Saturday 28 October 2017

महामाता कामाख्या देवी शक्तिपीठ

::::::::::::::महामाता कामाख्या देवी शक्तिपीठ :::::::::::::
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कामाख्या मंदिर गुवाहाटी(असम) से 8 किलोमीटर दूर जनपद कामरूप में नीलाचल पव॑त पर स्थित हॅ यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है इसका महत् तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। इसे तांत्रिकों का सुप्रीम कोर्ट कहा जाता है ; मान्यता है कि पराविद्धया(रहस्य विज्ञान) के जितने भी प्रेक्टिशनर हैं, यदि वे यहाँ नहीं आये तो उनके कार्यों में शिफा नहीं मिलता। मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।
विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह अपने आप में, इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है।
'कामाख्या तंत्र' के अनुसार -
'योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा।
रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा।।'
सती स्वरूपिणी आद्यशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता है। इसीलिए इस शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी अत्यन्त महत्व है। यद्यपि आद्य-शक्ति की प्रतीक सभी कुल वर्ण की कौमारियाँ होती हैं। किसी जाति का भेद नहीं होता है। इस क्षेत्र में आद्य-शक्ति कामाख्या कौमारी रूप में सदा विराजमान हैं।
कौमारी तीर्थ मां कामाख्या शक्ति पीठ :
----------------------------------------------- हिन्दूओं के प्राचीन 51 शक्तिपीठों में कामाख्या शक्ति पीठ को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. कामाख्या शक्ति पीठ भारत के असम राज्य के गुवाहाटी जिले के कामगिरि क्षेत्र के नीलांचल पर्वत के कामाख्या नामक स्थान पर स्थित है. माता कामाख्या शक्तिपीठ को लेकर एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है.
शक्तिपीठ स्थापना कथा :
------------------------------ सती स्वरुपा महादेवी सती के पिता दक्ष ने अपने एक महत्व यज्ञ कार्य में भगवान शिव को आंमत्रित नहीं किया. यज्ञ आयोजन में पिता के द्वारा बुलाने पर भी माता सती इस यज्ञ में शामिल होने के लिये पहुंच गई. इस पर राजा दक्ष ने देवी सती और उसके पति भगवान कैलाश नाथ का खूब अपमान किया. अपने पति का अपमान माता सहन नहीं कर सकी. पिता के द्वारा किये गये कृ्त्य के लिये स्वंय को दण्ड देने के लिये वे यज्ञ की जलती अग्नि में कूद गई. भगवान शंकर ने जब अपनी प्रिया सती के विषय में यह सुना तो, वे बेहद क्रोधित हुए. और माता के शरीर को अग्नि कुण्ड से निकाल कर कंधों पर उठाकर पृ्त्वी पर इधर-से-उधर भटकने लगें. भटकते हुए माता के शरीर के अंग जिन स्थानों पर गिरे, उन्हीं स्थानों पर शक्तिपीठों का निर्माण हुआ है. कामाख्या शक्तिपीठ में माता के शरीर का योनि अंग गिरा था, इसलिये इस शक्तिपीठ पर माता की योनि की पूजा होती है.

इसी वजह से इस मंदिर के अन्दर के भाग के फोटों लेने की मनाही है. इसके अतिरिक्त वर्ष में एक बार जब आम्बूवाची योग बनता है. इस अवधि में भूमि रजस्वला स्थिति में होती है. उन तीन दिनों में मंदिर के कपाट स्वयं बन्द हो जाते है. चौथे दिन मंदिर के पट खुलते है. इसके बाद विशेष पूजा करने के बाद ही माता की पूजा और दर्शन किये जा सकते है. जिन तीन दिनों में कामाख्या मंदिर के कपाट बन्द रहते है. वे तीन दिन दिव्य शक्तियों और मंत्र-शक्तियों के ज्ञाताऔं के लिये किसी महापर्व से कम नहीं होता है. यह स्थान विश्व का कौमारी तीर्थ भी कहा जाता है. इन तीन दिनों में दुनिया और भारत के तंत्र साधक यहां आकर साधना के सर्वोच्च स्तर को प्राप्त करने का प्रयास करते है. गुवाहाटी के पर्वतीय प्रदेश में स्थित देवी के इस रुप को कामाख्या और भैरव को उमानंद कहा जाता है. |..............................................................हर-हर महादेव 

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