Monday 7 August 2017

मनुष्य की उत्पत्ति और सनातन ज्ञान

सनातन ज्ञान और मनुष्य की उत्पत्ति
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आधुनिक विज्ञान फेल ,भारतीय सनातन विज्ञान महान
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मनुष्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में आधुनिक विज्ञान की सभी खोजें और सिद्धांत व्यर्थ सिद्ध हुए हैं ,जबकि भारतीय सनातन ज्ञान -विज्ञान और सूत्र हमेशा सही साबित हुए हैं |आधुनिक विज्ञान उन्ही बातों को हजारों ,लाखों वर्ष बाद प्रमाणित करता है जिन्हें हमारा सनातन विज्ञानं लाखों वर्ष पूर्व बता चूका है |आधुनिक जैव विज्ञानी डार्विन और लैमार्क कहते हैं की मनुष्य की उत्पत्ति बंदरों ,चिम्पैजिओं से हुई ,अगर ऐसा ही था तो आज भी बंदर और चिम्पैजी क्यों हैं ,उन सबका मनुष्य में परिवर्तन क्यों नहीं हुआ |डी व्रीज कहते हैं की इनमे बाद में उत्परिवर्तन हो गए ,तो अन्य ऐसे जंतुओं में ऐसा क्यों नहीं हुआ जिससे मनुष्य जैसा कोई और प्राणी उत्पन्न होता |चिम्पैजी ,बंदर आदि के गुणसूत्र अथवा जीन सामान क्यों नहीं होते |इसी तरह अन्य वैज्ञानिकों के अलग अलग मत रहे हैं मनुष्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में किन्तु समय और प्रमाण की कसौटी पर कोई खरा नहीं उतरता |कुछ समय बाद ही नया सिद्धांत आ जाता है और नए प्रमाण उस सिद्धांत को काट देते हैं |
भारतीय या आर्यावर्तीय सनातन विज्ञान और ज्ञान हमेशा से कहता आया है की मनुष्य की उत्पत्ति इसी रूप में हुई है जैसा की वह आज है |सनातन ज्ञान अथवा वैदिक ज्ञान में युगों युगों से मनुष्य की उत्पत्ति की अवधारणा है ,और इस आधार पर मनुष्य करोड़ों वर्षों से ऐसा ही है ,जबकि आधुनिक विज्ञान के अनुसार मनुष्य का विकास मात्र दस हजार वर्षों पूर्व हुआ है |इसके पहले मनुष्य खेती करना और आग जलाना नहीं जानता था |मिलने वाले प्रमाण एक अलग कहानी कहते हैं |अम्रीका में मिला शुद्ध लोहे का हथौड़ा जिस पर वर्षों में भी जंग नहीं लगा ,करोड़ों वर्ष पुराना है |यहाँ तक की उसमे लगी लकड़ी कोयला बन चुकी है प्राकृतिक कोयला बन्ने की प्रक्रिया सी |रूस में मिला लोहे का पेंच जो बिलकुल आधुनिक पेंच सा है ,उसकी आयु तीस करोड़ वर्ष पूर्व बताता है ,ऐसा आधुनिक विज्ञान ही कहता है |तीस करोड़ वर्ष पूर्व तो डायनासोर तक नहीं थे पृथ्वी पर ,बुद्धिमत्ता पूर्ण जीव की कल्पना भी नहीं कर सकते आधुनिक वैज्ञानिक |सहारा के रेगिस्तानों में विशेष श्रृंखला में बनी पत्थर की आकृतियाँ करोडो वर्ष पूर्व की हैं जो सूर्य की गति अनुसार समय निर्धारण और खगोलीय गणना का आभास व्यक्त करती हैं |कहीं ३२० फीट जमीं के अंदर से पत्थर की गुडिया मिलती है तो कहीं पत्थर पर बनी आधुनिक विमानों से भी विकसित यां सी आकृतियाँ |कहीं लाखों वर्ष पूर्व उकेरी गयी आकृतियाँ तो कहीं मनुष्य से जीवाश्म |आधुनिक विज्ञान का ही जीन डिकोडिंग सिस्टम अब कहता है की मनुष्य की उत्पत्ति इसी रूप में हुई है जैसा वह आज है |अर्थात सनातन विज्ञानं हर समय श्रेष्ठ साबित हो रहा |
