Sunday 13 August 2017

भूतों -प्रेतों से बचाव और सावधानियां

भूत-प्रेतों से बचाव हेतु सावधानियां
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 इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है |यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया में प्रकृति के निर्धारित नियम से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। सृष्टि के चक्र से हटकर मृत्यु होने पर आत्मा भटकाव की स्थिति में जाती है। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम भूत के रूप में या फिर प्रेत के रूप में करते हैं। यही आत्मा जब सृष्टि के चक्र में फिर से प्रवेश करती है तो उसके भूत होने का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन काल में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती है,अथवा प्रभावित करती हैं या इन्हें किसी प्रकार छेड़ने वाले को प्रभावित करती हैं | इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। कभी कभी ही आत्माएं स्वयं किसी के पीछे पड़ती हैं जबकि वह बहुत अतृप्त स्थिति में हों |
जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वैसे वैसे जल में डूबकर ,बिजली द्वारा ,अग्नि में जलकर ,लड़ाई झगड़े में ,प्राकृतिक आपदा से ,वाहन आदि से ,शस्त्र आदि से मृत्यु दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और मानव रुपी भूत प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है।संसार का प्रत्येक जीव एक निश्चित समय तक भूत योनी में रहता जरुर है फिर चाहे वह पूर्ण आयु पूर्ण करने के बाद ही क्यों न मरा हो |विरले होती हैं वह आत्माएं जो शरीर त्याग के तुरंत बाद जन्म लेने में सक्षम होती हैं |ऐसा केवल तभी होता है जब किसी आत्मा में अपने कर्म बंधन को नियमित और नियंत्रित करने की क्षमता आ जाय और वह इनके भुगतान के लिए कोई गर्भ चुनने की शक्ति प्राप्त कर ले |तभी वह तुरंत जन्म लेता है अन्यथा सभी जीव एक निश्चित समय तक भूत योनी में रहते हैं |जिनकी अकाल मृत्यु होती है वह सदियों तक भूत -प्रेत योनी में रहने को बाध्य होते हैं क्योंकि उनके सूक्ष्म शरीर का क्षरण बहुत धीमी गति से सैकड़ों वर्षों में हो सकता है |इसे समझने के लिए हमारा पहले का पोस्ट देखें "" कैसे बनते हैं भूत -प्रेत "" |
भूत प्रेत ,चूंकि अधिकतर जो प्रभावित करते हैं वह अकाल मृत्यु में ही मरे होते हैं ,अतः इनकी वासनाएं और इच्छाएं अधूरी होती हैं ,चूंकि इनके पास शरीर नहीं होता अतः यह अपनी अधूरी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए किन्ही मनुष्य को माध्यम बनाते हैं ,जिससे उसे कष्ट हो सकता है |यद्यपि इनमे भिन्न भिन्न और अलग अलग योनियाँ होती हैं ,और उनसे मुक्ति के लिए तदनुसार विशिष्ट उपाय ही किये जाते हैं, फिर भी कुछ सामान्य बचाव के उपाय करने से इनके प्रकोप से बचाव संभव है |
जिस प्रकार चोट लगने पर डाक्टर के आने से पहले प्राथमिक उपचार की तरह ही प्रेत बाधा ग्रस्त व्यक्ति का मनोबल बढ़ाने का उपाय किया जाता है और कुछ सावधानियां वरती जाती हैं। ऐसा करने से प्रेत बाधा की उग्रता कम हो जाती है। जब भी किसी भूत-प्रेतबाधा से ग्रस्त व्यक्ति को देखें तो सर्वप्रथम उसके मनोबल को ऊंचा उठायें। उदाहरणार्थ यदि वह व्यक्ति मन में कल्पना परक दृश्यों को देखता है तथा जोर-जोर से चिल्लोता है कि वह सामने खड़ी या खड़ा है, वह लाल आंखों से मुझे घूर रही या रहा है, वह मुझे खा जाएगा या जाएगी। हालांकि वह व्यक्ति सच कह रहा है पर आप उसे समझाइए- वह कुछ नहीं है, वह केवल तुम्हारा वहम है। लो, हम उसे भगा देते हैं। उसे भगाने की क्रिया करें।
कोई चाकू, छूरी या कैंची उसके समीप रख दे और उसे बताएं नहीं। देवताओं के चित्र हनुमान दुर्गा या काली का टांग दें। गंगाजल छिड़ककर लोहबान, अगरबत्ती या गूग्गल धूप जला दें। इससे उसका मनोबल ऊंचा होगा। प्रेतात्मा को बुरा भला कदापि कहें। इससे उसका क्रोध और बढ़ जाएगा।भूत -प्रेत से पीड़ित की किसी गलती के लिए क्षमा मांगें ,इसमें कोई बुराई नहीं। घर के बड़े-बुजुर्ग भूत-प्रेत से अनजाने अपराध के लिए क्षमा मांग लें। यह मृदु बातों तथा सुस्वादुयुक्त भोगों के हवन से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं।
जल में भूत-प्रेतों का निवास होता है। इसलिए किसी भी स्त्री-पुरुष को नदी-तालाब में, चाहे वह कितने ही निर्जन स्थान में क्यों हों, निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए क्योंकि भूत-प्रेत गंदगी से रुष्ट होकर मनुष्यों को नुकसान पहुंचाते हैं। कुएं में भी किसी प्रकार की गंदगी नहीं डालनी चाहिए क्योंकि कुंए में भी विशेष प्रकार के जिन्न रहते हैं जो कि रुष्ट होने पर व्यक्ति को बहुत कष्ट देते हैं।
श्मशान या कब्रिस्तान में भी कभी कुछ नहीं खाना चाहिए और ही वहां पर कोई मिठाई, सफेद व्यंजन, शक्कर या बूरा लेकर जाना चाहिए क्योंकि इनसे भी भूत-प्रेत बहुत जल्दी आकर्षित होते हैं। ऐसे स्थानों में रात में कोई तीव्र खुशबू लेकर भी नहीं जाना चाहिए तथा मलमूल त्याग भी नहीं करना चाहिए। किसी भी अनजान व्यक्ति से विशेष रूप से दी गई इलायची, सेब, केला, लौंग आदि नहीं खानी चाहिए, क्योंकि यह भूत-प्रेत से प्रभावित करने के विशेष साधन माने गए हैं।
सामान्यत: ऐसी मान्यता है कि रात के समय किसी लड़की को अकेले घर से बाहर नहीं भेजना चाहिए। पुराने समय में इस बात का सख्ती से पालन कराया जाता था। साथ ही अमावस की रात को तो खासतौर पर लड़की को अकेले घर से बाहर निकलना मना किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि अमावस की रात को नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं जो कि लड़कियों को बहुत ही जल्द अपने प्रभाव में ले लेती हैं। यहां नकारात्मक शक्ति से अभिप्राय है कि आसुरी प्रवृत्तियां। अमावस की रात बुरी शक्तियां अपने पूरे बल में होती हैं। इन शक्तियों को लड़कियां पूरी तरह प्रभावित करती हैं। जिससे वे उन्हें अपने प्रभाव में लेने की कोशिश करती हैं। इन शक्तियों के प्रभाव में आने के बाद लड़कियों का मानसिक स्तर व्यवस्थित नहीं रह पाता और उनके पागल होने का खतरा बढ़ जाता है।
विज्ञान के अनुसार अमावस और हमारे शरीर का गहरा संबंध है। अमावस का संबंध चंद्रमा से है। हमारे शरीर में 70 प्रतिशत पानी है जिसे चंद्रमा सीधे-सीधे प्रभावित करता है। ज्योतिष में चंद्र को मन का देवता माना गया है। अमावस के दिन चंद्र दिखाई नहीं देते ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। लड़कियां मन से बहुत ही भावुक होती है। जब चंद्र नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर के पानी में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है अथवा भयालू स्वभाव का होता है ,उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है। इन्हीं कारणों से अमावस की रात को लड़कियों को अकेले बाहर जाने के लिए मना किया जाता था। चंद्रमा हमारे शरीर के जल को किस प्रकार प्रभावित करता है इस बात का प्रमाण है समुद्र का ज्वारभाटा। पूर्णिमा और अमावस के दिन ही समुद्र में सबसे अधिक हलचल दिखाई देती है क्योंकि चंद्रमा जल को शत-प्रतिशत प्रभावित करता है।इसी तरह पूर्णिमा में भी इन शक्तियों का प्रभाव बढ़ता है क्योकि मनुष्य की जलीय प्रवृत्ति में इस समय भी हलचल होती है और १० प्रतिशत लोग इस समय विचलित होते हैं |
भूत -प्रेतों से बचाव का बेहतर उपाय है की आप कहीं भी कभी भी डरें नहीं |भूत -प्रेत अक्सर वृक्षों को अचानक हिलाकर ,वस्तुओं को गिराकर ,भयानक आवाज उत्पन्न कर ,छाया आदि दिखाकर ,सरसराहट उत्पन्न कर ,आगे -पीछे घूमकर अनजानी उपस्थिति महसूस कराकर ,कभी अचानक शरीर छूकर जबकि कुछ दिखाई नहीं देता ,कभी सोते हुए अचानक शरीर पर बैठकर व्यक्ति को डरा देते हैं |जब व्यक्ति डरा होता है तो उसका मनोबल और शक्ति कमजोर हो जाती है जिससे उसकी आत्मा को दबाकर भूत शरीर में प्रवेश कर जाते हैं |फिर तो व्यक्ति की दबी आत्मा देखती तो सबकुछ है पर कर कुछ नहीं पाती और घुसी हुई दूसरी आत्मा सारे कार्य करती है तथा अपनी अतृप्त इच्छाएं पूर्ण करने का प्रयत्न करती है |.....................................................................हर-हर महादेव

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