|
त्राटक ,ध्यान केन्द्रीकरण आदि भी छठी इंद्री को जाग्रत करते हैं ,जिनके विषय में हम पहले लिख आये हैं |साकार बिंदु पर अथवा दीपक पर त्राटक से भी कुछ समय बाद अतीन्द्रिय शक्ति और छठी इंद्री विकसित होने लगती है |बाद के चरणों में यह छठी इंद्री को जाग्रत कर देती है |यह सभी साधन अथवा प्रयोग बहुत धैर्य और लगन शीलता माँगते हैं |छठी इंद्री जाग्रत होने पर लाभ की कल्पना नहीं की जा सकती |व्यक्ति में अतीन्द्रिय शक्तियों का उदय होने लगता है ,अब यह व्यक्ति पर निर्भर करता है की वह कहाँ तक क्या पा लेता है |
.............................................हर-हर महादेव 

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आत्मा की अलौकिक शक्ति

आत्मा की अलौकिक शक्ति  
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हमारे शरीर में आत्मा वह केंद्र है जिसे शक्ति भी कहते हैं। उसके अप्रकट रहने का कारण है कि हमारा शरीर उसके केंद्र से संपर्क नहीं रखता जहाँ से सब कुछ सनातन काल से संचालित हो रहा है। वस्तुतः जीवन धारा के प्रतिकूल प्रवाह से उस केंद्र में निष्क्रियता बनी रहती है। जबकि आवश्यक है कि वह विशिष्ट शक्ति शरीर के सभी अंगो तक पहुँचे।  यदि वह एक अंग पर भी नहीं पहुँचती तो वह अंग बेकार हो जाता है। इसलिए मनुष्य द्वारा प्रयत्न यह किया जाना चाहिए कि उसके सभी अंग सुपुष्ट रह सकें। उसके अंदर सर्वशक्तिमान परमात्मा की समस्त शक्तियों का समग्रता व परिपूर्णता से संचार हो सके।
इसके लिए हमें उसके प्रकाश को पहचानना होगा, जहाँ सत्य का अपने बुनियादी स्वरूप में निवास रहता है। उसी प्रकाश को जानने से हम परमात्मा को जान सकते हैं। उसको जाने बिना मोक्ष का द्वार कभी नहीं खुल सकता। उसे समझे बिना हम उस आनंद को नहीं समझ सकते, उस आनंद को वाणी के द्वारा अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। कोई भी शक्ति, कोई भी ऊर्जा तभी लाभदायक सिद्ध होती है जब उसका सही ढंग से उपभोग किया जाए। किसी भी ऊर्जा के सही प्रयोग की आवश्यकता होती है। विद्युत को ही लीजिए उसका सही प्रयोग न हो तो वह प्राणांतक सिद्ध होती है। उसका प्रयोग निर्माण और नाश दोनों में ही किया जा सकता है। इसी प्रकार की ऊर्जा हमारे पास भी विद्यमान है। यदि हम उसका सदुपयोग करना चाहें तो सहज ही कर सकते हैं। 
हमारे शरीर के अंदर अवस्थित आत्मा अनेकानेक अलौकिक शक्तियों से युक्त है। फिर भी उनकी जानकारी न होने तथा प्रयोग का सही तरीका न जानने की वजह से अधिकांश लोग उसका लाभ उठाने से वंचित रह जाया करते है। किंतु साधन होते हुए भी उनका उपयोग न कर पाना अपनी ही कमी कही जाती है। जरा सोचिए, जिसके पास नेत्र हैं और वे न देखें तो इसमें अपराध किसका कहा जाएगा?............................................................हर-हर महादेव

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महिलाओं की छठी इंद्री अधिक विकसित होती है