यहाँ यह अवश्य विचारणीय हो सकता है की ,कहीं पृथ्वी पर मनुष्य बाद में तो नहीं आया ,,अथवा पृथ्वी मनुष्य का नैसर्गिक वास स्थान ही न हो ,यह कहीं और से यहाँ आया हो |पृथ्वी पर आने पर आर्यावर्तीय क्षेत्र अथवा हिन्दुस्तान के आसपास के भाग में विकास किये मनुष्यों को मूल स्थान और उस समय का विज्ञान ज्ञात रहा हो अन्य को इसका ज्ञान समय क्रम में विलुप्त हो गया हो |अथवा यहाँ से विकसित होकर ही पृथ्वी पर फैले मनुष्यों को मूल ज्ञान विस्मृत हो गया हो और यहाँ ज्ञानी ,ऋषि ,महर्षि की परंपरा से यह ज्ञान अक्षुण रहा हो | ऐसा भी सम्भव है की यहाँ के क्षेत्र में ही किसी उन्नत जीव में कुछ जीन प्रत्यारोपण कर किसी अन्य ग्रह के जीवों द्वारा उन्हें मनुष्य रूप में विकसित किया गया हो और उन्हें ज्ञान ,तकनिकी प्रदान की गयी हो |क्षेत्र विशेष में यह विकास हुआ हो और यह धीरे धीरे विश्व में फैला हो |यद्यपि यह विचार अधिक सटीक तो नहीं लगता क्योकि सनातन ज्ञान कहता है की मनुष्य युगों युगों से ऐसा ही है ,डिकोडिंग भी कहती है मनुष्य ऐसा ही था ,फिर भी इस पर सोचा तो जा ही सकता है |
 कुछ प्रमाण प्रमाणित भी करते हैं इन बातो को |विभिन्न वैज्ञानिक शोध और सिद्धांत मनुष्य की प्रकृति ,जीनी रचना आदि पृथ्वी वासियों से भिन्न साबित भी करते हैं और आधुनिक विज्ञान का विकासवाद भी मनुष्य के विकास को साबित नहीं कर पाता |विभिन्न कालों में हमारे शास्त्रीन के अनुसार बताये गए अस्त्र -शस्त्र ,विमान आदि भिन्न लगते हैं और यह आधुनिक विज्ञान से भी हजारों वर्ष उन्नत होते हैं |अफगानिस्तान में महाभारत कालीन मिला वायुयान आधुनिक वायुयानों से हजारों वर्ष उन्नत है जबकि आधुनिक विज्ञानं के अनुसार तो उस काल में वायुयान की कल्पना भी नहीं की जा सकती है |भारत में अथवा हमारे शास्त्रों में इनका उल्लेख कई हजार वर्ष पूर्व से है |
तो क्या भारतीय मनीषियों ,ऋषियों ,महर्षियों या मानवों का संपर्क दूसरी दुनिया के अपने मूल पूर्वजों से था उस काल में जो उन्हें यह सब प्रदान करते थे और इनका ज्ञान दिया करते थे |क्योंकि सभी को तो इनका ज्ञान नहीं ही था क्योकि उस समय के विप्लवों में पूरी मानव जाती तो समाप्त नहीं ही हुई होगी |फिर यह सब ज्ञान अचानक विलुप्त कैसे हो गया और आधुनिक विज्ञान इतना पीछे कैसे चला गया |ऐसा लगता है उस उन्नत ज्ञान को जानने वाले भारत में ही थे और वह यहाँ हुए राजनैतिक संघर्ष अथवा प्राकृतिक विप्लवों में नष्ट हो गए ,केवल लिखे हुए कुछ शास्त्र बच गए किन्तु कड़ियाँ अपूर्ण होने से अन्य मनुष्य उन सूत्रों को जोड़ नही सका और हजारों वर्ष पीछे चला गया |कुछ शास्त्र तो बाद में विदेशियों द्वारा भी चुरा लिए गए और वह उन पर शोध कर आधुनिक विज्ञान के पुरोधा बन रहे हैं |
