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छठी इंद्री को अंग्रेजी में सिक्स्थ सेंस कहते हैं। सिक्स्थ सेंस को जाग्रत करने के लिए योग में अनेक उपाय बताए गए हैं। इसे परामनोविज्ञान का विषय भी माना जाता है। असल में यह संवेदी बोध का मामला है। गहरे ध्यान प्रयोग से यह स्वत: ही जाग्रत हो जाती है।
मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं, वहीं से सुषुन्मा रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है। सुषुन्मा नाड़ी जुड़ी है सहस्त्रार से। इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा
पिंगला नाड़ी दायीं तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में
सूर्य स्वर स्थित रहता है। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब हमारे दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी
सक्रिय है। इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है। इड़ा, पिंगला और सुषुन्मा के अलावा पूरे शरीर में
हजारों नाड़ियाँ होती हैं। उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ
प्राणायाम और आसनों से ही होता है। शुद्धि और सशक्तिकरण के बाद ही उक्त नाड़ियों
की शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है |
यह छठी इंद्री सभी में सुप्तावस्था
में होती है। भृकुटी के मध्य निरंतर और नियमित ध्यान करते रहने से आज्ञाचक्र जाग्रत होने लगता है जो हमारे सिक्स्थ सेंस को बढ़ाता है। योग में त्राटक और ध्यान की कई विधियाँ बताई गई हैं। उनमें से किसी भी एक को चुनकर आप इसका अभ्यास कर सकते हैं।
...... वैज्ञानिक कहते हैं कि दिमाग का सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत हिस्सा ही काम करता है। हम ऐसे पोषक तत्व ग्रहण नहीं करते जो मस्तिष्क को लाभ पहुँचा सकें, तब प्राणायाम ही एकमात्र उपाय बच जाता है। इसके लिए सर्वप्रथम जाग्रत करना चाहिए समस्त वायुकोषों को। फेफड़ों और हृदय के करोड़ों वायुकोषों तक श्वास द्वारा हवा नहीं पहुँच पाने के कारण वे निढाल से ही पड़े रहते हैं। उनका कोई उपयोग नहीं हो पाता। उक्त वायुकोषों तक प्राणायाम द्वारा प्राणवायु मिलने से कोशिकाओं की रोगों
से लड़ने की शक्ति बढ़ जाती है, नए रक्त का
निर्माण होता है और सभी नाड़ियाँ हरकत में आने लगती हैं। छोटे-छोटे नए टिश्यू बनने लगते हैं। उनकी वजह से चमड़ी और त्वचा में निखार और
तरोताजापन आने लगता है।प्राणायाम से नादियों को शक्ति मिलती है जिससे छठी इंद्री
के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां निर्मित होने लगती हैं |
..... भृकुटी पर ध्यान लगाकर निरंतर मध्य स्थित अँधेरे को देखते रहें और यह भी जानते रहें कि श्वास अंदर और बाहर हो रही है। मौन ध्यान और साधना मन और शरीर को मजबूत तो करती ही है, मध्य स्थित जो अँधेरा है वही काले से नीला और नीले से सफेद में बदलता जाता है। सभी के साथ अलग-अलग परिस्थितियाँ निर्मित हो सकती हैं।मौन से मन की क्षमता का विकास होता जाता है जिससे काल्पनिक शक्ति और आभास
करने की क्षमता बढ़ती है। इसी के माध्यम से पूर्वाभास और साथ ही इससे भविष्य के
गर्भ में झाँकने की क्षमता भी बढ़ती है। यही सिक्स्थ सेंस के विकास की शुरुआत है। अंतत: हमारे पीछे कोई चल रहा है या दरवाजे पर कोई
खड़ा है, इस बात का हमें आभास होता है। यही आभास होने
की क्षमता हमारी छठी इंद्री के होने की सूचना है। जब यह आभास होने की क्षमता बढ़ती
है तो पूर्वाभास में बदल जाती है। मन की स्थिरता और उसकी शक्ति ही छठी इंद्री के
विकास में सहायक सिद्ध होती है|
त्राटक
,ध्यान केन्द्रीकरण आदि भी छठी इंद्री को
जाग्रत करते हैं ,जिनके विषय में हम पहले लिख आये हैं |साकार बिंदु पर अथवा दीपक
पर त्राटक से भी कुछ समय बाद अतीन्द्रिय शक्ति और छठी इंद्री विकसित होने लगती है |बाद
के चरणों में यह छठी इंद्री को जाग्रत कर देती है |यह सभी साधन अथवा प्रयोग बहुत
धैर्य और लगन शीलता माँगते हैं |छठी इंद्री जाग्रत होने पर लाभ की कल्पना नहीं की
जा सकती |व्यक्ति में अतीन्द्रिय शक्तियों का उदय होने लगता है ,अब यह व्यक्ति पर
निर्भर करता है की वह कहाँ तक क्या पा लेता है |
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