महिलाओं की छठी इंद्री अधिक विकसित होती है
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भारतीय परम्परा में महिलाओं को देवी कहा जाता है ,इसके अनेक कारण हैं |इसका एक कारण यह भी है की इनमे अतीन्द्रिय क्षमता पुरुष की अपेक्षा अधिक विकसित होती है |इसके विकास की संभावना अधिक होती है |कम प्रयास से अधिक सक्षम हो जाती है |इनमे प्रकृति की शक्ति अधिक आसानी से और शीघ्र स्थान ग्रहण करती है |इनमे सहानुभूति, भावुकता ,एकाग्रता ,सहनशीलता ,करुना आदि अधिक होती है ,जो इन्हें देवी स्वरुप प्रदान करता है |अब पाश्चात्य विज्ञान भी धीरे धीरे इसे प्रमाणित कर रहा है |
 ऐसा कहा जाता है कि महिलाओं में छठी इंद्रिय होती है| लेकिन अब वैज्ञानिकों ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है| ऑस्ट्रेलिया में हुए एक ताज़ा अध्ययन के मुताबिक महिलाएं किसी अपरिचित पुरुष का महज चेहरा भर देखकर बता सकती हैं कि वह विश्वास करने योग्य है या नहीं। खास बात यह है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में इस क्षमता का अभाव होता है। द जर्नल बायोलॉजी लैटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक महिलाओं में पुरुषों को देखकर उनका आकलन कर लेने की क्षमता होती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के एआरसी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के गिलीयन रोड्स के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया। अध्ययन के मुताबिक महिलाएं मानती हैं कि ज्यादा मर्दाना दिखने वाले पुरुष विश्र्वासपात्र नहीं होते हैं। महिलाओं के इस नजरिए में आकर्षण कोई भूमिका अदा नहीं करता है। अध्ययन के दौरान 34 महिलाओं और 34 पुरुषों को 189 वयस्कों के रंगीन फोटोग्राफ दिखाकर उनकी विश्वसनीयता का आकलन करने को कहा गया। अध्ययन में महिला प्रतिभागियों ने पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा सटीक जवाब दिए। वैज्ञानिकों के अनुसार विश्वसनीयता आपसी संबंधों के लिहाज से बेहद अहम है।.........................................................................हर-हर महादेव

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अंतरात्मा की आवाज -ईश्वर का संकेत है

ईश्वर का संकेत है अंतरात्मा की आवाज
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दैनिक जीवन में अक्सर देखते हैं कि दरवाजे की घंटी बजते ही मन में ख्याल आता है कि इस समय दरवाजे पर अमुक व्यक्ति ही होगा और दरवादा खोलने पर जिसका ख्याल आया था वही व्यक्ति होता है। इस प्रकार कभी-कभी अपने किसी मित्र से मिलने के लिए उसके घर पर जा रहे होते हैं कि अचानक दिमाग में विचार कौंधता है कि इस समय दोस्त के यहां जाना व्यर्थ होगा। वह नहीं मिलेगा। परंतु नहीं मानते और चल पड़ते हैं तथा वाकई में दोस्त नहीं मिलता हैं।
ऐसा भी होता है कि किसी रिश्तेदार या अभिन्न मित्र का ख्याल बार-बार आता है और यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि ऐसा क्यों हो रहा हैं? तभी उस दोस्त या रिश्तेदार के साथ कोई हादसा होने की खबर मिलती है। क्या यह सब संयोग है ? नहीं, यह संयोग नहीं है। आम भाषा में इसे अंतरात्मा की आवाज कहा जाता है। अनुभवियों का मानना है कि यह आवाज सभी के लिए कार्य करती है। सवाल सिर्फ इसको समझने और पहचानने का है तथा इसपर अटूट विश्वास करने पर ही और अभ्यास से इसे समझा तथा पहचाना जा सकता है।