भारतीय शास्त्रों में पाताल लोक का नाम बार बार आता है जबकि अब तक पाताल लोक कोई खोज नहीं पाया |सामान्यतया पाताल लोक लोग पृथ्वी के विपरीत क्षेत्र के स्थान को समझते हैं ,किन्तु यहाँ तो मनुष्य जैसे ही मनुष्य हैं और उनमे कोई अलग विशेषता नहीं |आधुनिक कुछ शोधों ने भारतीय कथाओं के पाताल लोक को अब प्रमाणित करना शुरू किया है और इन शोधों के अनुसार पृथ्वी का बीच का कुछ हिस्सा खोखला है ,जहाँ अपना वायुमंडल है और जहाँ के अपने निवासी हैं |इस हिसाब से पाताल लोक है और यह अगर है तो यहाँ की संस्कृति और ज्ञान पृथ्वी के आधुनिक मनुष्यों से अधिक विकसित होगा |चूंकि यह उच्च विकास की अवस्था में होंगे अतः पृथ्वी वासियों से कम संपर्क रख रहे होंगे |यदि किसी से संपर्क होगा भी तो गोपनीय तौर पर ही और केवल मतलब और काम तक |कम से कम तकनिकी तौर पर तो नहीं ही होगा ,ऐसा जरुर हो सकता है की यह समय समय पर योग्य व्यक्ति को संकेत और ज्ञान भले देते हों |बरमूडा ट्राएंगल ,अमरीका में अपने आप खिसकने वाले पत्थरों आदि का रहस्य आज तक सुलझा पाए आधुनिक विज्ञानी |ऐसा संभव है की इनका सम्बन्ध पाताल लोक से हो |ऐसा भी हो सकता है की पृथ्वी पर कहीं और से आये मनुष्य प्रजाति के लोग मूलतः पाताल लोक में बसे हों और कुछ को सतह पर विकास को रखा हो |हो सकता है पाताल लोक का वातावरण उस मूल ग्रह सा हो जहाँ से मनुष्य आया हो |पृथ्वी पर कुछ स्थानों पर ,विशेषकर ध्रुवीय क्षेत्र या बर्फीले क्षेत्रों में विशेष गतिविधियाँ कभी कभी आभास होती हैं और कुछ विशेष मिलता भी है जहाँ अनुशय का आवागमन नहीं है और जो म्मानुश्य के लिए दुर्गम हैं |संभव है यहाँ का सम्बन्ध पाताल लोक या किसी अन्य लोक से हो |
ऐसा ही कुछ स्वर्ग लोक के साथ हो सकता है |हो सकता है की स्वर्ग लोक वह स्थान हो जहाँ से मूल मनुष्य पृथ्वी पर आया हो |इसके कुछ तर्क हो सकते हैं |सामान्यतया लोगों का मानना है की स्वर्ग -नरक मनुष्य मरने के बाद जाता है ,किन्तु यह भिन्न अवस्था हो सकती है |स्वर्ग वास्तव में कोई स्थान किसी ग्रह पर भी हो सकता है |क्योकि हमारे शास्त्रों में कहीं कहीं किसी किसी मनुष्य अथवा महा पुरुष के लिए कहा जाता है की उनके लिए विमान आया और वह सशरीर स्वर्ग गए |यदि मरने पर यह सम्भव है तो फिर सशरीर कैसे गए |कहीं कहीं यह भी कहा जाता है की अमुक राजा ,देवताओं की ओर से दानवों से युद्ध करने गए |कहीं यह भी है की अमुक लोक की कन्या से अमुक का विवाह हुआ |यह सभी कुछ संकेत करते हैं की पृथ्वी के अतिरिक भी समान ग्रह कहीं हो सकता है |मनुष्य को उत्तम योग्य और खुद सा पाने पर उसे सशरीर वहां ले जाने की व्यवस्था की जाती हो |वहां से हमेशा यहाँ के विकास पर नजर राखी