Tuesday, 3 October 2017

शाह्तूर परी की साधना

:::::::::::::::::शाह्तूर परी की साधना [अप्सरा साधना ]:::::::::::::::::
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साधना क्षेत्र से जुड़े लोग अच्छी तरह जानते हैं की कोई भी साधना सरल नहीं होती |साधना करें और सफलता भी अवश्य मिले ऐसा बहुत कम मामलों में होता है ,कारण साधना के कुछ ऐसे गोपनीय तथ्य होते हैं ,विशेष तकनीकियाँ होती हैं ,जिनका सही उपयोग किया जाए तभी सफलता हासिल की जा सकती है |फेसबुक जैसे सामाजिक माध्यमों पर साधनाएं रोज प्रकाशित हो रही हैं एक से बढ़कर एक ,पर सफलता कितनी मिलेगी कहा नहीं जा सकता |इसका कारण है की सीढ़ी साधना देने से और करने से ,एक निश्चित संख्या में जप -हवन कर देने मात्र से सफलता नहीं मिलती ,इसके लिए विशेषज्ञ मार्गदर्शन आवश्यक होता है ,सामयिक तकनीकियों की जानकारी समय समय पर मिलती रहनी चाहिए |समय समय पर होने वाली अनुभूतियों -कठिनाइयों का सामयिक निराकरण होते रहना चाहिए |गोपनीय तथ्यों की जानकारी होते रहना चाहिए जो यहाँ नहीं बताया जाता है ,तभी सफलता मिलती है |
सौंदर्य साधना में अत्यधिक नियम -शर्त का बंधन तो नहीं रहता पर यहाँ सबसे अधिक आवश्यकता तकनिकी जानकारी की होती है |सौंदर्य साधना जैसे अप्सरा /परी ,यक्षिणी आदि अधिकांशतः शुभ मुहूर्त के ऊपर आधारित होती हैं और इस तरह की साधनाओं को संपन्न करने के लिए अधिकाँश साधक लालायित भी रहते हैं ,कारण की यह भौतिक उपलब्धियां देती हैं ,सुख-सुविधा बढ़ा देती हैं |भौतिक जीवन में पूर्णता लाती हैं |पर इनका दुरुपयोग भी होता है ,जिसका अंत बहुत बुरा होता है और भारी हानि की संभावना भी बनती है |सौंदर्य साधना का एक प्रकार शाहतूर परी की साधना भी है |यह अप्सरा साधना ही है जिसे मुस्लिम धर्म में परी कहा जाता है |
शाहतूर की परि जब प्रकट होती है तो ऐसा लगता है ,जैसे किसी शीतल मंद एवं सुगन्धित हवा के झोंके को किसी नारी का आकार दे दिया गया हो |इस परी का आकार बहुत ही मनोरम है |इसके पास से आती हिना की महक से ही साधक मदहोश होने लगता है |उसका गोरा बदन ,झीनी कंचुकी में बंधा उन्मुक्त यौवन मष्तिष्क को विचलित करता है |यहाँ संयम और शुद्धता की अत्यंत आवश्यकता होती है ,तभी साधक इस साधना में सफलता प्राप्त कर सकता है |अन्यथा साधक साधना में सफलता के इतने निकट पहुच जाने के बावजूद भी ,एक छलावे की तरह धोखा खा जाता है और उसकी सारी मेहनत मिटटी में मिल जाती है |इस साधना में परी साधक की साधना को भंग करने की कोसिस करती है ,क्योकि कोई भी शक्ति कभी किसी के नियंत्रण में नहीं आना चाहती |अतः विभिन्न प्रलोभनों और मोहक सौंदर्य आदि से यह विचलित करने का पूरा प्रयास करती है |विचलित हुए तो पतन हो जाता है |अतः मन को नियंत्रित रखना और संयमित रहना आवश्यक है |जब यह प्रकट हो तो मंत्र जप पूरा होते ही इसके गले में गुलाब के फूलों की माला डाल दें |माला स्वीकार होने पर यह साधक से प्रसन्न होकर पूछती है ,तब अपना मनोरथ बताकर और वचनबद्ध करके हमेशा के लिए अपने वश में कर सकते हैं |इससे विभिन्न काम कराये जा सकते हैं |भौतिक सुख-सुविधाएँ जुताई जा सकती हैं |उच्च साधना में सहायता ली जा सकती है |इस साधना में भयानक स्थिति भी आ सकती है ,क्योकि आसपास की नकारात्मक शक्तियां भी साधना से प्रभावित होती हैं |वह विघ्न-बाधा-उत्पात कर सकती हैं या साधना से आकर्षित हो प्रकट हो सकती हैं |इस समय किसी उच्च साधक द्वारा निर्मित यन्त्र-ताबीज आपकी रक्षा भी करता है ,विघ्न-बाधा भी हटता है और साधना में सफलता भी दिलाता है |यह साधना इस्लामी साधना है अतः इसे उसी रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है |करने को कोई भी कर सकता है |
साधना विधि :--
साधना शुक्रवार को रात्री ११ बजे प्रारम्भ करें |साधक सर्वप्रथम शुद्ध कूप या नल जल से स्नान कर लुंगी धारण करें ,सर पर जालीदार टोपी धारण करें |कमरा एकांत में और बिलकुल शांत हो |आसन हरे रंग का हो |आसन पर बैठने की मुद्रा नमाज पढने वाली हो |पूरे शरीर में हिना इत्र लगाएं |सामने ताम्बे की पट्टी पर अंकित यंत्र को स्थापित करें |[यन्त्र पहले से बनवाकर रखें ]|यन्त्र पर हिना लगाएं |लोबान की धूनी देकर निम्न मंत्र का निश्चित संख्या में जप करें | यह साधना मात्र नौ दिनों की है |९ दिन में शाह्तूर की परी प्रकट होती है |
मंत्र :-- ॐ नमो विस्मिल्लाही रहिमान रब्बे इन्नी मंगल फंतसीर |
................................................................हर-हर महादेव 

विशेष - किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच . 

श्वेतार्क गणपति साधना

:::::::::::::::सर्व मनोकामना सिद्धि प्रयोग :::::::::::::::::::
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मनुष्य का मन चंचल और विचलित होता है |एक कामना पूरी हुई नहीं की उससे पूर्व ही दूसरी इच्छा बलवती हो उठती है |समस्त प्रकार की मनोकामनाओं की सहजपूर्ती हेतु अत्यंत सरल किन्तु अत्यधिक प्रभावशाली प्रयोग प्रस्तुत है |जिससे अलौकिक शक्तियां पेज के पाठक लाभ उठा सकते हैं |
सामग्री :--
=========रवि पुष्य योग में निष्कासित ,प्राण प्रतिष्ठित ,मंत्र सिद्ध श्वेतार्क गणपति की मूर्ती ,जल पात्र ,लाल चन्दन ,कनेर के फूल ,केसर ,गुड ,अगरबत्ती ,शुद्ध घृत का दीपक ,पीला ऊनि आसन ,मूंगे की माला ,पवित्र लकड़ी का बाजोट या चौकी |
मंत्र :-- ॐ अन्तरिक्षाय स्वाहा
साधना विधि :--
=============किसी भी शुक्ल पक्ष के बुधवार या गणेश चतुर्थी को यह साधना प्रारम्भ कर सकते हैं |साधना प्रारम्भ करने वाले दिन सुबह स्नादी से निवृत्त हो ,पूर्ण पवित्र स्थिति में पीली सूती धोती धारण कर ,पीले आसन पर पूर्व को मुख करके स्थान ग्रहण करें |पवित्रीकरण,आचमन आदि करें |फिर संकल्प लें की आप एक निश्चित संख्या में रोज निश्चित समय पर निश्चित संख्या /दिन तक जप ,तत्पश्चात हवन करेंगे |फिर श्वेतार्क गणपति की विधिवत पूजा करें ,गुड का भोग लगाएं ,पुष्पादि चढ़ाएं दीपक आदि जलाएं | इसके बाद जप करें और अंत में जप गणेश भगवान को समर्पित करें और आरती करें |पूर्ण जप संख्या १२५००० है ,जिसे अधिकतम २१ दिनों में पूर्ण करें |जप धीमे स्वरों में धीमी गति से पूर्ण नाद और एकाग्रता के साथ करें |साधना अवधि में ही अथवा पूर्णता तक आपकी मनोकामना पूर्ण हो सकती है |मूल तत्व आपकी एकाग्रता है ,सदैव गणेश के ध्यान में डूबने का प्रयत्न करें |चूंकि तांत्रिक साधना है अतएव सुरक्षा कवच धारण करके साधना करें और प्रयास सदैव रहे की त्रुटी न होने पाए |अंतिम दिन हवन करें और ब्राह्मण दान आदि दें |........................................................हर-हर महादेव 

