Thursday, 7 September 2017

टेलीपैथी [विचार सम्प्रेषण ]

:::::::::::::::::::टेलीपैथी [विचार सम्प्रेषण ]::::::::::::::::::::::
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प्रकृति ने प्रत्येक मनुष्य के भीतर एक ऐसी शक्ति प्रछन्न कर दी है की उसके द्वारा वह कोई भी विलक्षण कृत्य कर सकता है |यह शक्ति जाने-अनजाने सभी को प्रभावित करती है और अपने अस्तित्व का बोध कराती रहती है |किसी अनजाने शहर में पहुचकर हम भयभीत होते हैं की क्या होगा ? ऐसे क्षणों में तहे दिल से हम अपने किसी घनिष्ठ मित्र को स्मरण करते हैं ,जिसके वहां उपस्थित होने की कोई सम्भावना नहीं होती ,हमें आश्चर्य तो तब होता है की जब उस अनजान शहर में हमारा वह मित्र हमें नजर जाता है और हमारी अपेक्षित सहायता करता है |इसे टेलीपैथी का एक जीवित उदाहरण समझा जा सकता है |ऐसा इसलिए होता की हमारे अवचेतन से निकली तरंगे हमें उस मित्र के पास होने का आभास कराती हैं और हमें उसकी याद आती है ,जिसके बारे में बाह्य ज्ञानेन्द्रियाँ सोच तक नहीं सकती ,मष्तिष्क की सोच से निकली तरंगे उस मित्र तक भी पहुचती हैं |
टेलीपैथी आज एक वैज्ञानिक सत्य के रूप में स्थापित हो चूका है |साधना रहस्य का यह आयाम मनुष्य की आभ्योत्तर शक्ति से सम्बंधित है |इसके निरंतर अभ्यास से मनुष्य बिना किसी वैज्ञानिक उपकरण या साधन के अपने विचारों और भावों को दूसरों तक संप्रेषित कर सकता है ,साथ ही किसी के भी अन्तःस्थल में पैठकर वह उसके गुप्त भावों को भी जन सकता है |वस्तुतः टेलीपैथी पूर्वाभास का ही एक रूप है |
टेलीपैथी द्वारा हम अपने घनिष्ठ प्रियजनों के बीच आतंरिक एकात्मकता स्थापित कर सकते हैं |प्राचीन ऋषि मुनियों को यह विद्या सहज सिद्ध थी |समाधि की अवस्था में वे ब्रह्माण्ड के किसी कोने की कोई भी सूचना ला सकते थे तथा ब्रह्माण्ड के किसी भी कोने में अपनी सूचना संप्रेषित कर सकते थे |उदाहरण के तौर पर जो भारतीय मनीषियों ने कई हजार साल पहले कहा था वे बातें पाश्चात्य विज्ञान आज प्रमाणित कर रहा है |खेद का विषय है की आधुनिक भारत अपनी इस पुरातन विद्या को विस्मृत कर चूका है ,जबकि पाश्चात्य देशों में इसके विविध आयामों का विकास किया जा रहा है |यहाँ प्रारम्भिक साधना के रूप में दो अलग -अलग कमरों में बैठे लोग अपने विचारों को परस्पर संप्रेषित करने का अभ्यास करते हैं |साधना की उच्चावस्था में वे एक-दुसरे के विचारों को सही-सही ढंग से पकड़ने में सफल हो जाते हैं |मनोविज्ञान से सम्बंधित होने के कारण टेलीपैथी में ऐसा माना जाता है की बेतार के तार की तरह मानस तत्त्व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैला होता है |कोई साधक अपने भावों को दूरस्थ बैठे व्यक्ति तक संप्रेषित करना चाहता है ,तब क्या होता है ?,उसके मन से भावों की एक तरंग उठती है और दुसरे वांछित मनुष्य के मानस क्षेत्र में वह प्रविष्ट हो जाती है |यह ठीक उसीप्रकार से होता है जैसे कोई भ्रमर एक पुष्प के सौरभ को लेकर उड़ता है और दुसरे पुष्प में उसे बिखेर देता है |टेलीपैथी का एक सामान्य उदाहरण आपका रात्री में खुद को एकाग्रता से दिया गया नेर्देश हो सकता है की में अमुक समय जाग जाऊं |आपको आश्चर्य होगा की आप उस समय एक बार जरुर जागेंगे |
पाश्चात्य देशों से टेलीपैथी से सम्बंधित अनेक उदाहरणों का संग्रह "कानिस्तल वाटर एपिसोड "नामक शोध प्रबंध में किया गया है तथा उनका परिक्षण करते हुए यह निष्कर्ष निकला गया है की मनुष्य की अतीन्द्रिय क्षमताओं के विकास की यह फलश्रुति है |प्रसिद्द फ्रांसीसी विद्वान् कैमायल प्लैमेरियन ने अपने ग्रन्थ "लिंनकोनू " में लिखा है की तीब्र संवेदना के क्षणों में आने वाली विपत्ति की जो पूर्व सूचना मिलती है, वह टेलीपैथी है ,इसे पुस्तक में अनेक उदाहरणों के साथ बताया गया है |"बियांड टेलीपैथी "नामक ग्रन्थ के लेखक एंट्रिजा पुहेरिव ने बोस्टन शहर के एक वेल्डिंग करने वाले कर्मचारी जैक सुलेवान के जीवन की एक अत्यंत आश्चर्यजनक घटना का उल्लेख किया है |उदाहरणों से स्पष्ट होता है की टेलीपैथी एक सशक्त वैज्ञानिक विद्या है ,जिसके द्वारा हम भविष्य की बातें जान सकते हैं |विपत्तियों के बारे में जानकार हम उनसे बचने के उअपय कर सकते हैं |टेलीपैथी के द्वारा केवल विपत्तियों की पूर्व जानकारी मिलती है ऐसा कहना एकांगी मत होगा |हमें जीवन के मांगलिक कार्यों की भी पूर्व सूचना टेलीपैथी के द्वारा मिल जाती है |कभी ऐसी सूचनाएं तीब्रतर संवेदनाओं के द्वारा होती है तो कभी स्वप्नों के माध्यम से पूर्वाभास हो जाता है |सामान्यतः यदि हम अपने पितरों को स्वप्न में देखें अथवा जाग्रत अवस्था में भी यदि छायाभास हो तो परिवार में कोई मांगलिक कार्य संपन्न होता है ऐसा समझना चाहिए |.....................................................................हर-हर महादेव 

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