जा रही हो |समय समय पर देवताओं की सहायत की कहानियाँ इसी ओर संकेत करती हैं |भारत को ही देवताओं का देश इसी लिए कहा जाता है की यही मूल निवासी आये हों उस ग्रह से फिर विकास किये हों |पृथ्वी पर भिन्न स्थानों पर मिलने वाले चित्र कुछ ऐसा ही संकेत करते हैं की कोई विशेष मनुष्य देवताओं सा पृथ्वी पर आता है ,विमान आदि से |हमारे शास्त्रों में यह भी उल्लिखित है की मनुष्य उच्च योग्य होकर पृथ्वी से देवताओं तक को जीत लिया |यह वास्तविक भी हो सकता है और ऐसे में उसे और उसके स्थान को नष्ट भी किये हों देवता खुद या किसी को सहायता देकर |
भारतीय शास्त्रों में ,तंत्र जगत में संगरीला घाटी का नाम आता है और कहा जाता है की यहाँ से समस्त पृथ्वी के आध्यात्मिक जगत का संचालन होता है ,किन्तु अब तक इसके भौतिक स्थान का पता तक नहीं चला |कहा जाता है की चीन ने भारत पर इसी क्षेत्र के लिए आक्रमण किया क्योकि माओ चिर युवा होना चाहता था जो की संग्रीला के योगियों का गुण होता है |किन्तु चीन इस स्थान को खोज भी नहीं पाया |यहाँ का गहरा सम्बन्ध लामाओं से होता है ,यद्यपि सभी ऋषि महर्षि यहं से एक अवस्था बाद जुड़ पाते हैं |इसीलिए चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया ,दलाईलामा को पकड़ना चाहा ,उन्हें मान्यता नहीं देता और आज भी तिब्बत ,भूटान क्षेत्र में अपनी गतिविधियाँ जारी रखे है तथा किसी भी तरह इस क्षेत्र को अधिकतम हडपना चाहता है |कैलास ,मानसरोवर का हडपना इसी की एक कड़ी है जिस की भारतीय शास्त्रों में है की यह शिव का स्थान है अर्थात यहाँ अवश्य विशेष शक्ति है जसका सम्बन्ध स्वर्ग अथवा पाताल लोक से ,अथवा दोनों से है |किन्तु आजतक चीन कुछ भी खोज नहीं पाया ,क्योकि यहाँ के लोग आज के मनुष्यों से लाखों -करोडो वर्ष अधिक विकसित हैं ,आगे हैं |एक सीमा से अधिक आगे बढने पर वह उस ओर बढने वाले को नष्ट कर देते हैं और खुद को गोपनीय रखते हैं |
उपरोक्त चिन्तन हमारा व्यक्तिगत चिंतन है और यह सही भी हो सकता है ,गलत भी हो सकता है |जो भी हो पर आधुनिक विज्ञान तो कम से कम मनुष्य की उत्पत्ति की गुत्थी नहीं ही सुलझा पाया है और भारतीय सनातन ज्ञान की ही उक्ति सही उतरी है |इसी तरह अन्य बातें भी समय समय समय पर सही होती आई हैं ,सही होती रहेंगी ,अतः बेहतर है की हम आधुनिक विज्ञान के चक्कर को छोड़ें ,पाश्चात्य संस्कृति ,देशों की ओर देखना बंद करें और अपने ही ज्ञान ,अपने ही सनातन विज्ञान पर ध्यान दें ,शोध करें ,जिसके बल पर पाश्चात्य देश आगे बढ़ते जा रहे ,तो हम वास्तव में अपने मूल स्थान अथवा स्वर्ग को पा लेंगे ,वह सबकुछ जान लेंगे जो कहानियों ,कथाओं में मिलता है और हमें काल्पनिक लगता है |............................................................हर-हर महादेव



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