वास्तव में यह सबकुछ अवचेतन मन की कार्यप्रणाली पर आधारित सुझाव होते हैं जिस पर जाग्रत अथवा चेतन मन क्रिया करता है |अवचेतन मन कोई क्रिया नहीं करता बस एक विचार उत्पन्न कर देता है ,मानना न मानना चेतन मन का काम है |इसी अवचेतन मन को हम ईश्वर या अंतरात्मा की आवाज कहते हैं |यह युगों युगों ,सदियों और कई जन्मो तक की सूचनाएं रख सकता है और यह पूर्व की स्सोच्नाओं और अनुभवों के विश्लेषण के बाद एक विचार देता है की यह होना चाहिए |आप माने या न माने पर यह विचार एकदम सटीक उतरता है |इसीलिए इसे ईश्वर की आवाज कहा जाता है |साधक और सिद्ध इसकी आवाज पर बहुत ध्यान देते हैं |एक झटके में इसने जो संकेत दे दिए वह बिलकुल सही होते हैं |साधना से वह इसे ही जाग्रत करते हैं |इसकी शक्ति को बढाते हैं |ध्यान साधना में भी सी की शक्ति को जगाया जाता है |वास्तव में ध्यान में जब विचारशून्यता आती है तो अवचेतन की क्रिया पूर्ण प्रभावी हो जाती है और उस पर से चेतन का प्रभाव हट जाता है और वह वास्तविकता के दर्शन कराती है |इसी की क्रिया अनवरत चलती है समाधि की अवस्था में और यही सभी अनुभवों का संकलन करती है |यही जन्मों के अनुभव याद रखती है और यही पारलौकिक अनुभव भी देखती सुनती और उस पर प्रतिक्रया करती है |इसका ही सीधा संभंध सूक्ष्म शरीर से होता है |बार बार दोहराई गई गलत सूचना यहाँ स्थायी हो जाती है और जब आप कोई सुझाव चाहते हैं तो आपकी बार बार बताई गई गलत बात यह आपको बता देता है |यह इसकी दोहरी कार्यप्रणाली बी है |इसीलिए कहा जाता है की अवचेतन की बात को बार बार ठुकराना नहीं चाहिए और इसे अनदेखा नहीं करना चाहिए |
यह आंतरिक शक्ति या अवचेतन मन की शक्ति अच्छाई और बुराई का भी ज्ञान कराती है। उदाहरण के लिए रास्ते में एक सौ का नोट पड़ा मिलता है, तो उसे तुरंत रख लेते हैं, परंतु आंतरिक शक्ति बताती है कि यह ठीक नहीं है। परंतु उसपर ध्यान नहीं देते हैं। बात वहीं विश्वास की है। यदि इसपर विश्वास करेंगे, तो अंतरात्मा की आवाज भी उतनी ही विकसित होगी और उसका अनुसरण कर बहुत लाभ ले सकते हैं। ध्यान रहे, अंतरात्मा की आवाज ईश्वरप्रदत्त संकेत है जिसमें आत्मा माध्यम है।  इसको पूर्णतया जागृत करने के लिए विश्वास के अतिरिक्त, मस्तिष्क में जब भी किसी भी प्रकार का विचार आये, तो गंभीरता से यह जानने का प्रयत्न करें कि यह विचर अचानक जागृत करने में आसानी होगी। जैसे अमुक कार्य करने जा रहे हैं, तो ख्याल आता है कि इसे अभी करें। चार दिन बाद कीजिए और देखेंगे की वह कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हो जाता है|
यदि ईश्वर में विश्वास रखते हैं ,यानी आस्तिक है, तो यह तय है कि अंतरात्मा की आवाज शीघ्र जागृत हो जाएगी| ज्यों-ज्यों विश्वास बढ़ेगा, त्यों -त्यों अंतरात्मा की आवाज जागृत होगी | आज विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक इसे छठी इंद्रिय, और सुपर चेतना के नाम से भी पुकारते हैं।..............................................................हर-हर महादेव 

