Wednesday, 4 October 2017

हवन -आहुति के नियम

हवन -आहुति के नियम   
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कोई भी अनुष्ठान के पश्चात हवन करने का शास्त्रीय विधान है और हवन करने हेतु भी कुछ नियम बताये गए हैं जिसका अनुसरण करना अति आवश्यक है , अन्यथा अनुष्ठान का दुष्परिणाम भी आपको झेलना पड़ सकता है इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है हवन के दिन अग्नि के वास का पता करना ताकि हवन का शुभ फल आपको प्राप्त हो सके
1- जिस दिन आपको होम करना हो, उस दिन की तिथि और वार की संख्या को जोड़कर 1 जमा (1 जोड़ ) करें फिर कुल जोड़ को 4 से भाग देवें- अर्थात् शुक्ल प्रतिपदा से वर्तमान तिथि तक गिनें तथा एक जोड़े , रविवारसे दिन गिने पुनः दोनों को जोड़कर चार का भाग दें।
-यदि शेष शुन्य (0) अथवा 3 बचे, तो अग्नि का वास पृथ्वी पर होगा और इस दिन होम करना कल्याणकारक होता है
-यदि शेष 2 बचे तो अग्नि का वास पाताल में होता है और इस दिन होम करने से धन का नुक्सान होता है
-यदि शेष 1बचे तो आकाश में अग्नि का वास होगा, इसमें होम करने से आयु का क्षय होता है
अतः यह आवश्यक है की होम में अग्नि के वास का पता करने के बाद ही हवन करें
शास्त्रीय विधान के अनुसार वार की गणना रविवार से तथा तिथि की गणना शुक्ल-पक्ष की प्रतिपदा से करनी चाहिए तदुपरांत गृह के मुख-आहुति-चक्र का विचार करना चाहिए
मान लो आज हम कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि मे चल रहे है तो
शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक 15 तिथि तो कुल योग
आया 15 + 4 + 1 = 20
आज कौन सा दिन हैं और इस दिन को रविवार से
गिने मानलो आज बुधवार हैं तो रविवार से गिनने पर बुधवार 3
आया कुल योग 20 + 3 = 23/4 कर दे तो शेष कितना बचा 4 - 23 / 5
- 20 3 को शेष कहा जायेगा परिणाम इस प्रकार से होंगे
शेष 0 तो अग्नि का निवास पृथ्वी पर
शेष 1 तो अग्नि का निवास आकाश मे
शेष 2 तो अग्नि का निवास पाताल मे
शेष 3 बचे तो पृथ्वी पर माने
पृथ्वी पर अग्नि वास सुख कारी होता हैं आकाश मे प्राणनाश और पाताल मे धन नाश होता हैं मतलब हमें वह तिथि चुनना हैं जिस तिथि मे शेष 3 बचे वह तिथि ही लाभकारी होगी प्रज्वलित अग्नि के आकार को देख कर कई नाम रखे गए हैं पर अभी उनसे हमें सरोकार नही हैं इस तरह से अग्नि वास का पता हमें लगाना हैं
भू रुदन :- हर महीने की अंतिम घडी, वर्ष का अंतिम् दिन, अमावस्या, हर मंगल वार को भू रुदन होता हैं अतः इस काल को शुभ कार्य भी नही लिया जाना चाहिए यहाँ महीने का मतलब हिंदी मास से हैं और एक घडी मतलब 24 मिनिट हैं अगर ज्यादा गुणा किया जाए तो मास का अंतिम दिन को इस आहुति कार्य के लिए ले।
तिथि मे पंचमी ,दशमी ,पूर्णिमा
वार मे - गुरु वार
नक्षत्र मे पुष्य, श्रवण मे पृथ्वी हसती हैं
अतः इन दिनों का प्रयोगकिया जाना चाहिए
गुरु और शुक्र अस्त :- यह दोनों ग्रह कब अस्त होते हैं और कब उदित
आप लोकल पंचांग मे बहुत ही आसानी से देख सकते हैं और इसका निर्धारण कर सकते हैं अस्त होने का सीधा सा मतलब हैं की ये ग्रह सूर्य के कुछ ज्यादा समीप हो गए और अब अपना असर नही दे पा रहे हैं क्यूंकी इन दोनों ग्रहो का प्रत्येक शुभ कार्य से सीधा लेना देना हैं अतः इनके अस्त होने पर शुभ कार्य नही किये जाते हैं और इन दोनों के उदय रहने की अवस्था मे शुभ कार्य किये
जाना चाहिये
आहुति कैसे दी जाए :-
आहुति देते समय अपने सीधे हाँथ के मध्यमा और अनामिका उँगलियों पर सामग्री ली जाए और अंगूठे का सहारा ले कर उसे प्रज्ज्वलित अग्नि मे ही छोड़ा जाए
आहुति हमेशा झुक कर डालना चाहिए वह भी इसतरह से की पूरी आहुति अग्नि मे ही गिरे
जब आहुति डाली जा रही हो तभी सभी एक साथ स्वाहा शब्द बोले
(यह एक शब्द नही बल्कि एक देवी का नाम है )
जिन मंत्रो के अंतमे स्वाहा शब्द पहले से हैं उसमे फिर से पुनःस्वाहा शब्द बोले यह ध्यान रहे।
वार :- रविवार और गुरुवार सामन्यतः सभी यज्ञों के लिए श्रेष्ठ दिवस हैं शुकल पक्ष मे यज्ञ आदि कार्य कहीं ज्यादा उचित हैं ।......................................................................हर-हर महादेव


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