Friday 4 August 2017

व्यापार /व्यवसाय में उन्नति क्यों नहीं हो रही ?

क्यों नहीं उन्नति कर पा रहे आप
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आज का समय बेहद संघर्षमय हो चूका है |व्यक्ति को जीने के लिए अनेक तरह के संघर्ष करने पड़ते हैं |बहुत कम लोग होते हैं जिन्हें आसान जीवन और सुख सुविधाएं मिल पाती हैं |शुरूआती जीवन माता -पिता पर आश्रित होता है और हर माता -पिता अपनी तरफ से पूरा प्रयास अपने बच्चे को सुखी रखने की करता है ,चाहता है की बेहतर -से बेहतर सुविधा अपनी परिस्थिति के अनुसार दे सके ताकि उसका बच्चा योग्य बन सके ,अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके और जीवन में उन्नति कर सके |जब जीवन संघर्ष खुद व्यक्ति का शुरू होता है तब उसे वास्तविकता समझ आती है |यहाँ जीवित रहना और एक स्तर बनाये रखना जब इतना मुश्किल है तो उन्नति कर पाना कितना कठिन होगा |कुछ लोग प्रबल भाग्य के सहारे उन्नति कर जाते हैं ,पर अधिकतर बड़े -बड़े सपने और कल्पनाएँ पाले जब जीवन संघर्ष में उतारते हैं तो एक सामान्य जीवन जीते हुए सपने गवां बैठते हैं |सारी कल्पनाएँ यथार्थ के धरातल पर धरी रह जाती हैं |
जब हम इसके कारणों का विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं की हर व्यक्ति अपने वर्त्तमान जीवन से बेहतर जीवन पा सकता था ,जी सकता और उन्नति कर सकता था ,पर उसे कुछ पीछे खीचने वाले कारकों का पता नहीं था या उसने इस पर ध्यान नहीं दिया या उसे इन सब कारकों पर विश्वास नहीं था |वह शरीर की ताकत ,जवानी के उमंग और जोश में मस्त था ,खुद की बुद्धि को श्रेष्ठ मानते हुए अन्य सभी को झुठलाता रहा |कुछ कर्म को मुख्य मानते रहे और अन्य सभी को नहीं माना तो कुछ अति भाग्यवादी बनकर कर्म को महत्त्व नहीं दिया |कुछ ने खुद पर भरोसा नहीं किया और दुसरे की सलाह से चलते रहे तो कुछ किसी की बात ही नहीं माने |कुछ अति शिक्षित और आधुनिक -वैज्ञानिक सोच वाले खुद को मानकर हर पीछे ले जाने वाले कारकों को अंधविश्वास और भ्रम मानकर चलते रहे तो कुछ के पास इतनी समझ ही नहीं थी की वह यह सब समझ पाते |
यह सत्य है की कर्म ही मुख्य है पर भाग्य की भूमिका भी अति महत्वपूर्ण होती है |एक व्यक्ति दिन भर फावड़ा चलाकर २०० रुपये कमाता है ,जबकि एक फेरी लगाकर १००० कमाता है |मेहनत दोनों की सामान है पर लाभ अलग है |भाग्य और कर्म दोनों में उचित संतुलन आवश्यक होता है |इसके साथ कुछ बहुत महत्वपूर्ण कारक होते हैं जो सभी की सफलता और असफलता के कारण बनते हैं |इनके कारण ही व्यक्ति असफल अथवा सफल होता है |हर व्यक्ति में एक अलग विशेष गुण होता है और हर व्यक्ति को दुसरे गुण के व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है |व्यक्ति अपने विशेष गुण को विकसित करले तो दूसरा उसके गुण से लाभान्वित होगा और पहला दुसरे के गुण से |इस तरह दोनों उन्नति कर पायेंगे |पर होता यह है की भेड़ों की झुण्ड की तरह जिधर एक चला दुसरे भी चल दिए |अपनी क्षमता -योग्यता देखी नहीं वहां चल दिए जो उनके लिए था ही नहीं |असफल तो होना ही था |
