Saturday, 28 October 2017

अभिचार और संतान बाधा

अभिचार और  संतान बाधा
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अगर आप दोनों की अर्थात स्त्री और पुरुष की सभी डॉक्टरी जाँचे सही है तो हो सकता है की आप इन तांत्रिक क्रियाओ के शिकार हो गए हो और संतान सुख नहीं मिल रहा हो। किसी भी जोड़े के अगर सब कुछ सामान्य होने पर भी संतान हो रही हो तो इसको कोख बांधना कहते है।ये तंत्र क्रियाएँ स्त्री और पुरुष दोनों पर हो सकती है जो की विवाह से पहले या बाद में कभी भी हो सकता है।कोख बांधना अघोर क्रियाओ में से शरभ क्रिया के अंतर्गत बांधी जाती है ।ये पांच प्रकार से बंधी जाती है।जो निम्न है:-----
1.स्त्री कोख बंधाई:-- इस क्रिया में किसी भी स्त्री को तंत्र क्रिया से गर्भ धारन करने से बाँध दिया जाता है।
2.पुरुष बंधाई:-इस तंत्र क्रिया में किसी भी पुरुष को संतान सबंधी क्रियाओ के अंतर्गत बेकार कर दिया जाता है।
3.अष्टक कोख बंधाई:- इस क्रिया में पुरुष और स्त्री दोनों को ही तंत्र क्रियाओ से संतान के सम्बन्ध में बेकार कर दिया जाता है।
4.गर्भ कोख बंधाई:-इस प्रकार की बंधाई की तंत्र क्रिया में स्त्री गर्भ तो धारण करती है मगर पेट में पल रही संतान गर्भ के 6 वे महीने या उस से पहले ही मर जाती है।
5.तिशक कोख बंधाई:--- इस प्रकार की कोख बंधाई की तंत्र क्रिया में माँ बाप को निसाना बनाकर संतान्तं को निसाना बनाया जाता है।इसमें या तो संतान जनम के समय ही या जनम के 21 दिनके अंदर मर जाती है।
केवल इतनी ही जानकारी दे पाउँगा।क्रिया की क्रियाविधि के बारे में कोई पूछे।और स्त्रियों के लिए एक बात जरूर कहुगा की अपने सर के बाल और मासिक धर्म का रक्त का कपडा ऐसी जगह फेके जहा कोई आसानी से उनका उपयोग तंत्र क्रियाओ में कर सके।
और पुरुष किसी भी दबाव या प्यार में अमावस्या के दिन किसी के भी द्वारा दी गई काली मिर्च या काली मिर्च मिली हुई चीज खाये।
जब लगे की ऐसी किसी तरह की संभावना है तो योग्य तांत्रिक से संपर्क करें |इसके इलाज tantra में ही हैं ,|इसका इलाज डाक्टर और विज्ञानं नहीं कर सकता |इनमे विशेष क्रियाएं करके बंधन समाप्त किया जाता है |अगर कोई योग्य तांत्रिक न मिले अथवा तांत्रिकों से भय हो तो बगलामुखी अथवा काली के यन्त्र कवच धारण करें ,संतान गणपति और काली के मंत्र जप करें ,कुछ दिन में बंधन समाप्त होने की संभावना बनती है |श्वेतार्क गणपति पर संतान गणपति का मंत्र जप भी बहुत प्रभावी होता है |...............................................................हर-हर महादेव 

विशेष - उपरोक्त समस्या अथवा किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच . 

आद्य-शक्ति माँ कामाख्या और कुमारी पूजा

आद्य-शक्ति माँ कामाख्या और कुमारी पूजा
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सती स्वरूपिणी आद्यशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता है। इसीलिए इस शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी अत्यन्त महत्व है। यद्यपि आद्य-शक्ति की प्रतीक सभी कुल वर्ण की कौमारियाँ होती हैं। किसी जाति का भेद नहीं होता है। इस क्षेत्र में आद्य-शक्ति कामाख्या कौमारी रूप में सदा विराजमान हैं।
इस क्षेत्र में सभी वर्ण जातियों की कौमारियां वंदनीय हैं, पूजनीय हैं। वर्ण-जाति का भेद करने पर साधक की सिद्धियां नष्ट हो जाती हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि ऐसा करने पर इंद्र तुल्य शक्तिशाली देव को भी अपने पद से वंछित होना पड़ा था।
जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्व माना जाता है, ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्व है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं। इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं। मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं। इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है। मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी शाबर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये हैं।...............................................................हर-हर महादेव 

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कामाख्या देवी और अम्बुवाची पर्व

महामाता कामाख्या देवी और अम्बुवाची पर्व
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कामाख्या मंदिर गुवाहाटी(असम) से 8 किलोमीटर दूर जनपद कामरूप में नीलाचल पव॑त पर स्थित हॅ । यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका महत् तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। इसे तांत्रिकों का सुप्रीम कोर्ट कहा जाता है ; मान्यता है कि पराविद्धया(रहस्य विज्ञान) के जितने भी प्रेक्टिशनर हैं, यदि वे यहाँ नहीं आये तो उनके कार्यों में शिफा नहीं मिलता। मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।
विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता
है। यह अपने आप में, इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है।
 देवी के 51 शक्तिपीठों में से यह भी एक है। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने जब देवी सती के शव को चक्र से काटा तब इस स्थान पर उनकी योनी कट कर गिर गयी। इसी मान्यता के कारण इस स्थान पर देवी की योनी की पूजा होती है। प्रत्येक वर्ष तीन दिनों के लिए यह मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है। माना जाता है कि माँ कामाख्या इस बीच रजस्वला होती हैं। और उनके शरीर से रक्त निकलता है। इस दौरान शक्तिपीठ की अध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए देश के विभिन्न भागों से यहां तंत्रिक और साधक जुटते हैं। आस-पास की गुफाओं में रहकर वह साधना करते हैं।
चौथे दिन माता के मंदिर का द्वार खुलता है। माता के भक्त और साधक दिव्य प्रसाद पाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। यह दिव्य प्रसाद होता है लाल रंग का वस्त्र जिसे माता राजस्वला होने के दौरान धारण करती हैं। माना जाता है वस्त्र का टुकड़ा जिसे मिल जाता है उसके सारे कष्ट और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं। माता की शक्ति में जो लोग विश्वास करते हैं वह भी यहां आकर अपने को धन्य मानते हैं। जिन्हें ईश्वरीय सत्ता पर यकीन नहीं है वह भी यहां आकर माता के चरणों में शीश झुका देते हैं और देवी के भक्त बन जाते हैं।...........................................................हर-हर महादेव

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