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छठी इन्द्रिय [सिक्स्थ सेन्स ]या अतीन्द्रिय ज्ञान ::[भाग दो ]

छठी इन्द्रिय अर्थात अतीन्द्रिय ज्ञान से घटनाओं का पूर्वाभास
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क्या मनुष्य की छठी इंद्रिय होती है? कुछ लोग इसे हकीकत मानते हैं और कुछ कोरी कल्पना। अब वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में स्पष्ट किया है कि छठी इंद्रिय की बात सिर्फ कल्पना नहीं, वास्तविकता है, जो हमें किसी घटित होने वाली घटना का पूर्वाभास कराती है। 
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के रॉन रेसिक ने एक अध्ययन कर पाया कि छठी इंद्रिय के कारण ही हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास होता है। ऐसा माना जा रहा है कि अब लोगों की छठी इंद्रिय को और सक्रिय करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि वाहनों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं में कमी हो सके। रेसिक के अनुसार छठी इंद्रिय जैसी कोई भावना तो है और यह सिर्फ एक अहसास नहीं है। वास्तव में होशो-हवास में आया विचार या भावना है, जिसे हम देखने के साथ ही महसूस भी कर सकते हैं। और यह हमें घटित होने वाली बात से बचने के लिए प्रेरित करती है। करीब एक-तिहाई लोगों की छठी इंद्रिय काफी सक्रिय होती है। उन्हें घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है। इसे सही तरीके से परिभाषित करना तो मुश्किल है, लेकिन इसके होने से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। 
अल सुबह नींद से जागने के लिए अलार्म घड़ियाँ तो हर कोई इस्तेमाल करता है। लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते होंगे कि प्रकृति ने हमारे शरीर के भीतर भी एक अलार्म घड़ी की व्यवस्था कर रखी है। हाल ही में हुए वैज्ञानिक शोध से इस बात का पता चला है कि जब कभी हमें तड़के कहीं जाना होता है तो जागने के समय का अलार्म हमारे मस्तिष्क में स्वतः भर जाता है। हम भले ही सोते रहते हैं, लेकिन निर्धारित समय से 1 घंटे पूर्व हमारे रक्त में एक विशेष हार्मोन का स्राव होने लगता है और जब वह चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो हमारी नींद खुल जाती है। वैज्ञानिक इसे हार्मोन घड़ी कहते हैं। 
छठी इंद्री के जाग्रत होने से  व्यक्ति में भविष्य में झाँकने की क्षमता का विकास होता है। अतीत में जाकर घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुन सकते हैं। किसके मन में क्या विचार चल रहा है इसका शब्दश: पता लग जाता है। एक ही जगह बैठे हुए दुनिया की किसी भी जगह की जानकारी पल में ही हासिल की जा सकती है। छठी इंद्री प्राप्त व्यक्ति से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता और इसकी क्षमताओं के विकास की संभावनाएँ अनंत हैं।
आपने अगर स्टीवेन स्पिलबर्ग की चर्चित फिल्म मॉइनॉरिटी रिपोर्ट देखी हो तो आपको याद होगा कि कैसे उस फिल्म में एक विशेष सेल के सदस्य भविष्य में होने वाले अपराध को पता करके उसे घटित होने से पहले ही रोक देते थे। यह मजह एक फिल्मी कहानी नहीं है।

अतीन्द्रिय ज्ञान को वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित करने वाले विद्वानों का मानना है कि यदि कोई तत्व प्रकाश की गति से भी तीव्र गति करे तो उसके लिए समय रुक जाता है। दूसरे शब्दों में, वहां बीते कल, आज और आने वाले कल में कोई अंतर न रहेगा। अपने चित्त में यह गति साध ली जाए तो अतीत और भविष्य की घटनाएं चलचित्र की तरह देखी जा सकती हैं। अधिकतर दार्शनिकों का मत है कि घटनाओं के पूर्वाभास जीवन बचाने के लिए होते हैं और यह बात भी सच है कि यदि हम कमजोर मन इंसान से इस तरह के पूर्वाभासों का जिक्र करते है, तो वे किसी की मौत का कारण भी बन सकते हैं। अनेक बार पूर्वाभास स्पष्ट नहीं होते और न उनकी व्याख्या की जा सकती है।
प्रिमोनीशन एक्स्टां सॅन्सरी परसॅप्शन्स का वह रूप है, जिसे हम इन्स्टिंक्ट या भावी घटना का एक तीव्र आभास कह सकते हैं। ये एक तरह की 'इन्ट्यूटिव वॉर्निंग होती है, जो अवचेतन मन पर अंकित हो जाती है और कभी-कभी व्यक्ति को नियोजित कार्योँ को करने से मनोवैज्ञानिक तरह से रोकती हैं।
इसे बहुत से चिन्तक विशिष्ट घटनाओं की 'भविष्यवाणी भी कहते हैं। साइंस इसके स्टेट्स को अस्वीकार करता है। लेकिन दार्शनिकों का मानना है कि प्रिमोनीशन और प्रौफॅसी को व्यर्थ की चीज मानकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि घटनाओं के पूर्वाभास की जानकारी और उनका सही घटना प्रमाणित करता है कि 'प्रिमोनीशन में तथ्य है, इसकी अर्थवत्ता है।इस तरह से यह साइंस के लिए एक चेतावनी है, क्योंकि यह सृष्टि की गतिविधियों के साथ मानव मन के सघन संबंध का संकेत देती है। यह आन्तरिक शक्तियों और सृष्टि में स्पन्दित अलौकिक शक्तियों व उसके चक्र के अन्तर्संबंध का विज्ञान है। कहा जाता है कि नॉस्टेंडम ने अपनी मृत्यु की 'पूर्व घोषणा कर दी थी।
जुलाई 1, 1566 जब एक पुरोहित उनसे मिलने आया और जाने लगा तो नॉस्टेंडम ने उससे अपने बारे में कहा कि 'वह कल सूर्योदय होने तक मर चुका होगा। इसी तरह अब्राहम लिंकन ने अपनी मौत का सपना देखा और अपनी पत्नी व अंगरक्षक को अपने कत्ल से कुछ घंटे पहले इस बारे में बताया। ...............................................हर-हर महादेव 