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हमजाद साधना

::::::::::::::::::हमजाद साधना ::स्वयं द्वारा स्वयं की साधना ::::::::::::::::::::
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मूलतः यह इस्लामी साधना है |इसे सिद्धों ने अपनाया और बहुत विकसित किया |बाद में इसका भारतीयकरण कर दिया गया और इसे सूक्ष्म शरीर की साधना कहा जाने लगा ,परन्तु यह सूक्ष्म शरीर की साधना नहीं है ,बल्कि उसके ऋणात्मक प्रतिरूप की साधना है |हमजाद साधना अपने ही स्वरुप के ऋण रूप की सिद्धि है |यह खुद द्वारा खुद की साधना है |अपने अन्दर उपस्थित सूक्ष्म शरीर की शक्ति की साधना है |यह अपनी अद्रश्य शक्ति या छाया की साधना है |इसकी सिद्धि होने पर आप इससे ऐसे रहस्यों को भी जान सकते हैं ,जो आप नहीं जान सकते |इसे ऐसे स्थानों पर भेजा जा सकता है ,जहाँ आप नहीं जा सकते |इससे वे कार्य भी करवाए जा सकते हैं जो आप नहीं कर सकते |हमजाद की सिद्धि का प्रयोग वशीकरण में भी किया जाता है |इसको लक्ष्य के प्रति एकाग्र करके वशीकरण का निर्देश देने पर यह साधक की मनोकामना को पूर्ण करता है |हमजाद का प्रयोग शत्रु दमन ,गुप्त क्रिया विधियों ,किसी रहस्य के ज्ञान ,जटिल समस्याओं के उत्तर आदि को जानने के लिए किया जाता है |इसका अभ्यास साधना पूर्ण होने के पश्चात् भी जब तब करते रहना चाहिए अन्यथा शक्ति क्षीण होने लगती है |
साधना विधि
==========अर्ध रात्री में दक्षिण दिशा की और मुह करके किसी एकांत कमरे में सरसों तेल में भैंस की चर्बी मिलाकर दीपक जलाएं |सामने एक आदमकद आइना लगाएं ,जिसमे आप अपनी पूरी क्षवी देख सकते हों |स्नानादि से निवृत्त हो आदमकद आईने के सामने बैठें |अपने इस रूप पर ध्यान लगाकर मंत्र जाप करें |यह क्रिया ४३ दिन तक २१०० मन्त्रों के जाप से करें |सात दिन तक यह उपर्युक्त प्रकार से की जाती है ,फिर यह सात दिनों तक घी-कपूर-लोबान-लौंग-जायफल आदि के साथ अपने सर के बाल के टुकड़े डालकर खैर की लकड़ी में हवंन करके की जाती है |शेष दिनों में आँखें बंद करके ध्यान में अपना रूप लाकर मंत्र जाप किया जाता है |जाप पूर्ण रूपें अपनी छवि में डूबकर किया जाता है |सिद्धि होने पर अपना स्वरुप ही प्रकट होता है |इसे पूरी तरह सिद्ध करके वचनबद्ध करके अनुष्ठान समाप्त किया जाता है |यह साधना विधि सामान्य जानकारी के उद्देश्य से दी गयी है की इस प्रकार इसकी साधना की जाती है |केवल इसके आधार पर साधना नहीं की जानी चाहिए क्योकि इसमें कुछ विशेष तकनीकियाँ अपनाई जाती है और कुछ समस्याएं भी आ सकती है |अतः बिना गुरु अथवा मार्गदर्शक के इसे नहीं किया जाना चाहिए |इसीलिए मंत्र भी नहीं दिया जा रहा है |बिना सुरक्षा कवच और गुरु के साधना नहीं किया जाना चाहिए |
विशेष जानकारी और चेतावनी
===================== --यह साधना कोई भी कर सकता है ,किन्तु यह तांत्रिक साधना ही है |मूल तांत्रिक पद्धति क्लिष्ट और गुरुगम्य होती है अतः गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक होता है |साधना समय में आसपास और व्यक्ति में उपस्थित अथवा उससे जुडी नकारात्मक शक्तियों को कष्ट और तकलीफ होती है ,उनकी ऊर्जा का क्षरण होता है ,फलतः वह तीब्र प्रतिक्रया करती है और साधक को विचलित करने के लिए उसे डराने अथवा बाधा उत्पन्न करने का प्रयास करती हैं ,कभी कभी पूजा से भी दूसरी नकारात्मक शक्ति आकर्षित हो सकती हैं |व्यक्ति के काम को बिगाड़ने और दिनचर्या प्रभावित करने का प्रयास भी यह नकारात्मक उर्जायें कर सकती हैं ,इसलिए यह अति आवश्यक होता है की साधना की अवधि में साधक किसी उच्च सिद्ध साधक द्वारा बनाया हुआ शक्तिशाली यन्त्र-ताबीज अवश्य धारण करे ,जिससे वह सुरक्षित रहे और साधना निर्विघ्न संपन्न करे |तीब्र प्रभावकारी साधना होने से प्रतिक्रिया भी तीब्र हो सकती है अतः सुरक्षा भी तगड़ी होनी चाहिए |यह गंभीरता से ध्यान दें की आप जो यन्त्र-ताबीज धारण कर रहे हैं वह वास्तव में उच्च शक्ति को सिद्ध किया हुआ साधक ही अपने हाथों से बनाए और अभिमंत्रित किये हुए हो ,अन्यथा बाद में सामने कह्तरे आने पर मुश्किल हो सकती है |सिद्ध अथवा साधक के यहाँ की भीड़ ,अथवा प्रचार से उनका चुनाव आपको गंभीर मुसीबत में डाल सकता है |साधना पूर्व गुरु से पूरी प्रक्रिया समझें , किसी भी प्रकार की त्रुटी होने अथवा समस्या-मुसीबत आने पर हम जिम्मेदार नहीं होंगे |गुरु का मार्गदर्शन और समुचित सुरक्षा करना साधक की जिम्मेदारी होगी |हमारा उद्देश्य सरल ,सात्विक ,तंत्रोक्त साधना की जानकारी देना मात्र है |..................................................................हर-हर महादेव 

विशेष - किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच . 

