Sunday 13 August 2017

भूत -प्रेतों -आत्माओं की वास्तविकता


क्या वास्तव में भूत-प्रेत होते हैं 
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        आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है वह जीवात्मा कहलाती है। जब वासनामय शरीर में जीवात्मा का निवास होता है तब वह प्रेतात्मा कहलाती है। यह आत्मा जब अत्यन्त सूक्ष्म परमाणुओं से निर्मित सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेस  करता है, उस अवस्था को सूक्ष्मात्मा कहते हैं। वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण अथवा भाव के आधार पर मृतात्माओं को भी अच्छे और बुरे की संज्ञाएं दी गयी हैं। जहाॅ अच्छी मृतात्माओं का वास होता है उसे पितृलोक तथा बुरी आत्मा वाले को प्रेत लोक, वासना लोक आदि कहते हैं। योग तथा प्राच्य ऋषि परंपरानुसार मानव शरीर अपने पांच तत्वों से निर्मित है। तथा इनका प्रभाव ही मानव शरीर पर पड़ता है। शरीर जब मृत्यु को प्राप्त होता है, तो स्थूल शरीर यहाॅ ही पड़ा रह जाता है और अपने पूर्व संचित कर्म अथवा पाप या श्रापवश उसे अधोगति या भूतप्रेत योनि प्राप्त होती है। मृत्यु के बाद मनुष्य की अगली यात्रा वायु तत्व प्रधान अर्थात् सूक्ष्म शरीर से प्रारंभ होती है। इसमें अग्नि, जल, पृथ्वी तत्व का ठोसपन नहीं होता,  प्रेत वायवीय देहधारी होते हैं। अतः पानी, भोजन अथवा मानवोचित क्रियाएं इनमें नहीं होतीं। वायवीय प्रधान होने से इनमें आकार या कर्मेन्द्रियों की प्रखरता नहीं रहती। जबकि उनके दो तत्व प्रमुख रुप से होने पर उनका रुप भी उनके अनुरुप बन जाता है। प्रेतात्मा में कुछ ऋषियों ने आकाश तत्व को नहीं माना है। क्योंकि जहाॅ आकाश तत्व है वहाॅ शब्द अवश्य है। इसलिए प्रेत योनि बोलने में असमर्थ है। वह केवल संवेदनशील है। ठोसपन होने के कारण ही प्रेत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। प्रेत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वह केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं।
वैदिक साहित्य, पुराण-आगम, श्रीमद भागवत गीता, महाभारत, मानस साहित्य आदि में असंख्य ऐसे प्रसंग आते हैं कि इस योनि के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। गीता में धंुधुकारी प्रेत’ की कथा    सर्वविदित है। ऋगवेद की गाथाओं में अनेक स्थानों पर प्रेत-पिशाचों का उल्लेख मिलता है। एक स्थान पर ऋषि कहते हैं – ‘हे शमशान घाट के पिशाचादि, यहाॅ से हटो और दूर हो जाओ।’ भीष्म द्वारा युधिष्ठर को श्राद्ध विधि समझाने के प्रकरण में देव पूजन से पूर्व गन्धर्व, दानव, राक्षस, प्रेत, पिशाच, किन्नर आदि पहले पूजन का वर्णन आता है। चरक संहिता में प्रेत बाधा से पीडि़त रोगी के लक्षण और निदान के उपाय विस्तार से मिलते हैं। ज्योतिष साहित्य के मूल ग्रंथों प्रश्नमार्ग, वृहत्पाराशर , होरा सार, फलदीपिका, मानसागरी आदि में ज्योतिषीय योग हैं जो प्रेत पीड़ा, पितृदोष आदि बाधाओं का विष्लेषण करते हैं। ऐसा नहीं कि हिन्दू दर्शन, आध्यात्मयोग में ही प्रेत अस्तित्व को स्वीकारा है। हिन्दू धर्म के अतिरिक्त विश्व में बौद्ध, ताओ, कन्फ्यूसियस, षिन्टों, जुरथ्रस्त (पारसी), इस्लाम, यहूदी तथा ईसाई धर्मों के अनुयाईयों नें भी एक मत से इस योनि को स्वीकारा है।
