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भगवान गणपति का ६ अक्षरों का वक्रतुंड मंत्र साधकों को अभीष्ट प्रदान करता
है |प्रातः कालीन कृत्या करने के पश्चात चन्द्रमा व् तारों के बल से परिपूर्ण शुभ
मुहूर्त में एकांत में जप स्थल का निर्धारण करें ,और गणपति पूजन से नंदी श्राद्ध
तक के कर्म करें |तदन्तर कूर्म्शोधित स्वआसन पर पूर्वमुखी या उत्तर मुखी होकर
बैठें |मूल मंत्र से आचमन व् प्राणायाम करें |फिर सर्वोपयोगी पद्धति के अनुसार भूत
शुद्धि ,प्राण प्रतिष्ठा ,अंतर्मात्रिका ,बहिर्मात्रिका न्यास करके गणेश का
कलाम्रित न्यास करें |इसके बाद इस मंत्र से सम्बंधित न्यास करें |
६ अक्षरों वाला यह गणपति मन्त्र साधकों को सिद्धि प्रदान करता है॥
षडक्षर मन्त्र स्वरुप इस प्रकार है – ‘वक्रतुण्डाय हुम्’ ॥
विनियोग
------------ – अस्य श्रीगणेशमन्त्रस्य भार्गव ऋषि -रनुष्टुंप् छन्दः विघ्नेशो देवता वं बीजं यं शक्तिरात्मनोऽभीष्टसिद्धर्थेजपे विनियोगः
षडङ्ग्न्यास
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उपर्युक्त
षडक्षर मन्त्रों के ऊपर अनुस्वार लगा कर प्रथम प्रणव तथा अन्त में नमः पद लगा कर षडङ्गन्यास करना चाहिए
कराङ्गन्यास एवं षडङ्गन्यास की विधि -
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ॐ वं नमः अङ्गुष्ठाभ्यां नमः,ॐ क्रं नमः तर्जनीभ्यां नमः,
ॐ तुं नमः मध्यमाभ्यां नमः,ॐ डां नमः अनामिकाभ्यां नमः,
ॐ यं नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः,ॐ हुँ नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः,
इसी प्रकार उपर्युक्त विधि से हृदय, शिर, शिखा, कवच, नेत्रत्रय एवं ‘अस्त्राय फट्से षडङ्गन्यास करना चाहिए
सर्वाङ्गन्यास
----------------– भ्रूमध्य, कण्ठ, हृदय, नाभि, लिङ्ग एवं पैरों में भी क्रमशः इन्हीं मन्त्राक्षरों का न्यास कर संपूर्णमन्त्र का पूरे शरीर में न्यास करना चाहिए, तदनन्तर गणेश प्रभु का ध्यानकरना चाहिए
वर्ण न्यास
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ॐ वं नमः भ्रूमध्ये, ॐ क्रं नमः कण्ठे, ॐ तुं नमः हृदये, ॐ डां नम्ह नाभौ,
ॐ यं नमः लिङ्गे, ॐ हुम् नमः पादयोः, ॐ वक्रतुण्डाय हुम् सर्वाङ्गे ॥५॥
गणेश का ध्यान
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जिनकाअङ्ग प्रत्यङ्ग उदीयमान सूर्य के समान रक्त वर्ण का है, जो अपने बायेंहाथों में पाश एवं अभयमुद्रा तथा दाहिने हाथों में वरदमुद्रा एवं अंकुशधारण किये हुये हैं, समस्त दुःखों को दूर करने वाले, रक्तवस्त्र धारी, प्रसन्न मुख तथा समस्त भूषणॊं से भूषित होने के कारण मनोहर प्रतीत वालगजानन गणेश का ध्यान करना चाहिए ॥
पुरश्चरण विधि
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पुरश्चरणकार्य में इस मन्त्र का ६ लाख जप करना चाहिए । इस (छःलाख) की दशांश संख्या (साठ हजार) से अष्टद्रव्यों का होम करना चाहिए । तदनन्तर मन्त्र के फलप्राप्ति के लिए संस्कार-शुद्ध ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये ॥७॥
१. ईख, २. सत्तू, ३. केला, ४. चपेटान्न (चिउडा), ५. तिल, ६. मोदक, ७. नारिकेल और, ८ . धान का लावा – ये अष्टद्रव्य कहे गये हैं ॥