सूर्य साधना

वैदिक देवता ::तांत्रिक साधना
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:::::::::::::::::सूर्य साधना ::::::::::::::::::
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सूर्य साधना प्रकृति में हमारे सौर मंडल की धनात्मक ऊर्जा की साधना है |यह सौर मंडल इसी ऊर्जा से संचालित होता है और धनात्मक या सकारात्मक ऊर्जा के लिए यह सूर्य पर निर्भर है |सूर्य को वैदिक देवताओं में प्रमुख स्थान प्राप्त है |इनकी साधना में वैदिक कर्मकांड के साथ तांत्रिक और यौगिक पद्दतियों का भी समावेश हो चूका है |प्रस्तुत विधि एक सात्विक और उत्तम विधि है जिससे सूर्य की ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है|
सामग्री :-- सफ़ेद या पीली धोती ,ताम्बे के पात्र में भरा जल ,कुश का आसन |नदी या कमर भर स्वच्छ जल लायक कुंड |
विधि :-- यह साधना कमर भर जल में खड़े होकर की जाती है |समय है ब्रह्म मुहूर्त अर्थात रात्री तीन बजे से सूर्योदय तक |स्नान कर भीगी धोती कंधे से लपेटकर जल में पूर्व की और मुख करके खड़े हों |दोनों हाथों को प्रणाम की मुद्रा में ह्रदय तक करके त्राटक में सूर्य का ध्यान लगाते हुए मंत्र जप करें |यह जप लालिमा निकलने तक निरंतर लगातार चले |लालिमा निकलने पर जल को अंजलि में भरकर सर की उंचाई से आँखों के सामने गिराते हुए मंत्र जप जारी रखें |यह क्रिया पूर्ण सूर्य उदय तक चले |इसके पश्चात सूर्य को प्रणाम कर पूजा समाप्त करें |यह साधना कठिन हो तो पूर्व दिशा की और मुंह करके सुखासन में कुश के आसन पर बैठकर ध्यान लगाकर भी इसी समय मंत्र जप किया जा सकता है |किन्तु प्रक्रिया वाही रहेगी ब्रह्म मुहूर्त में ही स्नान करके आसन पर बैठें और त्राटक में ध्यान लगाकर सूर्य पर एकाग्र हो मंत्र जप करें |स्थान नदी का किनारा या खुला मैदान आदि हो |आसन ईशान कोण में होना चाहिए |इसमें भी प्रातःकाल अर्ध्य देना आवश्यक है |
उपरोक्त साधना की सिद्धि सामान्यतया १०८ दिन में होती है |ध्यान में देदीप्यमान सूर्य के स्थिर हो जाने पर साधना की सफलता माने |इस साधना से तेज प्राप्ति होती है ,रोग मुक्ति ,आयु वृद्धि ,नेत्र ज्योति वृद्धि ,दिव्यकान्ति ,मानसिक सबलता ,आकर्षण शक्ति प्राप्त होती है |ग्रह बाधा ,पित्र दोष का शमन होता है |नकारात्मक ऊर्जा हटती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ता है |......................................................हर-हर महादेव 

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हनुमान साधना

वैदिक देवता ::तांत्रिक साधना
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:::::::::::::::::हनुमान साधना ::::::::::::::::::::
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वैदिक देवता की तांत्रिक साधना के क्रम में हम अपने इस लेख में अपने पेज अलौकिक शक्तियां पर वैदिक देवता हनुमान की सरलतम तांत्रिक साधना प्रस्तुत करने का प्रयत्न कर रहे हैं जिससे सामान्यजन लाभान्वित हो सकें |हनुमान की अवधारणा या उत्पत्ति त्रेता में भगवान् राम के समय में मानी जाती है और इन्हें परम सात्विक देवता माना जाता है |इन्हें सामान्यतया वैदिक देवताओं में सम्मिलित किया जाता है यद्यपि इन्हें रुद्रावतार भी माना जाता है और शिव से सम्बद्ध भी माना जाता है |
हनुमान जी की साधना से बल ,धैर्य ,पराक्रम की प्राप्ति होती है |शत्रुओं का शमन होता है |संकटों से मुक्ति मिलती है ,कार्यसिद्धि होती है ,मनोकामना सिद्धि और रोगनाश होता है |
सामग्री :--लाल वस्त्र ,लाल आसन उनी, लाल सिन्दूर ,लाल पुष्प ,लड्डू आदि
मन्त्र :-- ॐ पूर्व कपि मुखाय पंचमुख हनुमते ,टं टं टं टं टं सकल शत्रु सन्हार्णाय स्वाहा |
विधि :-- संध्या से पूर्व ही ९ हाथ लम्बा ९ हाथ चौड़ा जमीन को साफ़ करके उसे गोबर-मिटटी के मिश्रण से लीप पोतकर साफ़ कर लें |इसके चारो और सिन्दूर -कपूर और लौंग के मिश्रण को मिलाकर एक सुरक्षात्मक घेरा बना लें |इस जमीन के ईशान कोण में तीन हाथ लम्बी और तीन हाथ चौड़ी जमीं पर अपना स्थान स्थापित करें जिसके ईशान में सवाहाथ की पीठिका बनायें जिस पर मूर्ती या चित्र स्थापित होगा |यह स्थान एकांत का हो |यदि घर में साधना कर रहे हैं तो १५ फुट लम्बे चौड़े कमरे के ईशान में स्थान बनाएं |कमरे में हवा और प्राकृतिक प्रकाश की समुचित सुविधा हो |अब भूमि के चारो और सुरक्षा घेरे पर जौ के आटे या चावल ,सिन्दूर ,तुलसी ,जल को मंत्र पढ़ते हुए छिडके |
 ईशान कोण में नैरित्य की और मुख किये हनुमान जी की पंचमुखी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए |प्रतिमा उपलब्ध न हो तो चित्र लगाएं |ईशान की और मुह करके त्राटक में हनुमान जी का ध्यान लगाएं |उपर्युक्त मंत्र का जप प्रतिदिन ११८८ बार धीमी गति से धीमे स्वरों में [उपांशु ]पूर्ण नाद के साथ करें |ध्यान हनुमान जी पर पूरी तरह एकाग्र रहे |सामान्यतया यह मंत्र १०८ दिन में सिद्ध होता है ,परन्तु क्षमता और एकाग्रता के अनुसार समय कम अधिक भी लग सकता है |जब त्राटक में ध्यान लगाते ही हनुमान जी का तेजोमय सजीव प्रत्यक्षीकरण होने लगे ,तब इस मंत्र को सिद्ध समझना चाहिए |किन्तु इसके बाद भी अभ्यास करते रहना चाहिए | .......................................................................हर-हर महादेव  