व्यक्ति के उन्नति न कर पाने के पीछे ,असफल होने के पीछे ,एक सामान्य जीवन जीते रह जाने के पीछे कुछ बेहद महत्वपूर्ण कारक होते हैं |इनमे पहला उनका पारिवारिक परिवेश ,स्थिति और आसपास का माहौल होती है ,जो उनकी मानसिकता बनाती है |इनसे व्यक्ति की सोच निर्धारित होती है ,उनके सोचने और समझने का ढंग प्रभावित होता है |उनके अवचेतन और मनः स्थिति की स्थिति बनती है |यहाँ का माहौल व्यक्ति को कुंठित अथवा हीन भावना ग्रस्त अथवा भयालू बना सकता है या साहसी ,बोल्ड और रिस्क लेने वाला बना सकता है |यहाँ के सुझाव और जीवन भर के सलाह ,दांत फटकार ,आदि व्यक्ति को जीवन भर प्रभावित करते हैं |इस स्थिति को विश्लेषित करके व्यक्ति को अगर यहाँ के दुष्प्रभावों से मुक्त कर दिया जाए तो वह सामान्य की अपेक्षा अधिक उन्नति कर सकता है |यहाँ शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं ,कैसी भी शिक्षा हो अथवा न हो व्यक्ति के अंतर्मन और अवचेतन को सुधारते ही वह उन्नति और सफलता की और अग्रसर हो जाता है |
उन्नति रोकने और सामान्य जीवन को मजबूर रखने अथवा असफल करने के दुसरे कारण पित्र दोष ,कुलदेवता /देवी के दोष ,ग्रह स्थितियां ,सम्मिलित परिवार का भाग्य ,वास्तु दोष ,स्थान दोष ,बाहर से आई कोई बाधा ,किसी के द्वारा भेजी गयी कोई बाधा ,किसी अन्य द्वारा किया गया कोई अभिचार या तंत्र कर्म या बंधन ,किसी वायवीय प्रभाव का बदला लेने का प्रयास आदि हो सकते हैं |यद्यपि खुद को आधुनिक और वैज्ञानिक सोच का मानने वाले तथाकथित शिक्षित लोग इन तथ्यों को नहीं मानेंगे भले पाश्चात्य देशों के वह लोग इन्हें माने जिनका यह अनुसरण करते हैं ,पर यह सब होता है |इनके प्रभाव से व्यक्ति कितना भी प्रयास करे उन्नति नहीं कर पाता |
पित्र दोष होने का मतलब कितना भी कमाइए पूरा नहीं पड़ेगा ,देखने में सामने चार खाने वाले होंगे पर खर्च ६ -८ व्यक्ति का होगा घर में ,बचत नहीं हो पाएगी और अनावश्यक खर्च होंगे |कुलदेवता /देवी दोष होने पर घर -परिवार किसी भी बाधा से असुरक्षित रहेगा ,कोई भी बाधा आएगी और हानि पंहुचा चली जायेगी या टिक जायेगी |वास्तु दोष -स्थान दोष से निर्णय प्रभावित होंगे ,शारीरिक -मानसिक कष्ट होंगे |लगातार किसी भी प्रयास में बाधा आएगी |अस्त व्यस्तता रहेगी |कोई बाहर से आई बाधा होगी तो हर तरह से परेशान करेगी |दिखेगा कुछ नहीं ,समझ कुछ नहीं आएगा पर काम सब बिगड़ते जायेंगे |
दिक्कत अधिक तब होती है जब कोई किसी समस्या को आपको दे देता है या भेज देता है |यह एक आम समस्या है जिसे अक्सर लोग नहीं समझते और नहीं मानते |इसे उतारा कहते हैं |अक्सर अपना दुर्भाग्य ,अपना कष्ट ,अपनी समस्या लोग उतारकर किसी दुसरे को दे देते हैं या कभी कभी आते जाते असावधानी वश उनका लाँघन हो जाने पर यह लग जाते हैं |इसमें गंभीर बीमारी ,रोग ,वायवीय बाधा ,संतान बंधन ,कोख बंधन जिससे बच्चा न हो ,कोई लगी हुई बाधा आदि भी हो सकता है |इनका प्रभाव होने पर विज्ञान फेल हो जाता है |डाक्टर का इलाज कुछ दिन काम करता है फिर समस्या उत्पन्न हो जाती है |सबकुछ सामान्य होने पर भी समस्या बनी ही रहती है |
इसी तरह की एक और समस्या होती है किसी विरोधी अथवा किसी अपने द्वारा ही ईर्ष्या में किया गया अभिचार या तंत्र कर्म |सामने आकर नुक्सान करने की जिसकी क्षमता नहीं होती या जो डरता है पर नुक्सान चाहता है ,उन्नति रोकना चाहता है ,वह इस तरह की क्रियाओं का सहारा तांत्रिक की मदद से लेता है |जरुरी नहीं की तांत्रिक को सबकुछ सही बताये ही गलत बता कर भी उससे क्रिया करबा लेता है ,या उससे पूछकर खुद कर सकता है |आजकल इन्टरनेट पर खुले आम टोटके दिए जा रहे ,ये फायदा भले कम करें पर नुक्सान पूरा करते हैं |इनका अपना विज्ञान होता है |आजकल लोग इसे पढकर चुपचाप करने लगे हैं |अक्सर इस तरह के केस हमारे सामने आते रहते रहते जिनमे व्यक्ति पर अभिचार हुआ होता है और करने वाले अधिकतर परिचित ही होते हैं |इसी समस्या में एक वायव्य आत्मा की बदला की कोशिस भी होती है |कोई आत्मा रुष्ट हो गयी किसी कारण अथवा आपको पता ही नहीं कोई किसी कारण मर गया और प्रेत हो गया तो वह बदला का भी प्रयास करता है |कुलदेवता रुष्ट हुए अथवा कमजोर हुए तो यह पूरा नुक्सान करता है |कभी कभी कोई इस तरह की आत्मा भेजकर भी नुक्सान करवाता है |
आप मानो या न मानो पर यह कुछ कारण हर व्यक्ति को कमोवेश प्रभावित करते हैं |भाग्य बहुत प्रबल है ,पूर्वजों ने अच्छे कर्म किये हैं ,कुलदेवता अथवा ईष्ट मजबूत हैं तो उन्नति हो जाती है अन्यथा एक सामान्य जीवन की मजबूरी होती है योग्यता और क्षमता कुछ भी हो |कम योग्यता और क्षमता वाला ऊपर चला जाता है ,अधिक वाला नीचे रह जाता |जवानी में समझ नहीं आता ,समय निकलने पर केवल पछताना और कारण खोजना रह जाता है |अधिकतर बाद में भी कोई प्रयास नहीं करते और सोचते हैं की हमारा समय तो ख़तम हो गया जो करना था कर लिया अब बच्चे अपना देखेंगे |इस तरह वे बच्चों की भी उन्नति रोकने की पहले से ही व्यवस्था कर देते हैं |जब समस्या रहेगी तो बच्चे भी कहाँ से उन्नति कर पायेंगे |जिसका बहुत तेज भाग्य होगा वह बढ़ जाएगा बाकी लटकते रह जायेंगे |

उपरोक्त कारक समस्याएं होने पर उन्नति तो रूकती ही है ,असफलता तो आती ही है और भी गंभीर समस्याएं खड़ी होती हैं |जैसे किसी का हमेशा रोगग्रस्त रहना |महिलाओं का स्वस्थ्य अच्छा न रहना ,बच्चों का स्वभाव और व्यवहार बिगड़ना ,बच्चों में दुर्व्यसन ,संस्कारहीनता ,बुरी संगत ,पारिवारिक मर्यादा के खिलाफ विवाहादि ,पिता -पुत्र में अनबन ,घर में कलह ,तनाव ,विवाद ,मनमुटाव |मांगलिक कार्यों यथा विवाह आदि में बाधा ,संतान न होना अथवा कन्या संतति की अधिकता या वंश हेतु पुत्र न होना |घर में अथवा कार्य स्थल पर जाते ही सर का भारी हो जाना ,कहीं भी मन न लगाना ,बेचैनी ,घबराहट ,हमेशा बुरा होने का अंदेशा |अचानत हानि होना |आग लग जाना |पूजा -पाठ में मन न लगना |ईश्वर के प्रति अश्रद्धा |भाग्य में लिखा होने पर भी न मिलना या कम मिलना जबकि कष्ट अधिक मिलना |कितने भी प्रयासों पर भी उन्नति न होना |नौकरी में अस्थिरता या बार बार छूटना |अपयश ,असम्मान ,दोषारोपण मिलना |व्यावसायिक उतार चढ़ाव अथवा लगातार हानि |कर्ज की स्थिति |लोगों द्वारा पैसे लेकर न देना आदि आदि बहुत कुछ हो सकता है |इसलिए इन पर समय रहते ध्यान देना चाहिए |आज अगर थोडा ध्यान दे दिया जाए तो कल उत्पन्न होने वाली अनेक भारी समस्याओं से राहत रहेगी |अगर ऐसा कुछ आज है तो उन्हें हटाकर या रोक कर भाग्यानुसार पूरा उन्नति किया जा सकता है |..........................................................हर -हर महादेव 

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