आज संपूर्ण विश्व जगत में इस अलौकिक सत्य को जानने के लिए अनेक शोध कार्य किए हैं। विख्यात मनोविज्ञानी डा.जुंग ने अपने ग्रंथ ज्ीम ैजतनबजनतम ंदक क्लदंउपबे िजीम च्ीलबीम’ में लिखा है – ‘भूत या तो सार्वजनिक विमोह है या सार्वजनिक सत्य’
वैज्ञानिक जगत में विष्वव्यापी क्रान्ति इस दिशा में तब आई जब क्रिलियाॅन फोटोग्राफी द्वारा आभामण्डल का फोटो खीचा गया। कुछ वर्ष पूर्व अमेरिका के कुछ खोजियों ने एक आश्चर्यजनक प्रयोग इस विषय में किया कि प्राणी की मृत्यु के समय उसके शरीर को त्यागने पर वैद्युतिक परमाणुओं का अर्थात् उस आत्मा का भी फोटों उतारा जा सकता है। इस के लिए उन्होंने विलसा क्लाउड चैम्बर’ का प्रयोग किया। यह विषेष चैम्बर या कक्ष एक खोखले सिलिण्डर के आकार का होता है, जिसके भीतर से हवा सक्षन पम्प द्वारा बाहर निकालकर अन्दर पूर्णरुप से शून्य पैदा किया जाता है। उस सिलिण्डर के अन्दर एक सिरे पर एक विषेष प्रकार का गीला कागज़ चिपका दिया जाता है जिससे इतनी नमी निकलती रहे कि भीतरी भाग में यदि एक भी इलैक्ट्रान या अणु गुजरे तो विषेष फोटो तकनीकि द्वारा उसका चित्र उतारा जा सके।
इस प्रकार के क्लाउड चैम्बर की बगल में एक छोटी सी कोठरी बनाई गई और उसके भीतर कुछ मेंढक और चूहे रखे गए। किसी विषेष वैज्ञानिक विधि से उनका प्राणान्त किया गया और उसी क्षण कैमरे ने कक्ष के भीतर होने वाले परिवर्तन को चित्रित कर लिया गया। 50 में से 30 प्रयोगों में पाया गया कि जो फोटो खींचे गए उनमें मृत प्राणी के आकार से मिलते-जुलते क्रम में इलैक्ट्रानों से छायात्मक आकृतियाॅ बन गयीं। कालान्तर में असंख्य बार अनुभव में आया कि केवल मनुष्यों और पशुओं की ही छायात्माएं नहीं दीखतीं, वरन बड़े-बड़े विध्वसंक जहाजों और रेलों आदि की भी भूतात्माएं दिखाई देती हैं। समुद्रों में जो बड़े-बड़े जहाज दुर्घटना ग्रस्त होते हैं उनमें से कुछ अपने पूर्व आकार में समुद्र में चक्कर लगाते देखे गए। कई बार नाविक उन्हें छाया समझकर वास्तविक जहाज समझ बैठते हैं फलस्वरुप उस छाया से टकराने से बचने की चेष्टा में स्वयं भी दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। इस सम्बन्ध में अनेक प्रमाणिक और विश्वसनीय तथ्य खोजियों को मिले हैं। इधर दुर्घटनाओं में ध्वस्त रेलों की छायात्माओं का भी पता चला है। इन्फ्रारेड फोटोग्राफी से और भी ऐसे तथ्य सामने आए हैं कि जहाॅ कुछ मूर्त नहीं था वह चित्रित हो गया। अन्ततः विश्वव्यापी स्तर पर विचारकों ने माना कि प्रत्येक पदार्थ की एक सूक्ष्म अनुकृति भी होती है जो सदैव उसके साथ अथवा उसके अस्तित्व के बाद भी बनी रहती है। इसीलिए स्थूल संरचना के रहने पर भी उसकी सत्ता (भूत) यथावत बना रहता है।
क्यों लगता है भूत-प्रेत से डर
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भूत-प्रेत का नाम सुनते ही अचानक ही एक भयानक आकृति हमारे दिमाग में उभरने लगती है और मन में डर समाने लगता है। हमारे दैनिक जीवन में कहीं  कहीं हम भूत-प्रेत का नाम अवश्य सुनते हैं। कुछ लोग भूतों को देखने का दावा भी करते हैं जबकि कुछ इसे कोरी अफवाह मानते हैं। भूत-प्रेत से जुड़ी कई मान्यताएं  अफवाएं भी हमारे समाज में प्रचलित हैं। दुनिया के लगभग हर धर्म में भूत-प्रेतों के बारे में कुछ  कुछ बताया गया है.|