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अग्नि साधना

वैदिक देवता :: तांत्रिक साधना
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:::::::::::::::::अग्नि साधना :::::::::::::::::::
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वैदिक देवताओं में अग्नि का स्थान महत्वपूर्ण है |वेद के मूल देवताओं या शक्तियों में इनको स्थान दिया गया है | जैसा की हम अपने पिछले लेख वैदिक देवता ::तांत्रिक साधना में लिख आये हैं की वैदिक युग में समान्तर चलने वाली वैदिक कर्मकान्डिय और तांत्रिक साधनाएँ कालान्तर में युगीय परिवर्तन और सामयिक आवश्यकता के साथ आपस में एक दुसरे में मिलने लगी |सच्चाई-नैतिकता-आदर्शों के क्षरण और सामाजिक गिरावट, सबल के अत्याचार ,ताकत के केन्द्रीकरण से अलौकिक शक्तियों की आवश्यकता अधिक महसूस होने लगी ,फलतः अधिकतम उपलब्धि और सफलता के उद्देश्य से दोनों पद्धतियों पर शोध भी अधिक हुए और दोनों आपस में मिलने भी लगे |वैदिक देवताओं की तांत्रिक पद्धति से साधना होने लगी और वैदिक कर्मकांड का समावेश तांत्रिक साधनों में हो गया |आज यह आपस में पूर्ण मिल चुके हैं |इस क्रम में हम अपने इस लेख में अपने पेज अलौकिक शक्तियां पर वैदिक देवता अग्नि की सरलतम तांत्रिक साधना प्रस्तुत करने का प्रयत्न कर रहे हैं जिससे सामान्यजन लाभान्वित हो सकें |
अग्नि सिद्धि १०८ दिन में होती है |अधिक समय भी लग सकता है |इसका फल अवर्णनीय है |इससे तेज, पराक्रम, कांटी, आभा, दृष्टिबल, की बहुत वृद्धि होती है |चेतना की सबलता तो प्रथम दिन ही अनुभूति में आने लगती है |इसकी सिद्धि के पश्चात अद्भुत सम्मोहन शक्ति और भविष्य दर्शन की शक्ति प्राप्त होती है |दृष्टि में ऐसी तीब्रता आ जाती है की लोग दृष्टि मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाते |सभी प्रकार की अशुभता का शमन हो जाता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ जाता है |
सामग्री---धुप,दीप,घृत ,गुग्गुल, दही ,रक्त चन्दन ,शुभ वृक्षों की लकड़ियाँ [आम, अनार, बेल, चिडचिडा, आक, शमी आदि ],दूब, तिल, जौ, अरवा चावल, जल [ताम्बे के पात्र में ]अग्निवर्ण का ऊनि आसन ,अग्नि वर्ण का वस्त्र ,फूल आदि |
विधि --संध्या से पूर्व ही ९ हाथ लम्बा ९ हाथ चौड़ा जमीन को साफ़ करके उसे गोबर-मिटटी के मिश्रण से लीप पोतकर साफ़ कर लें |इसके चारो और सिन्दूर -कपूर और लौंग के मिश्रण को मिलाकर एक सुरक्षात्मक घेरा बना लें |इस जमीन के आग्नेय कोण में सवा हाथ भुजा वाली [वर्गाकार ]वेदी कोण पर पूर्व की और इस प्रकार बनाएं की उसके पश्चिम आसन बिछाने एवं पूजा सामग्री रखने के पश्चात भी सब कुछ ९ वर्ग हाथ मर निपट जाए |अर्थात यह सब कुछ आग्नेय कोण के ३ हाथ चौड़े और तीन हाथ लम्बे भाग में ही होना चाहिए |वेदी भूमि पर ही बनेगी |अब भूमि के चारो और सुरक्षा घेरे पर जौ के आटे या चावल ,सिन्दूर ,तुलसी ,जल को मंत्र पढ़ते हुए छिडके |
अब प्रातः ब्रह्म मुहूर्त [३ बजे ] में सभी प्रकार से स्वच्छ होकर वेदी के समीप आसन बिछाकर सभी सामग्री रखें और पूर्व की और मुह करके सुखासन में बैठे |अब गौ के कंडे में चिंगारी से अग्नि सुलगाएं |इस समय अनवरत मंत्र पढ़ते रहें |जब अग्नि सुलग जाए तो उसे ध्यान लगाकर प्रणाम करें और थोड़ी लकड़ी डालकर त्राटक में ध्यान लगाकर अग्नि शिखा पर ध्यान केन्द्रित करें और मंत्र जाप करते हुए हवन सामग्री थोडा-थोडा हवन कुंड [वेदी] में डालते जाएँ |यह क्रिया १०८ बार होनी चाहिए |फिर अग्नि देव को प्रणाम करके बची हुई हवन सामग्री को वेदी में डाल दें |इस क्रिया के मध्य आवश्यकतानुसार लकड़ी डालते रहें |यह साधना १०८ दिन में सिद्ध होती है |
हवन सामग्री में औषधियां ,चिडचिडी, बेल, आक, शमी, आम ,अनार आदि की लकड़ियाँ भी डाली जाती हैं |वे उपलब्ध हों तो ठीक है |न उपलब्ध हों तो एक ही लकड़ी से विधि करें |ध्यान को अग्नि की लपटों के तेज पर केन्द्रित करके एकाग्र रखें |इसकी सिद्धि में यही मुख्य तत्व है |ध्यान केंद्र सदैव त्राटक ही रखें |
मंत्र --मंत्र योग्य गुरु से प्राप्त करें |..................................................हर -हर महादेव 

