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दुर्वासा ऋषि के शाप से यही तिलोत्तमा बाण की पुत्री हुई थी। माघ मास में
यह सौर गण के साथ सूर्य के रथ पर रहती है। दूसरी मान्यता अनुसार तिलोत्तमा आश्विन
मास (वायुपुराण के अनुसार माघ) में अन्य सात सौरगण के साथ सूर्य के रथ की
मालकिन है। अष्टावक्र ने इसे शाप दिया था।
कश्यप ऋषि के दो प्रमुख पुत्र हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्क्ष थे।
हिरण्यकशिपु के वंश में निकुंभ नामक एक असुर उत्पन्न हुआ था, जिसके सुन्द और उपसुन्द नामक दो पराक्रमी पुत्र
थे। त्रिलोक्य विजय करने के लिए दोनों विन्ध्यांचल पर्वत पर तप करने लगे। जब
ब्रह्माजी प्रसन्न होकर वर देने आए तो इन दोनों ने अमरत्व का वर मांगा। लेकिन जब
ब्रह्मा ने यह वरदान देने से इनकार कर दिया तब दोनों भाइयों ने सोचा कि उनमें तो
आपस में बहुत प्रेम है और वे कभी भी आपस में नहीं लड़ते हैं और न लड़ सकते हैं।
इसीलिए उन्होंने ब्रह्माजी से कहा कि उन्हें यह वरदान मिले कि एक-दूसरे को छोड़कर त्रिलोक में उन्हें कोई भी नहीं
मार सके। ब्रह्मा ने कहा- तथास्तु।
ब्रह्मा से वरदान पाकर सुन्द और उपसुन्द ने त्रिलोक्य में अत्याचारों करने
शुरू कर दिए जिसके चलते सभी ओर हाहाकार मच गया। अत: इन दोनों भाइयों को आपस में लड़वाने के लिए ही ब्रह्मा ने तिलोत्तमा नाम
की अप्सरा की सृष्टि की।
सुन्द, उपसुन्द के निवास
स्थान विन्ध्य पर्वत पर तिलोत्तमा भेज दी गई। तिलोत्तमा को देखते ही दोनों भाई उसे
पाने के लिए आपस में लड़ने लगे और एक-दूसरे के हाथों मारे गए। इस तरह 108 अप्सराओं की अलग अलग कहानियां
हैं।.................................................हर-हर महादेव
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