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छठी इन्द्रिय [सिक्स्थ सेन्स ] या अतीन्द्रिय ज्ञान ::::[भाग एक ]

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हम सभी की चाहत रहती है कि जीवन में आने वाली घटनाओं को जान सकें। इसके लिए ज्योतिषी एवं भविष्यवक्ता से संपर्क करते हैं। लेकिन विज्ञान कहता है कि हम सभी भविष्य और भूत की घटनाओं को दर्पण की तरह देख सकते हैं। मानव के अंदर एक ऐसा जीन छुपा रहता है, जिससे उसे भावी घटनाओं का पता चल सकता है। लेकिन व्यावहारिक रूप से वह पता नहीं कर पाता। अब वैज्ञानिकों ने यह रहस्य खोल लिया है। मानव अपने मस्तिष्क के जरिये भविष्य की घटनाओं का पता आसानी से लगा सकता है। आम तौर पर हमें आज और अभी या अपने आसपास की घटनाओं की ही जानकारी होती है। आने वाले या बीत गए समय की अथवा दूरदराज की घटनाओं का पता नहीं चलता, लेकिन कोई विलक्षण शक्ति है, जो व्यक्ति को समय और दूरी की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए उपयोगी सूचनाएं देती है, जो भूत, भविष्य अथवा वर्तमान में झाँकने की क्षमता रखती है। भविष्य में होने वाली घटना का पहले से संकेत मिलना ही पूर्वाभास है।यह छठी इंद्री या सेन्स का काम होता है | कुछ लोगों में यह अतीन्द्रिय ज्ञान काफी विकसित होता है तो कहा जाता है की उनका छठी इन्द्रिय या सिक्स्थ सेन्स विकसित है |पूर्ण जाग्रत अवस्था में यह तीसरा नेत्र है | छठी इन्द्रिय या सिक्स्थ सेन्स द्वारा अतीन्द्रिय ज्ञान होता है अर्थात वह ज्ञान जो सामान्य इन्द्रियों की समझ और पकड़ से परे हो |सामान्यतः हम पाँच ज्ञानेन्द्रियों के जरिए वस्तु या दृश्यों का विवेचन कर पाते हैं, परंतु कभी-कभी या किसी में बहुधा छठी इन्द्रिय जागृत हो जाती है। इस कपोल-कल्पित इन्द्रिय को विज्ञान ने अतीन्द्रिय ज्ञान (एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन) का नाम देते हुए अपनी बिरादरी में शामिल कर लिया है।
इंद्रिय के द्वारा हमें बाहरी विषयों - रूप, रस, गंध, स्पर्श एवं शब्द - का तथा आभ्यंतर विषयों - सु: दु: आदि-का ज्ञान प्राप्त होता है। इद्रियों के अभाव में हम विषयों का ज्ञान किसी प्रकार प्राप्त नहीं कर सकते। इसलिए तर्कभाषा के अनुसार इंद्रिय वह प्रमेय है जो शरीर से संयुक्त, अतींद्रिय (इंद्रियों से ग्रहीत होनेवाला) तथा ज्ञान का करण हो (शरीरसंयुक्तं ज्ञानं करणमतींद्रियम्)बाह्य इंद्रियाँ क्रमश: गंध, रस, रूप स्पर्श तथा शब्द की उपलब्धि मन के द्वारा होती हैं | सुख दु:ख आदि भीतरी विषय हैं। इनकी उपलब्धि मन के द्वारा होती है |मन हृदय के भीतर रहनेवाला तथा अणु परमाणु से युक्त माना जाता है | इंद्रियों की सत्ता का बोध प्रमाण, अनुमान और अनुभव से होता है, प्रत्यक्ष से नहीं | सांख्य के अनुसार इंद्रियाँ संख्या में एकादश मानी जाती हैं जिनमें ज्ञानेंद्रियाँ तथा कर्मेंद्रियाँ पाँच पाँच मानी जाती हैं | ज्ञानेंद्रियाँ पूर्वोक्त पाँच हैं |कर्मेंद्रियाँ मुख, हाथ, पैर, मलद्वार तथा जननेंद्रिय हैं जो क्रमश: बोलने, ग्रहण करने, चलने, मल त्यागने तथा संतानोत्पादन का कार्य करती है | संकल्पविकल्पात्मक मन ग्यारहवीं इंद्रिय माना जाता है |
पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अतीन्द्रिय क्षमताओं को चार वर्गों में बाँटा है :