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विष्णु साधना

वैदिक देवता :: तांत्रिक साधना
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::::::::::::::विष्णु साधना ::::::::::::::::
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जैसा की हम अपने पिछले लेख वैदिक देवता ::तांत्रिक साधना में लिख आये हैं की वैदिक युग में समान्तर चलने वाली वैदिक कर्मकान्डिय और तांत्रिक साधनाएँ कालान्तर में युगीय परिवर्तन और सामयिक आवश्यकता के साथ आपस में एक दुसरे में मिलने लगी |सच्चाई-नैतिकता-आदर्शों के क्षरण और सामाजिक गिरावट, सबल के अत्याचार ,ताकत के केन्द्रीकरण से अलौकिक शक्तियों की आवश्यकता अधिक महसूस होने लगी ,फलतः अधिकतम उपलब्धि और सफलता के उद्देश्य से दोनों पद्धतियों पर शोध भी अधिक हुए और दोनों आपस में मिलने भी लगे |वैदिक देवताओं की तांत्रिक पद्धति से साधना होने लगी और वैदिक कर्मकांड का समावेश तांत्रिक साधनों में हो गया |आज यह आपस में पूर्ण मिल चुके हैं |इस क्रम में हम अपने इस लेख में अपने पेज अलौकिक शक्तियां पर वैदिक देवता विष्णु की सरलतम तांत्रिक साधना प्रस्तुत करने का प्रयत्न कर रहे हैं जिससे सामान्यजन लाभान्वित हो सकें |
विष्णु वैदिक देवता हैं |सामान्य रूप से इनकी पूजा-आराधना-साधना वैदिक पद्धति से और लम्बे चौड़े कर्मकांड से होती आई है |किन्तु इसकी साधना सरल और तंत्रोक्त पद्धति से भी संभव है |इस पद्धति से सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है |पद्धति में तीन प्रकार की ऊर्जा एक साथ कार्य करती है |वस्तुगत ऊर्जा ,ध्वनि की ऊर्जा ,मानसिक बल की ऊर्जा |विष्णु भगवान सृष्टि के पालक हैं |यह समस्त सुख प्रदान कर सकते हैं,सारे दुर्भाग्य दूर कर सकते हैं |यह सर्वोच्च शक्ति माने जाते हैं वैदिक रूप से और माना जाता है की यह सब कुछ देने में सक्षम हैं | विष्णु की सामान्य सिद्धि से ज्ञान ,विवेक ,चेतना ,संकल्प की असाधारण वृद्धि होती है |प्रत्येक मनोकामना की पूर्ती होती है |उच्च स्तर की सिद्धि होने पर त्रिकाल दर्शिता प्राप्त हो सकती है और कुछ भी संभव है |
सामग्री ---पीला आसन, पीले फूल, पीले वस्त्र ,चन्दन की चौकी ,सफ़ेद चन्दन ,तुलसी दल ,जल ,घृत ,शुभ वृक्षों की लकड़ियाँ [आक, चिडचिडी, बेल, अनार ,आम, शमी,आदि] ,दूब, तिल, जौ, अरवा चावल ,धुप, गुग्गुल ,दही, ताम्बे का जल पात्र आदि |
मंत्र ---ॐ नमः नारायणाय
विधि --
संध्या से पूर्व ही ९ हाथ लम्बा ९ हाथ चौड़ा जमीन को साफ़ करके उसे गोबर-मिटटी के मिश्रण से लीप पोतकर साफ़ कर लें |इसके चारो और सिन्दूर -कपूर और लौंग के मिश्रण को मिलाकर एक सुरक्षात्मक घेरा बना लें |इस जमीन के ईशान  कोण में सवा हाथ भुजा वाली [वर्गाकार ]वेदी कोण पर पूर्व की और इस प्रकार बनाएं की उसके पश्चिम आसन बिछाने एवं पूजा सामग्री रखने के पश्चात भी सब कुछ ९ वर्ग हाथ मर निपट जाए |अर्थात यह सब कुछ ईशान कोण के ३ हाथ चौड़े और तीन हाथ लम्बे भाग में ही होना चाहिए |वेदी भूमि पर ही बनेगी |यह साधना क्योकि तंत्र से सम्बंधित है अतः मूल पद्धति वही रहती है |अगर इस साधना को घर में करना चाहते हैं तो ,किसी एकांत कमरे में किया जा सकता है जिसमे फर्श की जमीन न हो ,जमीन मिटटी की हो क्योकि वेदी मिटटी पर ही बनेगी ,और कमरा कम से कम १५ फुट लम्बा -चौड़ा हो तथा जिसमे खुली हवा का आवागमन हो |अगर ऐसा संभव नहीं है तो कही बाहर स्थान की व्यवस्था की जाए जहाँ एकांत हो |पद्धति में हवन की विशिष्ट भूमिका है |इससे उत्पन्न ऊर्जा ,ध्वनि और मानसिक बल की ऊर्जा के साथ सम्मिलित हो वातावरण से विष्णु की ऊर्जा से संपर्क बनाती है और उसे साधक तक आकर्षित करती है |साथ ही यह ऊर्जा को संघनित और तीब्र भी करती है जिससे सिद्धि संभव हो पाती है |
अब प्रातः ब्रह्म मुहूर्त [३ बजे ] में सभी प्रकार से स्वच्छ होकर वेदी के समीप आसन बिछाकर सभी सामग्री रखें और पूर्व की और मुह करके सुखासन में बैठे |आचमन ,प्राणायाम ,पवित्रीकरण करें |एक ताम्बे के कलश में जल भरकर रखें |चन्दन की चौकी पर तुलसी की कलम से सफ़ेद चन्दन के घोल से निम्नलिखित यन्त्र लिखे [चित्रानुसार ]|यन्त्र और जलपात्र की पूजा करें |अब भूमि के चारो और सुरक्षा घेरे पर जौ के आटे या चावल ,सिन्दूर ,तुलसी ,जल को मंत्र पढ़ते हुए छिडके |अब अग्नि मंत्र पढ़ते हुए पूर्व की और मुख करके गौ के कंडे से चिंगारी से  अग्नि प्रज्वलित करें |जब अग्नि सुलग जाए तो उसे धयान लगाकर प्रणाम करें |फिर थोड़ी लकड़ी डालकर  भगवान् विष्णु की साकार छवि या " ॐ " को ध्यान में लाकर मंत्र पढ़ते हुए अग्नि में हवि दें |हवि १०८ बार दी जायेगी धीरे -धीरे पूर्ण एकाग्रता और स्पष्ट मंत्र ध्वनि के साथ |पूजन समय उपरोक्त मंत्र रहेगा और हवन के समय उसमे स्वाहा का प्रयोग होगा |जब १०८ बार हव्य डाल दें तो बची हुई हवन सामग्री भी वेदी में डालकर ,अग्नि को प्रणाम करें |हवन के मध्य आवश्यकतानुसार लकड़ी वेदी में डालते रहें |इस अवसर पर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी किया जाता है जो सामान्यतया हवन के बाद होता है |सहस्त्रनाम से हवन भी किया जा सकता है जिसमे प्रत्येक श्लोक के प्रारम्भ और अंत में उपर्युक्त मंत्र को लगाना चाहिए |किन्तु इसमें समस्या ध्यान की आ जाती है ,अगर ध्यान विष्णु पर एकाग्र रहे और गुणों का चिंतन चलता रहे तो यह उत्तम हो सकता है |विष्णु जी की सामान्य सिद्धि १०८ दिन में होती है |इस अवधि में ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है | सामान्य सिद्धि के बाद भी अगर लगातार लगे रहें तो सिद्धि का स्तर बढ़ता जाता है ,फिर तो कुछ भी संभव है |
विशेष जानकारी और चेतावनी
===================== --यह साधना कोई भी कर सकता है ,किन्तु यह तांत्रिक साधना ही है |मूल तांत्रिक पद्धति क्लिष्ट और गुरुगम्य होती है किन्तु इसे कोई भी थोड़ी सावधानी से कर सकता है | साधना में साधित की जा रही शक्ति वैदिक और सौम्य हैं ,इनसे किसी प्रकार की हानि नहीं होती ,किन्तु परम सात्विक और उच्चतम सकारात्मक शक्ति होने से इनकी साधना से जब सकारात्मकता का संचार बढ़ता है तो ,आसपास और व्यक्ति में उपस्थित अथवा उससे जुडी नकारात्मक शक्तियों को कष्ट और तकलीफ होती है ,उनकी ऊर्जा का क्षरण होता है ,फलतः वह तीब्र प्रतिक्रया करती है और साधक को विचलित करने के लिए उसे डराने अथवा बाधा उत्पन्न करने का प्रयास करती हैं ,कभी कभी पूजा से भी दूसरी नकारात्मक शक्ति आकर्षित हो सकती हैं |व्यक्ति के काम को बिगाड़ने और दिनचर्या प्रभावित करने का प्रयास भी यह नकारात्मक उर्जायें कर सकती हैं ,इसलिए यह अति आवश्यक होता है की साधना की अवधि में साधक किसी उच्च सिद्ध साधक द्वारा बनाया हुआ शक्तिशाली यन्त्र-ताबीज अवश्य धारण करे ,जिससे वह सुरक्षित रहे और साधना निर्विघ्न संपन्न करे |तीब्र प्रभावकारी साधना होने से प्रतिक्रिया भी तीब्र हो सकती है अतः सुरक्षा भी तगड़ी होनी चाहिए |यह गंभीरता से ध्यान दें की आप जो यन्त्र-ताबीज धारण कर रहे हैं वह वास्तव में उच्च शक्ति को सिद्ध किया हुआ साधक ही अपने हाथों से बनाए और अभिमंत्रित किये हुए हो ,अन्यथा बाद में सामने कह्तरे आने पर मुश्किल हो सकती है |सिद्ध अथवा साधक के यहाँ की भीड़ ,अथवा प्रचार से उनका चुनाव आपको गंभीर मुसीबत में डाल सकता है |साधना पूर्ण है ,किन्तु इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटी होने अथवा समस्या-मुसीबत आने पर हम जिम्मेदार नहीं होंगे |गुरु का मार्गदर्शन और समुचित सुरक्षा करना साधक की जिम्मेदारी होगी |हमारा उद्देश्य सरल ,सात्विक ,तंत्रोक्त साधना की जानकारी देना मात्र है |....................[तंत्रोक्त तकनिकी जानकारी और पूर्ण साधना पद्धति के साथ सुरक्षा कवच हेतु हमारे ब्लॉग पर संपर्क किया जा सकता है ]......................................................हर-हर महादेव 

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वैदिक देवताओं की तांत्रिक साधना

