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श्रीमद्भागवत के
अनुसार यह उर्वशी स्वर्ग (हिमालय के
उत्तर का भाग) की सर्वसुन्दर अप्सरा
थी। एक बार इन्द्र की सभा में उर्वशी के नृत्य के समय राजा पुरुरवा (चंद्रवंशियों के मूल पिता) उसके प्रति आकृष्ट हो गए थे जिसके चलते उसकी
ताल बिगड़ गई थी। इस अपराध के कारण इन्द्र ने रुष्ट होकर दोनों को मर्त्यलोक में
रहने का शाप दे दिया था। मर्त्यलोक में पुरुरवा और उर्वशी कुछ शर्तों के साथ पति-पत्नी बनकर रहने लगे। इनके 9 पुत्र आयु, अमावसु, विश्वायु, श्रुतायु, दृढ़ायु, शतायु आदि उत्पन्न
हुए। उर्वशी को इन्द्र बहुत चाहते थे।
माना जाता है कि नारायण की जंघा से उर्वशी की उत्पत्ति हुई है, लेकिन पद्म पुराण के अनुसार कामदेव के ऊरू से
इसका जन्म हुआ था। उर्वशी तो अजर-अमर
है। यही उर्वशी एक बार इन्द्र की सभा में अर्जुन को देखकर आकर्षित हो गई थी और
इसने अर्जुन से प्रणय-निवेदन किया
था, लेकिन अर्जुन ने कहा- 'हे देवी! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु
वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं...।' अर्जुन की ऐसी बातें
सुनकर उर्वशी ने कहा- 'तुमने
नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं अतः मैं तुम्हें शाप देती हूं कि तुम 1 वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे।' ,इस कथा को पांडव वनवास में अर्जुन के
नृत्य शिक्षक के रूप से सम्बंधित माना जाता है |इस तरह उर्वशी के संबंध में
सैकड़ों कथाएं पुराणों में मिलती
हैं।....................................................हर हर महादेव
विशेष - किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें -मो. 07408987716 ,समय -सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच .
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