परोक्ष दर्शन- अर्थात वस्तुओं और घटनाओं की वह जानकारी, जो ज्ञान प्राप्ति के बिना ही उपलब्ध हो जाती है।
भविष्य ज्ञान- यानी बिना किसी मान्य आधार के भविष्य के गर्भ में झाँककर घटनाओं को घटित होने से पूर्व जान लेना।      
भूतकालिक ज्ञानबिना किसी साधन के अतीत की घटनाओं की जानकारी। 
टेलीपैथी- अर्थात बिना किसी आधार या यंत्र के अपने विचारों को दूसरे के पास पहुँचाना तथा दूसरों के विचार ग्रहण करना। इसके अलावा साइकोकाइनेसिस, सम्मोहन, साइकिक फोटोग्राफी आदि को भी परामनोविज्ञानियों ने अतीन्द्रिय शक्ति में शुमार किया है। 
विल्हेम वॉन लिवनीज नामक वैज्ञानिक का कहना है हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह कभी-कभार चमक उठने वाली इस क्षमता को विकसित कर पूर्वाभास को सामान्य बुद्धि की तरह अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लेता है। इस तरह की क्षमता अर्जित कर सकता है, जब चाहे दर्पण की तरह अतीत या भविष्य को देख सके। हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह अपनी अन्तर्प्रज्ञा को जगाकर भविष्य काल को वर्तमान की तरह दर्पण में देख ले।
अतीन्द्रिय ज्ञान को वैज्ञानिक आधार देते हुए केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक भौतिकी विद्वान एड्रियन डॉन्स ने फरमाया था, 'भविष्य में घटने वाली हलचलें वर्तमान में मानव मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंगें पैदा करती हैं, जिन्हें साइट्रॉनिक वेवफ्रंट कहा जा सकता है। इन तरंगों की स्फुरणाओं को मानव मस्तिष्क के स्नायुकोष (न्यूरान्स) पकड़ लेते हैं। इस प्रकार व्यक्ति भविष्य-कथन में सफल होता है। उनके मुताबिक मस्तिष्क की अल्फा तरंगों तथा साइट्रॉनिक तरंगों की आवृत्ति एक-सी होने के कारण सचेतन स्तर पर जागृत मस्तिष्क द्वारा ये तरंगें सहज ही ग्रहण की जा सकती हैं।
डरहम विश्वविद्यालय इंग्लैंड के गणितज्ञ एवं भौतिकीविद् डॉ. गेरहार्ट डीटरीख वांसरमैन का कथन है, 'मनुष्य को भविष्य का आभास इसलिए होता रहता है कि विभिन्न घटनाक्रम टाइमलेस (समय-सीमा से परे) मेंटल पैटर्न (चिंतन क्षेत्र) के निर्धारणों के रूप में विद्यमान रहते हैं। ब्रह्मांड का हर घटक इन घटनाक्रमों से जुड़ा होता है, चाहे वह जड़ हो अथवा चेतन।' 
एक्सप्लोरिंग साइकिक फिनॉमिना बियांड मैटर' नामक अपनी चर्चित पुस्तक में डी स्कॉट रोगो लिखते हैं, 'विचारणाएँ तथा भावनाएँ प्राणशक्ति का उत्सर्जन (डिस्चार्ज ऑफ वाइटल फोर्स) हैं। यही उत्सर्जन अंतःकरण में यदा-कदा स्फुरणा बनकर प्रकट होते हैं। जब यह दो व्यक्तियों के बीच होता है तो टेलीपैथी कहा जाता है और यदि यह समय-सीमा से परे सुदूर भविष्य की सूचना देता है तो पूर्वाभास | इसका आधारभूत कारण कॉस्मिक अवेयरनेस यानी ब्राह्मी चेतना होता है।' इस चेतना का जिक्र आइंस्टीन के सापेक्षवाद के सिद्धांत में मिलता है। उन्होंने लिखा है, 'यदि प्रकाश की गति से भी तीव्र गति वाला कोई तत्व हो तो वहाँ समय रुक जाएगा। दूसरे शब्दों में, वहाँ बीते कल, आज और आने वाले कल में कोई अंतर न रहेगा।'......[[क्रमशः -शेष अगले भाग में ]]...........................................हर-हर महादेव 

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