:::::::::::::वैदिक देवता ::तांत्रिक साधना ::::::::::::::
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तंत्र के दो मुख्य मार्ग हैं ,जो दो विभिन्न सम्प्रदायों से उत्पन्न हुए हैं |वैदिक मार्ग और शैव मार्ग |इनमे वैदिक मार्ग को दक्षिण मार्ग और शैव मार्ग को वाम मार्ग सामान्य रूप से माना जाता है |वैदिक मार्ग और शैव मार्ग का कालान्तर में आपस में बहुत सम्मिश्रण हो गया जिससे आज दोनों की पद्धतियाँ एक दुसरे में मिल गयी हैं |यह आज नहीं मिले अपितु हजारों वर्ष पूर्व प्रजापति दक्ष के यज्ञ में हुए युद्ध के समय ही मिल गए थे |अतः बड़े बड़े तंत्र मार्गी और पंडित भी इनमे भेद कर पाने की स्थिति में नहीं हैं |विशेष कर दक्षिण मार्गी |वे आज वाम मार्ग की अनेक देवियों की पूजा अर्चना कर रहे हैं |शैव मार्ग का कालान्तर में बहुत विकास हुआ और इनके शक्ति रूपों का स्वतंत्र सम्प्रदाय विक्सित हो गया ,जैसे शाक्त मार्ग जो शक्ति/देवी आराधना को मुख्य मानता है ,गाणपत्य ,जो गणपति को मुख्या मानता है |तंत्र का सौर सम्प्रदाय सूर्य को मुख्या मानता है |लगभग सभी शक्तियां और गणपति आदि वास्तव में शिव परिवार के ही हैं अतः शैव मार्ग के अंतर्गत ही आयेंगे |चूंकि शिव तंत्र के देवता हैं और तंत्र के प्रवर्तक हैं अतः सभी तंत्र के देवी-देवता हो जाते हैं |
आपसी मिलाव के कारण वैदिक देवताओं की साधना तंत्र मार्ग से होने लगी |चूंकि तंत्र मार्ग ,तीक्ष मार्ग था अतः सफलता भी अधिक मिली जिससे इसका अत्यधिक प्रचार और विकास हुआ |वैदिक देवता मूल रूप से विष्णु कुल के माने जाते हैं ,इनमे इंद्र, अग्नि, सूर्य, विष्णु, रूद्र ,अश्विनी आदि हैं |यहाँ ध्यान देने योग्य है वैदिक रूद्र ,शिव नहीं हैं |ये तेज की उग्र भावना के प्रतीक हैं जबकि शिव आदि परमात्मा हैं |वैदिक रूद्र ,विष्णु के पर्याय समझे जा सकते हैं ,क्योंकि वैदिक देवता विष्णु के पर्याय माने जाते हैं ,तथापि सांस्कृतिक भावना में अंतर के कारण इनके वर्णन में भावान्तर है |रूद्र की साधना शिव के एक प्रधान गुण/शक्ति के रूप में वाम मार्ग या शैव/शाक्त सम्प्रदाय में भी होती है ,जो आज अधिक प्रचलित भी है ,जिसके कारण सामान्यलोग रूद्र को केवल शिव से जोड़ते हैं |राम, कृष्ण, हनुमान आदि अवतार रूप साकार ईश्वर की मान्यता के पश्चात ही दक्षिण मार्ग की पूजा पद्धति से जुड़े हैं |आज इन सभी रूपों की साधना /आराधना दक्षिण पंथ में विष्णु रूप में होती है जबकि वैदिक आर्य तो मूर्ती पूजक थे ही नहीं |वैदिक ऋषियों की दृष्टि में किसी मनुष्य या जीवधारी का ईश्वर रूप असंभव है |वे मानते थे महान व्यक्तित्व देव रूप तो हो सकते हैं ,किन्तु उन्हें वे निराकार सच्चिदानंद परमात्मा मानने की वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे |आज इन सभी वैदिक देवताओं की साधना में तांत्रिक दृष्टि का समावेश हो गया है और यह फलित भी शीघ्र होता है ,क्योकि तंत्र विभिन्न प्रकार से ऊर्जा उत्पत्ति और नियंत्रण का मार्ग है |आज सभी पूजा पद्धति लगभग तंत्र मार्ग से प्रेरित हैं |बाद में विकसित मार्ग पूर्ण तंत्र मार्ग का ही अनुसरण करते हैं जैसे जैन मार्ग ,बौद्ध मार्ग ,गोरख नाथ मार्ग आदि |
आज के समय में सभी देवी-देवताओं की साधना में तंत्र का और वैदिक पद्धतियों का मिश्रण है |वैदिक देवी-देवता की साधना तंत्र मार्ग से अधिक प्रभावकारी हो गयी है |वैदिक देवता अर्थात विष्णु कुल के देवी देवताओं की साधना की तंत्रोक्त पद्धति इनके शीघ्र अनुकूल होने में सहायक है |हम अपने आगे के पोस्टों में वैदिक देवताओं की तंत्रोक्त [किन्तु सात्विक दक्षिण मार्गी ] साधना पर क्रमशः प्रकाश डालने जा रहे हैं जिनमे अग्नि ,विष्णु ,राम ,कृष्ण ,सूर्य ,अश्विनी ,हनुमान ,इंद्र ,सरस्वती ,महालक्ष्मी आदि की साधना पद्धति के बारे में हम लिखेंगे ,जिससे सात्विक साधक लाभ उठा सकें |...............................................................................हर-हर महादेव 

