Tuesday 3 October 2017

वैदिक देवताओं की तांत्रिक साधना

:::::::::::::वैदिक देवता ::तांत्रिक साधना ::::::::::::::
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तंत्र के दो मुख्य मार्ग हैं ,जो दो विभिन्न सम्प्रदायों से उत्पन्न हुए हैं |वैदिक मार्ग और शैव मार्ग |इनमे वैदिक मार्ग को दक्षिण मार्ग और शैव मार्ग को वाम मार्ग सामान्य रूप से माना जाता है |वैदिक मार्ग और शैव मार्ग का कालान्तर में आपस में बहुत सम्मिश्रण हो गया जिससे आज दोनों की पद्धतियाँ एक दुसरे में मिल गयी हैं |यह आज नहीं मिले अपितु हजारों वर्ष पूर्व प्रजापति दक्ष के यज्ञ में हुए युद्ध के समय ही मिल गए थे |अतः बड़े बड़े तंत्र मार्गी और पंडित भी इनमे भेद कर पाने की स्थिति में नहीं हैं |विशेष कर दक्षिण मार्गी |वे आज वाम मार्ग की अनेक देवियों की पूजा अर्चना कर रहे हैं |शैव मार्ग का कालान्तर में बहुत विकास हुआ और इनके शक्ति रूपों का स्वतंत्र सम्प्रदाय विक्सित हो गया ,जैसे शाक्त मार्ग जो शक्ति/देवी आराधना को मुख्य मानता है ,गाणपत्य ,जो गणपति को मुख्या मानता है |तंत्र का सौर सम्प्रदाय सूर्य को मुख्या मानता है |लगभग सभी शक्तियां और गणपति आदि वास्तव में शिव परिवार के ही हैं अतः शैव मार्ग के अंतर्गत ही आयेंगे |चूंकि शिव तंत्र के देवता हैं और तंत्र के प्रवर्तक हैं अतः सभी तंत्र के देवी-देवता हो जाते हैं |
आपसी मिलाव के कारण वैदिक देवताओं की साधना तंत्र मार्ग से होने लगी |चूंकि तंत्र मार्ग ,तीक्ष मार्ग था अतः सफलता भी अधिक मिली जिससे इसका अत्यधिक प्रचार और विकास हुआ |वैदिक देवता मूल रूप से विष्णु कुल के माने जाते हैं ,इनमे इंद्र, अग्नि, सूर्य, विष्णु, रूद्र ,अश्विनी आदि हैं |यहाँ ध्यान देने योग्य है वैदिक रूद्र ,शिव नहीं हैं |ये तेज की उग्र भावना के प्रतीक हैं जबकि शिव आदि परमात्मा हैं |वैदिक रूद्र ,विष्णु के पर्याय समझे जा सकते हैं ,क्योंकि वैदिक देवता विष्णु के पर्याय माने जाते हैं ,तथापि सांस्कृतिक भावना में अंतर के कारण इनके वर्णन में भावान्तर है |रूद्र की साधना शिव के एक प्रधान गुण/शक्ति के रूप में वाम मार्ग या शैव/शाक्त सम्प्रदाय में भी होती है ,जो आज अधिक प्रचलित भी है ,जिसके कारण सामान्यलोग रूद्र को केवल शिव से जोड़ते हैं |राम, कृष्ण, हनुमान आदि अवतार रूप साकार ईश्वर की मान्यता के पश्चात ही दक्षिण मार्ग की पूजा पद्धति से जुड़े हैं |आज इन सभी रूपों की साधना /आराधना दक्षिण पंथ में विष्णु रूप में होती है जबकि वैदिक आर्य तो मूर्ती पूजक थे ही नहीं |वैदिक ऋषियों की दृष्टि में किसी मनुष्य या जीवधारी का ईश्वर रूप असंभव है |वे मानते थे महान व्यक्तित्व देव रूप तो हो सकते हैं ,किन्तु उन्हें वे निराकार सच्चिदानंद परमात्मा मानने की वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे |आज इन सभी वैदिक देवताओं की साधना में तांत्रिक दृष्टि का समावेश हो गया है और यह फलित भी शीघ्र होता है ,क्योकि तंत्र विभिन्न प्रकार से ऊर्जा उत्पत्ति और नियंत्रण का मार्ग है |आज सभी पूजा पद्धति लगभग तंत्र मार्ग से प्रेरित हैं |बाद में विकसित मार्ग पूर्ण तंत्र मार्ग का ही अनुसरण करते हैं जैसे जैन मार्ग ,बौद्ध मार्ग ,गोरख नाथ मार्ग आदि |
आज के समय में सभी देवी-देवताओं की साधना में तंत्र का और वैदिक पद्धतियों का मिश्रण है |वैदिक देवी-देवता की साधना तंत्र मार्ग से अधिक प्रभावकारी हो गयी है |वैदिक देवता अर्थात विष्णु कुल के देवी देवताओं की साधना की तंत्रोक्त पद्धति इनके शीघ्र अनुकूल होने में सहायक है |हम अपने आगे के पोस्टों में वैदिक देवताओं की तंत्रोक्त [किन्तु सात्विक दक्षिण मार्गी ] साधना पर क्रमशः प्रकाश डालने जा रहे हैं जिनमे अग्नि ,विष्णु ,राम ,कृष्ण ,सूर्य ,अश्विनी ,हनुमान ,इंद्र ,सरस्वती ,महालक्ष्मी आदि की साधना पद्धति के बारे में हम लिखेंगे ,जिससे सात्विक साधक लाभ उठा सकें |...............................................................................हर-हर महादेव 

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