.. अब सवाल ये उठता है कि अगर वाकई में भूत-प्रेत होते हैं तो ये हमें दिखाई क्यों नहीं देतेधर्म ग्रंथों के अनुसार जीवित मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना होता है-पृथ्वीजलवायुआकाश  अग्नि। मानव शरीर में सबसे अधिक मात्रा पृथ्वी तत्व की होती है और यह तत्व ठोस होता है इसलिए मानव शरीर आसानी से दिखाई देता है। जबकि भूत-प्रेतों का शरीर में वायु तत्व की अधिकता होती है। वायु तत्व को देखना मनुष्य के लिए संभव नहीं है क्योंकि वह गैस रूप में होता है इसलिए इसे केवल आभास किया जा सकता है देखा नहीं जा सकता। हिँदू धर्म के अनुसार यह तभी संभव है जब किसी व्यक्ति के राक्षस गण होँ या फिर उसकी कुंडली में किसी प्रकार का दोष हो। इसके अलावा मानसिक रूप से कमजोर लोगों को भी भूत-प्रेत दिखाई देते हैं जबकि अन्य लोग इन्हें नहीं देख पाते।
 धर्म शास्त्रों के अनुसार भूत का अर्थ है बीता हुआ समय। दूसरे अर्थों में मृत्यु के बाद और नए जन्म होने के पहले के बीच में अमिट वासनाओं के कारण मन के स्तर पर फंसे हुए जीवात्मा को ही भूत कहते हैं। जीवात्मा अपने पंच तत्वों से बने हुए शरीर को छोडऩे के बाद अंतिम संस्कार से लेकर पिंड दान आदि क्रियाएं पूर्ण होने तक जिस अवस्था में रहती हैवह प्रेत योनी कहलाती है। प्रत्येक नकारात्मक व्यक्ति की तरह भी भूत भी अंधेरे और सुनसान स्थानों पर निवास करते हैं। खाली पड़े मकानखंडहरवृक्ष  कुएबावड़ी आदि में भी भूत निवास कर सकते हैं।
 हमें कई बार ऐसा सुनने में आता है कि किसी व्यक्ति के ऊपर भूत-प्रेत का असर है। ऐसा सभी लोगों के साथ नहीं होता क्योंकि जिन लोगों पर भूत-प्रेत का प्रभाव होता है उनकी कुंडली में कुछ विशेष योग बनते हैं जिनके कारण उनके साथ यह समस्या होती है। साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा नीच का हो या दोषपूर्ण स्थिति में हो तो ऐसे व्यक्ति पर भी भूत-प्रेत का असर सबसे ज्यादा होता है। भूत या प्रेत बाधा से ग्रस्त व्यक्ति की आंखें स्थिरअधमुंदी और लाल रहती है। शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होता है। हाथ-पैर के नाखून काले पडऩे के साथ ही ऐसे व्यक्ति की भूखनींद या तो बहुत कम हो जाती है या बहुत अधिक। स्वभाव में क्रोधजिद और उग्रता  जाती है। शरीर से बदबूदार पसीना आता है|
चूंकि भूत-प्रेत का भौतिक शरीर नहीं होता और इन्हें हमेशा देखना भी संभव नहीं होता |छोटी शक्तियों के भूत-प्रेत खुद को दिखा भी नहीं सकते ,बड़ी शक्तियों के भूत -प्रेत खुद को दिखाने की क्षमता भी कभी कभी रखते हैं |चुकी ये अचानक कही सामने आ सकते हैं ,कहीं भी आ जा सकते हैं ,मनुष्य को प्रभावित कर सकते हैं ,अक्सर निकसान अथवा पीड़ा ही पहुचाते हैं इसलिए इनसे डर लगता है |अगर आत्मबल मजबूत हो और साहस हो तो यह ऐसे व्यक्ति से दूर रहते हैं ,कमजोर ह्रदय और पतले रक्त प्रकृति वालों को यह अधिक प्रभावित करते हैं |यद्यपि अगर यह शक्तिशाली हों तो चाहने पर किसी को प्रभावित कर सकते हैं ,यह इनकी श्रेणी और शक्ति पर निर्भर करता है |...................................................हर-हर महादेव

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