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Tuesday, 12 September 2017

कैसे समाप्त हो वशीकरण का प्रभाव

कैसे निष्क्रिय करें वशीकरण की क्रिया
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आज के समय में सबसे अधिक दुरुपयोग अगर किसी तांत्रिक विधा का हुआ है तो वह वशीकरण का है |दुसरे स्थान पर कष्ट देने अथवा अपनी समस्या दुसरे को देने के प्रयोग आते हैं |लोग बिना किसी गंभीर कारण के ,शारीरक आकर्षण ,क्षणिक लगाव ,एकतरफा प्यार आदि तक में वशीकरण के टोटके कर रहे ,तांत्रिकों से क्रिया करवा दे रहे ,खुद प्रयोग कर रहे |अक्सर असफल होने पर भी स्वार्थ की बावना इतनी प्रबल है की खुद का स्वार्थ देखा जा रहा ,सामने वाले की कोई नहीं सोचता |अपने पति -पत्नी ,बेटे -बेटी ,परिवार -खानदान तक तो ठीक है पर लोग किसी दुसरे के पति ,पत्नी ,बेटा ,बेटी को वश में करने के लिए वशीकरण का सहारा ले रहे भले उनका कोई सीधे सम्बन्ध न हो |किसी का घर टूटे ,किसी का जीवन खराब हो ,बच्चे अनाथ जैसा जीवन जीने को विवश हों ,किसी की इज्जत जाए ,या कोई क्षति हो लोग नहीं सोच रहे केवल खुद का स्वार्थ देख रहे |इसमें आग में घी सा काम कर रहे तथाकथित तांत्रिक और बाबा ,जो खुले आम लव -वशीकरण स्पेस्लिस्ट बन टोटके बता रहे ,अपना उल्लू सीधा कर रहे |
भले सब पर यह क्रियाएं काम न करें किन्तु कुछ कमजोर ग्रह स्थितियों वाले ,कमजोर मानसिक बल वाले ,कमजोर कुलदेवता /देवी वाले अथवा कमजोर ईष्ट वाले या पतले खून वाले और डरपोक प्रकृति के लोग इन टोटकों से प्रभावित भ हो जा रहे |इसके कारण इनका जीवन खराब हो रहा |मान मर्यादा भूल कर ये ऐसी गलतियाँ कर जा रहे जो इन्हें बाद में कष्ट दे ,तत्काल तो समझ नहीं आता | हमारे पास अक्सर किसी की पत्नी ,किसी के पति ,किसी के पिता ,किसी की माता अथवा किसी के रिश्तेदार संपर्क करते रहते हैं की उनके अमुक पर वशीकरण जैसा प्रभाव लग रहा |अमुक का व्यवहार ऐसा हो गया या अमुक इससे जुड़ अपनी जिम्मेदारियां भूल रहा या अमुक इनके प्रति अन्याय इसके लिए कर रहा आदि आदि |इन सबको देखते हुए ही हमें यह लेख लिखने की प्रेरणा मिली की ,यदि लगे की किसी पर वशीकरण का प्रभाव है तो उसे कैसे समाप्त करें |कैसे किसी को किसी के वशीकरण के चंगुल से निकाले |आज के समय में वशीकरण करने से अधिक वशीकरण से बचाने की जरूरत लग रही ,जिससे वशीकरण जैसी एक अच्छी विधा का दुरुपयोग और प्रभाव सीमित किया जा सके |वशीकरण के प्रभाव कम अथवा समाप्त करने के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं -
. यदि लगे की किसी पर वशीकरण जैसी कोई क्रिया हुई है या पता चले की वशीकरण किया गया है तो अगर बहुत अधिक प्रभाव नहीं समझ आता तो ३ से ६ महीने इन्तजार किया जा सकता है |सामान्यतया टोटकों आदि का प्रभाव ३ से ६ महीने में समाप्त हो सकता है अथवा उनकी शक्ति कम हो जाती है |
. वशीकरण अथवा किसी भी अभीचार की संभावना पर सबसे पहले कुलदेवता /देवी पर ध्यान देना चाहिए और देखना चाहिए की उनकी पूजा आदि ठीक से हो रही है या नहीं |उनकी प्रसन्नता हेतु अपने कुल परंपरा अनुसार प्रयास करने चाहिए |इससे उन्हें बल भी मिलेगा और वे प्रसन्न हो सुरक्षा भी करेंगे |
. उच्च शक्ति द्वारा वशीकरण के प्रभाव अधिक दिनों और समय तक स्थायी होते हैं इसलिए इन्हें हटाना या निष्क्रिय करना भी कठिन होता है |सामान्य टोटकों अथवा ओझा -गुनिया द्वारा इन्हें दूर से हटा पाना मुश्किल होता है |ऐसी स्थिति में वशीकृत व्यक्ति के नजदीकी व्यक्ति द्वारा उग्र उच्च शक्ति की उपासना की जाती चाहिए जो शिव /काली कुल से सम्बंधित हो |इससे दो तरह की प्रतिक्रिया होती है ,एक तो वशीकरण जैसे अभिचार का प्रभाव कम होता है ,दुसरे कुलदेवता /देवी को बल मिलता है |
. यदि किसी स्त्री -पुरुष या युवक -युवती पर वशीकरण हुआ है और वह इसे जानता है तथा इसके प्रभाव को हटाना चाहता है तो उसे काली यन्त्र [ स्त्री के लिए ]अथवा बगलामुखी यन्त्र [पुरुष के लिए ] सिद्ध साधक से बनवाकर ताबीज में धारण कराना चाहिए और उससे विपरीत प्रत्यंगिरा का पाठ कराना चाहिए |
५. यदि किसी पर वशीकरण का प्रभाव हो और वह इतना वशीभूत हो की कोई उपाय न करना चाहे या न माने या वशीकरण कर्ता के विरुद्ध कुछ न सुनना चाहे तो उसके अनजाने में उसके तकिये /बिस्तर के नीचे काली कवच /ताबीज रखें और उसे काली अथवा दुर्गा कवच अथवा काली सहस्त्राक्षरी के कम से कम ११ पाठ से अभिमंत्रित जल पीने के पानी में मिलाकर दें |संभव हो तो उच्चाटन मंत्र से अभिमंत्रित जल भी पीने को दें |घर का कोई सदस्य अथवा पति -पत्नी जो भी उससे सम्बंधित हो वह विपरीत काली प्रत्यंगिरा का पाठ कम से कम २१ बार रोज करते हुए वशीभूत व्यक्ति का ध्यान करे और कामना रखे की सम्बन्धित व्यक्ति पर से अभिचार प्रभाव समाप्त हो |
. यदि किसी को वशीकरण की क्रिया कर कुछ खिला -पिला दिया गया है तो किसी अच्छे जानकार के पास ले जाएँ और खिलाया निकलवाने का प्रयास करें |अगर व्यक्ति तैयार न हो जाने के लिए तो किसी तांत्रिक से उच्चाटन मंत्र से लौंग अभिमंत्रित करा उसके खाने में मिला दें उपर से ,खिलाया वस्तु निकल भी सकता है अथवा उसका प्रभाव समाप्त हो सकता है |यह भी सम्भव न हो तो काली की पूजा कर दो लौंग चढ़ा उसके सामने बैठ ११ बार काली कवच या ह्रदय स्तोत्र या सहस्त्राक्षरी का पाठ करें और सम्बन्धित व्यक्ति के खाने पीने में उपर से मिला दें |यह क्रिया ११ दिन करें |खिलाये पिलाए का प्रभाव समाप्त हो जाएगा या कम हो जाएगा |
७. यदि किसी अपने पर वशीकरण की क्रिया हुई हो और वह दूर चला गया हो किसी के वशीभूत होकर या दूर जाने लगा हो तो उससे सम्बंधित व्यक्ति को स्वयं श्यामा मातंगी यन्त्र /कवच धारण करना चाहिए और भगवती काली के मन्त्र का जप करते हुए सम्बंधित व्यक्ति का ध्यान करना चाहिए |यदि वशीभूत व्यक्ति से मुलाक़ात सम्भव हो तो उसे १०८ महाविप्रीत काली प्रत्यंगिरा पाठ से अभिमंत्रित जल अथवा लौंग -इलायची किसी माध्यम से खिलाना पिलाना चाहिए |
. वशीकरण प्रभाव समाप्ति हेतु हमारे केंद्र से निर्मित चमत्कारी दिव्य गुटिका की रोज पूजा करें और उसके सामने २ लौंग और एक इलायची चढ़ाएं |इसके बाद २१ बार काली ह्रदय स्तोत्र अथवा काली कवच अथवा काली सहस्त्राक्षरी अथवा चंडी कवच अथवा महा विपरीत प्रत्यंगिरा का पाठ करें |यदि दुर्गा नवार्ण मन्त्र का जप करें तो कम से कम 5 माला करें |जप या स्तोत्र पाठ याद हों तथा पाठ समय ध्यान व्यक्ति पर हों |ऐसा लगातार २१ दिन करे |इसके बाद लौंग इलायची सम्बंधित व्यक्ति के भोज्य पदार्थ में ऊपर से पीसकर मिलाकर धीरे -धीरे कुछ दिनों में खिला दें |दिव्य गुटिका में सिन्दूर रोज चढ़ाएं और पूजा बाद उसमे से थोडा सिन्दूर ले सम्बंधित व्यक्ति के कपडे या शरीर पर लगा दें |वशीकरण प्रभाव समाप्त अथवा कम हो जाएगा |यह क्रिया पति -पत्नी अथवा माता -पिता और उनके बच्चों के लिए उपयोगी है |
. किसी सिद्ध प्राचीन काली मंदिर में शनिवार को सुबह जाएँ ,जहाँ रोज पूजा अर्चना जरुर होती हो और शिवलिंग की स्थापना भी जरुर हो मंदिर में |एक लुटिया जल साथ ले जाएँ |देवी का पूजन कर उनसे अपनी समस्या व्यक्त करें |लुटिया का जल वहां किसी स्थान पर ऐसे रखें की कोई उसे छुए नहीं |इस हेतु वहां के पुजारी को कुछ दान दक्षिणा देकर सहमत कर सकते हैं |२४ घंटे वह लुटिया वहां रहने दें |दुसरे दिन वहां जाकर पुनः पूजन कर लुटिया जल सहित घर ले आयें |इस जल को वशीभूत व्यक्ति को रविवार और मंगलवार उसके पीने के पानी में एक -दो बूँद मिलाकर दें |कुछ दिनों में वशीकरण का प्रभाव कम अथवा समाप्त हो जाएगा |
१०. किसी सिद्ध प्राचीन काली अथवा भैरव मंदिर में पता करते रहें की वहां कब कब हवन होता है |वहां के पुजारी को दान दक्षिणा देकर हवन भस्म प्राप्त करें |इस भस्म को वशीभूत के शरीर -कपडे पर अथवा तकिये के नीचे रखें या लगाएं |कम तीव्रता के वशीकरण प्रभाव समाप्त हो जायेंगे |
उपरोक्त तरीकों के अतिरिक्त और भी अनेकानेक तरीके हर पद्धति में हैं और जिनका प्रयोग तांत्रिक ऐसे मामलों में करते रहे हैं |उपरोक्त तरीके सामान्य लोगों के करने योग्य हैं अतः इन्हें यहाँ स्थान दिया गया है |तांत्रिक तो स्वयं अपने तरीके जानते हैं और वे उनका प्रयोग करेंगे ,जब आप उनसे संपर्क करेंगे तो |..................................................हर-हर महादेव