पीठपूजाविधान
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आधारशक्ति
से
आरम्भ कर परतत्त्व पर्यन्त पीठ की पूजा करनी चाहिए । उस पर आठ दिशाओं में एवं मध्य में शक्तियों की पूजा करनी चाहिए ॥
१.तीव्रा, २. चालिनी, ३. नन्दा, ४. भोगदा, ५. कामरुपिणी,
६. उग्रा, ७.तेजोवती, ८. सत्या एवं ९. विघ्ननाशिनी – ये गणेश मन्त्र की नव शक्तियों केनाम हैं ॥
प्रारम्भ में गणपति का बीज (गं) लगा कर ‘सर्वशक्तिकम’ तदनन्तर ‘लासनाय’ और अन्त में हृत् (नमः) लगाने से पीठमन्त्र बनता है । इस मन्त्र से आसन देकर मूलमन्त्र से गणेशमूर्ति की कल्पनाकरनी चाहिए ॥
मन्त्र का स्वरुप इस प्रकार है – ‘गं सर्वशक्तिकमलासनाय नमः’ ॥
उस मूर्ति में गणेश जी का आवाहन कर आसनादि प्रदान कर पुष्पादि से उनका पूजन कर आवरण देवताओं की पूजा करनी चाहिए ॥
गणेशका पञ्चावरण पूजा विधान –
------------------------------------------ प्रथमावरण की पूजा में विद्वान् साधक आग्नेयकोणों (आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, ईशान) में ‘गां हृदयाय नमः’ गीं शिरसेस्वाहा’, ‘गूं शिखायै वषट्’, ‘गैं कवचाय हुम्’ तदनन्तर मध्य में ‘गौंनेत्रत्रयाय वौषट्तथा चारों दिशाओं में ‘अस्त्राय फट् ’ इन मन्त्रों से षडङ्ग पूजा करे ॥
द्वितीयावरण में पूर्व आदि दिशाओं में आठशक्तियों का पूजन करना चाहिए । विद्या, विधात्री, भोगदा, विघ्नघातिनी, निधिप्रदीपा, पापघ्नी, पुण्या एवं शशिप्रभा – ये गणपति की आठ शक्तियाँ हैं॥
तृतीयावरण में अष्टदल के अग्रभाग में वक्रतुण्ड, एकदंष्ट्र, महोदर, गजास्य, लम्बोदर, विकट, विघ्नराज एवं धूम्रवर्ण का पूजन करना चाहिए। फिर चतुर्थावर में अष्टदल के अग्रभाग में इन्द्रादि देव तथा पञ्चावरणमें उनके वज्र आदि आयुधों का पूजन करना चाहिए । इस प्रकार पाँच आवरणों केसाथ गणेश जी का पूजन चाहिए । मन्त्र सिद्धि के लिए पुरश्चरण के पूर्वपूर्वोक्त पञ्चावरण की पूजा आवश्यक है ॥
प्रयोग विधि – पीठपूजा करने के बाद उस पर निम्नलिखित मन्त्रों से गणेशमन्त्र की नौ शक्तियों का पूजन करना चाहिए ।
पूर्व आदि आठ दिशाओं में यथा -
ॐ तीव्रायै नमः,ॐ चालिन्यै नमः,ॐ नन्दायै नमः,
ॐ भोगदायै नमः,ॐ कामरुपिण्यै नमः,ॐ उग्रायै नमः,
ॐ तेजोवत्यै नमः, ॐ सत्यायै नमः,
इसप्रकार आठ दिशाओं में पूजन कर मध्य में ‘विघ्ननाशिन्यै नमः’ फिर ‘ॐसर्वशक्तिकमलासनाय नमः’ मन्त्र से आसन देकर मूल मन्त्र से गणेशजी की मूर्तिकी कल्पना कर तथा उसमें गणेशजी का आवाहन कर पाद्य एवं अर्ध्य आदि समस्यउपचारों से उनका पूजन कर आवरण पूजा करनी चाहिए ।
ॐ गां हृदाय नमः आग्नेये,ॐ गीं शिरसे स्वाहा नैऋत्ये,
ॐ गूं शिखायै वषट् वायव्ये,ॐ गैं कवचाय हुम् ऐशान्ये,
ॐ गौं नेत्रत्रयाय वौषट् अग्रे,ॐॐ गः अस्त्राय फट् चतुर्दिक्षु ।
इनमन्त्रों से षडङ्पूजा कर पुष्पाञ्जलि लेकर मूल मन्त्र का उच्चारण कर ‘अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सले । भक्तयो समर्पये तुभ्यंप्रथमावरणार्चनम् ’ कह कर पुष्पाञ्जलि समर्पित करे । फिर -
ॐ विद्यायै नम्ह पूर्वे,ॐ विधात्र्यै नमः आग्नेये,
ॐ भोगदायै नमः दक्षिणे,ॐ विघ्नघातिन्यै नमः नैऋत्यै,
ॐ निधि प्रदीपायै नमः पश्चिमे,ॐ पापघ्न्यै नमः वायव्ये,
ॐ पुण्यायै नमः सौम्ये,ॐ शशिप्रभायै नमः ऐशान्ये
इनशक्तियों का पूर्वादि आठ दिशाओं में क्रमेण पूजन करना चाहिए । फिरपूर्वोक्त मूल मन्त्र के साथ ‘अभीष्टसिद्धिं मे देहि… सेद्वितीयावरणार्चनम्
’ पर्यन्त मन्त्र बोल कर पुष्पाञ्जलि समर्पित करनीचाहिए । तदनन्तर अष्टदल कमल में -
ॐ वक्रतुण्डाय नमः,ॐ एकदंष्ट्राय नमः,ॐ महोदरय नमः,
ॐ गजास्याय नमः,ॐ लम्बोदराय नमः,ॐ विकटाय नमः,
ॐ विघ्नराजाय नमः, ॐ धूम्रवर्णाय नमः
इनमन्त्रों से वक्रतुण्ड आदि का पूजन कर मूलमन्त्र के साथ ‘अभिष्टसिद्धिं मेदेहि … से तृतीयावरणार्चनम् ’ पर्यन्त मन्त्र पढ कर तृतीय पुष्पाञ्जलिसमर्पित करनी चाहिए ।
तत्पश्चात् अष्टदल के अग्रभाग में - ॐ इन्द्राय नमः पूर्वे,
ॐ अग्नये नमः आग्नये,ॐ यमाय नमः दक्षिने,ॐ निऋतये नमः नैऋत्ये,
ॐ वरुणाय नमः पश्चिमे,ॐ वायवे नमः वायव्य,ॐ सोमाय नमः उत्तरे,
ॐ ईशानाय नमः ऐशान्ये,ॐ ब्रह्मणे नमः आकाशे,ॐ अनन्ताय नमः पाताले
इनमन्त्रों से दश दिक्पालोम की पूजा कर मूल मन्त्र पढते हुए ‘अभिष्टसिद्धिं…से चतुर्थावरणार्चनम् ’ पर्यन्त मन्त्र पढ करचतुर्थपुष्पाञ्जलि समर्पित करे ।
तदनन्तर अष्टदल के अग्रभाग के अन्त में
ॐ वज्राय नमः,ॐ शक्तये नमः,ॐ दण्डाय नमः,
ॐ खड्गाय नमः,ॐ पाशाय नमः,ॐ अंकुशाय नमः,
ॐ गदायै नमः,ॐ त्रिशूलाय नमः, ॐ चक्राय नमः,ॐ पद्माय नमः
इनमन्त्रों से दशदिक्पालों के वज्रादि आयुधों की पूजा कर मूलमन्त्र के साथ‘ अभीष्टसिद्धिं… से ले कर पञ्चमावरणार्चनम् ’ पर्यन्त मन्त्र पढ कर पञ्चमपुष्पाञ्जलि समर्पित करनी चाहिए ।
इसके पश्चात् विधिके अनुसार ६ लाख जप, दशांश हवन, दशांश अभिषेक, दशांश ब्राह्मण भोजन करानेसे पुरश्चरण पूर्ण होता है और मन्त्र की सिद्धि हो जाती है ॥
काम्य प्रयोग–
---------------- यदि साधक ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करते हुये प्रतिदिन १२ हजार मन्त्रों का जप करे तो ६ महीनेके भीतर निश्चितरुप से उसकी दरिद्रता विनष्ट हो सकती है । एक चतुर्थी सेदूसरी चतुर्थी तक प्रतिदिन दश हजार जप करे और एकाग्रचित्त हो प्रतिदिन एकसौ आठ आहुति देता रहे तो भक्तिपूर्वक ऐसा करते रहने से ६ मास के भीतरपूर्वोक्त फल (दरिद्रता का विनाश) प्राप्त हो
जाता है ॥
घृतमिश्रित अन्न की आहुतियाँ देने से मनुष्य धन धान्य से समृद्ध हो जाता है ।चिउडा अथवा नारिकेल अथवा मरिच से प्रतिदिन एक हजार आहुति देन ए से एक महिनेके भीतर बहुत बडी समत्ति होती है । जीरा, सेंधा नमक एवं काली मिर्च सेमिश्रित अष्टद्रव्यों से प्रतिदिन एक हजार आहुति देने से व्यक्ति एक हीपक्ष (१५ दिनों) में कुबेर के समान धनवान् है । इतना ही नहीं प्रतिदिनमूलमन्त्र से ४४४ बार तर्पण करने से मनुष्यों को मनो वाञ्छित फल कीप्राप्ति हो जाती है ॥........................................................हर-हर महादेवविशेष - ज्योतिषीय परामर्श ,कुंडली विश्लेषण , किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव ,सामाजिक -आर्थिक -पारिवारिक समस्या आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच .
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