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भूत-प्रेतों का निवास नीचे दिए गए कुछ वृक्षों एवं स्थानों पर माना गया है। इन वृक्षों के नीचे एवं स्थानों पर किसी प्रकार की तेज खुशबू का प्रयोग एवं गंदगी नहीं करनी चाहिए, नहीं तो भूत-प्रेत का असर हो जाने की संभावना रहती है।यद्यपि भूत प्रेत कहीं भी आ जा सकते हैं किन्तु अक्सर वहां रहना पसंद करते हैं जहाँ का वातावरण सीलन युक्त ,अन्धकार पूर्ण ,नकारात्मक उर्जा संपन्न ,बीरान ,निर्जन हो |कुछ वृक्ष ,स्थान
इन्हें विशेष प्रिय होते हैं ,अतः यहाँ विशेष सावधानी की जरुरत होती है |
पीपल वृक्ष:-
----------- शास्त्रों में इस वृक्ष पर देवताओं एवं भूत-प्रेतों, दोनों का निवास माना गया है। अतः कभी भी पीपल के पेड़ नहीं काटने चाहिए। इसी कारण हर प्रकार के कष्ट एवं दुख को दूर करने हेतु इसकी पूजा अर्चना करने का विधान है।अक्सर ब्रह्म राक्षस आदि उच्च शक्तिशाली आत्माए पीपल पर निवास करती हैं ,,पितरों को भी पीपल अति प्रिय होता है |
मौलसिरी:-
----------- इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेतों का निवास माना गया है।
कीकर वृक्ष:-
----------- इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेत रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने इस वृक्ष में रोज पानी डालकर इस वृक्ष पर रहने वाले प्रेत को प्रसन्न कर उसकी मदद से हनुमान जी के दर्शन प्राप्त कर प्रभु श्री राम से मिलने का सूत्र पाया था। यह भूत प्राणियों को लाभ पहुंचाने वाली श्रेणी का था। तन्त्र में कीकर से भूत सिद्धि के प्रयोग भी हैं |
श्मशान या कब्रिस्तान:-
--------------------- इन स्थानों पर भी भूत-प्रेत निवास करते है।श्मशान -कब्रिस्तान
भूतों प्रेतों के सबसे प्रिय स्थान होते हैं |यहाँ उनका भौतिक शरीर नष्ट होता है ,अतः
इस स्थान के आसपास वे अधिकतर विचरण करते हैं ,एक कारण और होता है ,उनके अंग जिस
स्थान पर होते हैं वहां उनका आना जाना होता है |कब्रिस्तानों में तो पूरा शरीर ही
होता है जिसकी हड्डियाँ बहुत सालों तक नष्ट नहीं होती |अगर भूत-प्रेत की मुक्ति न हो पाए तो अक्सर वह अपने शरीर अंग के पास आता है |शरीर
जलने पर भी कुछ हिस्से अक्सर बचते हैं जो इन्हें आकृष्ट करते हैं और जोड़े रखते हैं
|श्मशान कब्रिस्तान में इनको साथ और सहयोग भी मिलता है |उच्च शक्तियाँ यहाँ शासन
करती हैं |
मृत्यु स्थान
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-जहाँ व्यक्ति की आकस्मिक मृयु हुई होती
है ,अकसर वह वहां भी रहने का प्रयास करता है ,क्योकि उसे अपने स्थान से लगाव होता
है |पुराने मकानों ,घरों में आकस्मिक मरने वाले अथवा दुर्घटना के शिकार परिजन घर
के आसपास अथवा घर में रहने का प्रयत्न करते हैं |जले हुए अथवा कष्ट दायक मृत्यु को
प्राप्त लोग अक्सर उसी स्थान के इर्द गिर्द घुमते हैं |सड़कों पर दुर्घटना ग्रस्त
व्यक्तियों की आत्माएं उस स्थान के आसपास चक्रमण करती हैं ,कभी कभी ये बदला भी
लेती हैं और दुर्घटनाएं करवाकर |कभी कभी कोई कोई पूजा लेता है ,न देने वालों के
दुर्घटना भी होते हैं ,अकसर सडक किनारे ऐसे मंदिर मिलते हैं |
वीरान खँडहर -
-------------- वीरान खंडहरों में प्रेतात्माओं को शान्ति मिलती है
,अंधेरों अथवा सीलन भरी स्थानों पर इन्हें सुकून मिलता है ,अतः यह निर्जन खंडहरों
के आसपास रहते हैं |इन स्थानों के बारे में विदेशों तक में भूतों प्रेतों के
प्रमाण पाए जाते हैं |
नदी किनारा -
-------------- कुछ आत्माए शांत नदी किनारों पर भी चक्रमण करती पायी जाती
हैं |अक्सर यह शुद्ध आत्माएं होती हैं ,किन्तु इनमे किसी भी प्रकार की तामसिक
आत्मा भी हो सकती है |शुद्ध आत्माएं कोलाहल और विपरीत सथियों से बचने के लिए
,शान्ति के लिए यहाँ रहती हैं |जल में डूबने वाले अक्सर नदी में और किनारों पर ही
निवास करते हैं |
तालाब -नाले -
--------------- तालाबों में मरने वाले अथवा डूबकर मृत्यु को प्राप्त
अधिकतर आत्माएं उस स्थान के आसपास घूमती हैं |नालों अथवा खोहों के आसपास भी इनका
चक्रमण होता है |अक्सर यह यहाँ लोगों को प्रभावित करते पाए जाते हैं |
बांस की झुरमुट -
----------------- चुड़ैल आदि अधिकतर बांसों की झुरमुटों अथवा वृक्षों के
आसपास या बगीचों आदि में रहने का प्रयास करती हैं |
जंगल -आत्माए जंगलों का चुनाव शांति के उद्देश्य से करती हैं जिससे इन्हें
कोई परेशानी अथवा ध्वनि आदि न हो |
यद्यपि भूतो -प्रेतों के लिए स्थान का बंधन नहीं होता किन्तु यह अपने लिए
अनुकूल स्थानों के रूप में उपरोक्त का अधिकतर चुनाव करते हैं ,वैसे आ जा कहीं भी
सकते हैं |शक्तिशाली आत्माएं तो मंदिरों तक में प्रवेश कर जाती हैं |उच्च शक्तियाँ
जो खुद साधक अथवा पुजारी रही हों किन्तु किसी कारणवश दुर्घटनाग्रस्त हो मृत्यु को
प्राप्त हुए हों अक्सर मंदिरों -मस्जिदों में भी प्रवेश करते हैं ,पीरों ,दरगाहों
में तो इनका आना जाना आम होता है |अगर ये किसी से रुष्ट हों तो उसके साथ मंदिरों-मस्जिदों ,दरगाहों में भी प्रवेश कर
अपनी शक्ति का अहसास कराते हैं |
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