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Sunday, 10 September 2017

वशीकरण कब और क्यों काम नहीं करता

क्यों और कब काम नहीं करता वशीकरण प्रयोग
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बहुत से लोग कहते मिलते हैं वशीकरण काम नहीं किया |कुछ कहते हैं वशीकरण जैसा कुछ नहीं होता या पूछते मिलते हैं क्या सचमुच वशीकरण होता है |इनके कारण हैं |वशीकरण हमेशा हो ही जाए या वशीकरण क्रिया सफल ही हो जाए जरुरी नहीं होता |कोई भी षट्कर्म हो उसकी सफलता -असफलता कई कारकों पर निर्भर करती है |ऐसा ही वशीकरण के साथ भी है |यह सही है की किसी को भी वशीभूत किया जा सकता है ,किन्तु यह तभी संभव होता है जब उसे वशीभूत करने वाले की शक्ति उससे अधिक हो |शक्ति संतुलन करता की ओर होने पर वशीकरण होगा और शक्ति संतुलन लक्षित व्यक्ति की ओर होने पर वशीकरण नहीं होगा |इसी तरह वशीकरण की पूर्ण तकनिकी का ज्ञान न हो ,केवल पदार्थ या मंत्र उपयोग किये जाए तो भी वशीकरण नहीं होगा चाहे जितना मंत्र जप किया जाए |इस प्रकार वशीकरण आदि कई प्रकार के कारक पर निर्भर है |
वशीकरण किसी विवाहित स्त्री पर किया जा रहा हो और वह स्त्री पूर्ण पतिव्रता हो तो सामान्यतया वशीकरण काम नहीं करता ,जबकि यदि स्त्री का स्वभाव चंचल या विचलित होने वाला हो तो वशीकरण कार्य कर जाएगा |कोई पुरुष बहुत मजबूत आत्मबल का हो ,बेहद आत्मविश्वासी और निडर हो तो उस पर सामान्य वशीकरण काम नहीं करेगा | कुछ विशेष ज्योतिषीय योगों वाले लोगों अथवा विशेष लग्न के लोगों पर भी सामान्य वशीकरण की क्रियाएं काम नहीं करती |कोई कन्या बहुत मजबूत आत्मबल की ,निडर स्वभाव की ,चारित्रिक रूप से मजबूत हो तो उस पर सामान्य वशीकरण की क्रियाएं काम नहीं करेंगी |ऐसा ही किसी युवक के साथ होगा ,जबकि चारित्रिक रूप से कमजोर ,भयालू ,कमजोर आत्मबल के युवक -युवती सामान्य वशीकरण की क्रियाओं से प्रभावित हो जायेंगे |
किसी व्यक्ति के ईष्ट मजबूत हों ,प्रबल हों ,व्यक्ति उनसे गहरा लगाव रखता हो ,किसी के ईष्ट उग्र शक्ति हों और व्यक्ति उनकी नियमित आराधना -पूजा करता हो तो सामान्य वशीकरण की क्रियाएं उसपर काम नहीं करेंगी |किसी व्यक्ति अथवा युवक -युवती के कुलदेवता /देवी प्रसन्न हों उसके परिवार पर ,उनकी पूजा नियमित नियमानुसार हो रही हो और वह उसके परिवार की रक्षा कर रहे हों तो भी वशीकरण आदि षट्कर्म सामान्यतया काम नहीं करेंगे ,क्योकि कुलदेवता और कुलदेवी अधिकतर शिव परिवार से सम्बंधित होते हैं और इनके प्रसन्न रहने पर कोई अभिचार काम नहीं करता |यह परिवार व्यक्ति की सुरक्षा करते हैं तथा किसी वशीकरण आदि क्रिया के लिए बाधा उत्पन्न कर उसे असफल कर देते हैं |यदि किसी परिवार में किसी उग्र शक्ति दुर्गा ,काली ,भैरव आदि की स्थापना हो तो वहां वशीकरण आदि क्रिया काम नहीं करती |किसी परिवार पर कोई आत्मिक शक्ति प्रसन्न हो तो वह किसी षट्कर्म के प्रति परिवार को विभिन्न तरीके से सचेत कर देती है |
उपरोक्त प्रकार के लोगों पर वशीकरण की क्रिया करने के लिए बेहद सक्षम साधक ,प्रबल तकनीक और पद्धति की आवश्यकता होती है |यहाँ खिलाने -पिलाने - लगाने -सुंघाने की वस्तुएं काम करती हैं किन्तु उन्हें भी तीव्र मन्त्रों और पद्धतियों से अभिमंत्रित ,क्रियाशील करना पड़ता है |सामान्य टोटकों ,मन्त्रों ,तरीकों से यहाँ काम नहीं बनता और अक्सर वशीकरण असफल हो जाता है अथवा इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता |यहाँ प्रयोग किये जाने वाले मंत्र भी सामान्य न होकर विशेष होते हैं जिन्हें पहले विशिष्ट अनुष्ठान पर सिद्ध करना होता है और यह विशेष तीव्र अथवा उग्र शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं |यहं ऐसी पद्धति प्रयोग में लाइ जाती है जो विशेष ग्रहों के प्रभाव होने पर भी क्रिया करे ,कुलदेवता -देवी की शक्ति को काट सके ,प्रबल ईष्ट होने पर भी प्रभाव दे अथवा किसी शक्ति की सूचना पर भी अपना काम कर जाए |यह सब सामान्य लोगों के वश का अक्सर नहीं होता |विशेष साधक अथवा व्यक्ति ही यह सब कर सकता है ,अतः अक्सर सामान्य क्रियाएं उपरोक्त प्रकार के लोगों पर प्रभाव नहिन्दाल पाती और असफलता हाथ लगने से लोग कहने लगते हैं की वशीकरण काम नहीं किया |
वशीकरण के लिए उपयुक्त शक्ति का प्रयोग न हो ,लक्षित व्यक्ति तक पहुँचने की सुविधा न हो ,लक्षित व्यक्ति उपरोक्त किसी प्रकार से सक्षम हो तो वशीकरण काम नहीं करेगा |किसी पर कोई उग्र अभिचार पहले से किया गया हो |किसी प्रकार की वशीकरण आदि क्रिया पहले से की गयी हो तो भी वशीकरण की क्रिया काम नहीं करेगी |किसी पर वशीकरण आदि की क्रिया पहले से हो या कुछ खिलाया -पिलाया गया हो अभिमंत्रित कर तो पहले उसे उदासीन अथवा निष्क्रिय किये बिन कोई नयी क्रिया उस पर काम नहीं करेगी या अगर काम भी करेगी तो उसका मानसिक संतुलन बना रहेगा इसमें संदेह हो जाएगा ,क्योकि कोई भी क्रिया व्यक्ति के मष्तिष्क को प्रभावित करता है |किसी पर अनेक क्रिया कर दी जाए तो व्यक्ति उलझ जाएगा ,अस्त व्यस्त हो जाएगा और असंतुलित हो सामान्य जीवन नहीं जी पायेगा |

वशीकरण की पूर्ण तकनीक का ज्ञान न हो ,मंत्र आदि के उच्चारण ,पद्धति का ज्ञान न हो तो भी वशीकरण क्रिया काम नहीं करेगी |इन सब बातों का ध्यान रखने पर ही वशीकरण सफल हो सकता है अन्यथा असफल हो जाता है और काम नहीं करता |अक्सर ऐसे ही असफल लोग जो उपरोक्त बात नहीं जानते ,उपरोक्त कारण नहीं समझते ,शक्ति संतुलन नहीं पकड पाते ,कहते मिलते हैं की सब धोखा है ,कोई वशीकरण नहीं होता ,वशीकरण आदि काम नहीं करता आदि आदि |यद्यपि इस मार्ग में धोखे तो बहुत हैं और अक्सर धोखे तब मिलते हैं जब व्यक्ति खुद कुछ न करना चाहे और उम्मीद करता है की तांत्रिक उनका काम कर दे और वे कुछ पैसे देकर किसी को वशीभूत करा लें |पैसे लेने के बाद किसने क्या किया कोई नहीं जानता ,अगर कुछ करता भी है तो उपरोक्त वशीकरण में बाधक कारणों के अतिरिक्त तांत्रिक का कोई मानसिक जुड़ाव भी लक्ष्य के प्रति नहीं होता और दूरी भी होती है ,इस कारण या तो वह बहुत सक्षम अनुष्ठान करे तब सफल हो या खुद कहीं शामिल हो तब |जबकि सामान्यतया इतना न कोई देता है न कोई करता है |इसलिए भी वशीकरण मुश्किल हो जाता है ||अतः अगर खुद प्रयास किया जाए तो बेहतर है |.....[[ अगला अंक - कैसे निष्क्रिय करें वशीकरण की क्रिया को ]]...........................................हर-हर महादेव

विशेष - किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच .