वैदिक
देवता :: तांत्रिक साधना
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:::::::::::::::::अग्नि साधना :::::::::::::::::::
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वैदिक
देवताओं में अग्नि का स्थान महत्वपूर्ण है |वेद के मूल देवताओं या शक्तियों में
इनको स्थान दिया गया है | जैसा की हम अपने पिछले लेख वैदिक देवता ::तांत्रिक साधना
में लिख आये हैं की वैदिक युग में समान्तर चलने वाली वैदिक कर्मकान्डिय और
तांत्रिक साधनाएँ कालान्तर में युगीय परिवर्तन और सामयिक आवश्यकता के साथ आपस में
एक दुसरे में मिलने लगी |सच्चाई-नैतिकता-आदर्शों के क्षरण और सामाजिक गिरावट, सबल के
अत्याचार ,ताकत के केन्द्रीकरण से अलौकिक शक्तियों की आवश्यकता अधिक महसूस होने
लगी ,फलतः अधिकतम उपलब्धि और सफलता के उद्देश्य से दोनों पद्धतियों पर शोध भी अधिक
हुए और दोनों आपस में मिलने भी लगे |वैदिक देवताओं की तांत्रिक पद्धति से साधना
होने लगी और वैदिक कर्मकांड का समावेश तांत्रिक साधनों में हो गया |आज यह आपस में
पूर्ण मिल चुके हैं |इस क्रम में हम अपने इस लेख में अपने पेज अलौकिक शक्तियां पर
वैदिक देवता अग्नि की सरलतम तांत्रिक साधना प्रस्तुत करने का प्रयत्न कर रहे हैं
जिससे सामान्यजन लाभान्वित हो सकें |
अग्नि
सिद्धि १०८ दिन में होती है |अधिक समय भी लग सकता है |इसका फल अवर्णनीय है |इससे
तेज, पराक्रम, कांटी, आभा, दृष्टिबल, की बहुत
वृद्धि होती है |चेतना की सबलता तो प्रथम दिन ही अनुभूति में आने लगती है |इसकी
सिद्धि के पश्चात अद्भुत सम्मोहन शक्ति और भविष्य दर्शन की शक्ति प्राप्त होती है
|दृष्टि में ऐसी तीब्रता आ जाती है की लोग दृष्टि मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाते |सभी
प्रकार की अशुभता का शमन हो जाता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ जाता है |
सामग्री---धुप,दीप,घृत ,गुग्गुल, दही ,रक्त चन्दन ,शुभ वृक्षों की लकड़ियाँ [आम, अनार, बेल, चिडचिडा, आक, शमी आदि ],दूब, तिल, जौ, अरवा चावल, जल
[ताम्बे के पात्र में ]अग्निवर्ण का ऊनि आसन ,अग्नि वर्ण का वस्त्र ,फूल आदि |
विधि
--संध्या से पूर्व ही ९ हाथ लम्बा ९ हाथ चौड़ा जमीन को साफ़ करके उसे गोबर-मिटटी के मिश्रण से लीप पोतकर साफ़ कर लें |इसके
चारो और सिन्दूर -कपूर और लौंग के मिश्रण को मिलाकर एक सुरक्षात्मक घेरा बना लें
|इस जमीन के आग्नेय कोण में सवा हाथ भुजा वाली [वर्गाकार ]वेदी कोण पर पूर्व की और
इस प्रकार बनाएं की उसके पश्चिम आसन बिछाने एवं पूजा सामग्री रखने के पश्चात भी सब
कुछ ९ वर्ग हाथ मर निपट जाए |अर्थात यह सब कुछ आग्नेय कोण के ३ हाथ चौड़े और तीन
हाथ लम्बे भाग में ही होना चाहिए |वेदी भूमि पर ही बनेगी |अब भूमि के चारो और
सुरक्षा घेरे पर जौ के आटे या चावल ,सिन्दूर ,तुलसी ,जल को मंत्र पढ़ते हुए छिडके |
अब
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त [३ बजे ] में सभी प्रकार से स्वच्छ होकर वेदी के समीप आसन
बिछाकर सभी सामग्री रखें और पूर्व की और मुह करके सुखासन में बैठे |अब गौ के कंडे
में चिंगारी से अग्नि सुलगाएं |इस समय अनवरत मंत्र पढ़ते रहें |जब अग्नि सुलग जाए
तो उसे ध्यान लगाकर प्रणाम करें और थोड़ी लकड़ी डालकर त्राटक में ध्यान लगाकर अग्नि
शिखा पर ध्यान केन्द्रित करें और मंत्र जाप करते हुए हवन सामग्री थोडा-थोडा हवन कुंड [वेदी] में डालते जाएँ |यह क्रिया १०८ बार होनी चाहिए |फिर अग्नि देव को प्रणाम
करके बची हुई हवन सामग्री को वेदी में डाल दें |इस क्रिया के मध्य आवश्यकतानुसार
लकड़ी डालते रहें |यह साधना १०८ दिन में सिद्ध होती है |
हवन
सामग्री में औषधियां ,चिडचिडी, बेल, आक, शमी, आम ,अनार आदि की
लकड़ियाँ भी डाली जाती हैं |वे उपलब्ध हों तो ठीक है |न उपलब्ध हों तो एक ही लकड़ी
से विधि करें |ध्यान को अग्नि की लपटों के तेज पर केन्द्रित करके एकाग्र रखें
|इसकी सिद्धि में यही मुख्य तत्व है |ध्यान केंद्र सदैव त्राटक ही रखें |
मंत्र --मंत्र
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